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अखलाक के घर में भीड़ के घुसने से लिंचिंग तक... दादरी के उस गांव में क्या-क्या हुआ था 28 सितंबर 2015 की रात

दादरी के बिसाहड़ा गांव में हुए अखलाक मॉब लिंचिंग कांड को लेकर ग्रेटर नोएडा की सूरजपुर कोर्ट ने यूपी सरकार की केस वापसी की अर्जी खारिज कर दी है. यही नहीं अदालत ने इस अर्जी को आधारहीन बताया है. पढ़ें दिल दहला देने वाले अखलाक हत्याकांड की पूरी कहानी.

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इस मामले में आरोपियों के खिलाफ ट्रायल जारी रहेगा (फोटो-ITG)
इस मामले में आरोपियों के खिलाफ ट्रायल जारी रहेगा (फोटो-ITG)

Akhlak Lynching Case: उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले में दस साल पहले अखलाक मॉब लिंचिंग कांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. बिसाहड़ा गांव में भीड़ ने मौत का ऐसा तांडव किया था, जिसमें अखलाक की जान चली गई थी और उसका पूरा परिवार तबाह हो गया था. बिसाहड़ा का नाम उस रात के बाद देश-दुनिया में गूंज उठा था. यह वारदात भारत में मॉब लिंचिंग की सबसे भयावह घटनाओं में शामिल हो गई थी. अब सरकार ने इस मामले में आरोपियों को रिहा कराने के लिए अदालत में याचिका लगाई थी. लेकिन सूरजपुर कोर्ट ने सरकार की अर्जी को खारिज कर दिया. चलिए जान लेते हैं कि 28 सितंबर 2015 की रात उस गांव में क्या-क्या हुआ था?

वारदात की काली रात
28 सितंबर 2015 की रात बकरीद के कुछ दिन बाद गांव के मंदिर के लाउडस्पीकर से कथित तौर पर कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा यह घोषणा की गई कि मोहम्मद अखलाक के घर में गोमांस रखा गया है. यह भी कहा गया कि उन्होंने बछड़े की हत्या की है. बिना किसी पुष्टि के यह बात तेजी से गांव में फैल गई. धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाली इस घोषणा ने हालात को अचानक विस्फोटक बना दिया. रात का समय होने के कारण लोग भावनाओं में बहते चले गए. इसी अफवाह ने हिंसा की नींव रखी.

रात 10:30 बजे भीड़ का हमला
घोषणा के कुछ ही देर बाद सैकड़ों लोग अखलाक के घर की ओर बढ़ गए. रात करीब 10:30 बजे भीड़ ने उनके घर पर धावा बोल दिया. दरवाजा तोड़कर अखलाक और उनके बेटे दानिश को बाहर घसीटा गया. लाठियों, ईंटों और पत्थरों से दोनों पर बेरहमी से हमला किया गया. घर की महिलाएं चीखती-चिल्लाती रहीं, रहम की भीख मांगती रहीं लेकिन भीड़ पर कोई असर नहीं हुआ. यह हमला पूरी तरह सुनियोजित हिंसा में बदल चुका था.

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अखलाक की मौत और दानिश गंभीर
हैवान बन चुके लोगों की भीड़ के हमले में 52 वर्षीय मोहम्मद अखलाक की मौके पर ही मौत हो गई. उनका बेटा दानिश गंभीर रूप से घायल हो गया और उसे कई बार ब्रेन सर्जरी करानी पड़ी. अस्पताल में दानिश की हालत लंबे समय तक नाजुक बनी रही. इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया. सोशल मीडिया से लेकर संसद तक इस पर बहस शुरू हो गई. अखलाक की मौत सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या नहीं, बल्कि कानून-व्यवस्था पर सवाल बन गई.

पुलिस की शुरुआती कार्रवाई
घटना के बाद पुलिस ने मामला दर्ज किया और गांव में भारी फोर्स तैनात की गई. अखलाक के घर से मिले मांस को सबूत के तौर पर जब्त किया गया. कई लोगों को हिरासत में लिया गया, लेकिन शुरुआती जांच को लेकर सवाल उठते रहे. परिवार ने आरोप लगाया कि पुलिस ने समय पर मदद नहीं की. घटना के बाद गांव में तनावपूर्ण शांति बनी रही. पुलिस की भूमिका पर भी लगातार सवाल उठते रहे.

मांस की रिपोर्ट पर नया विवाद
पुलिस ने मांस के नमूने को जांच के लिए भेजा. शुरुआती पशु चिकित्सा रिपोर्ट में मांस के टुकड़े को साफतौर पर मटन बताया गया. बाद में मथुरा लैब की रिपोर्ट में कहा गया कि मांस गाय या उसके वंश का है. इस विरोधाभास ने इस विवाद को और गहरा कर दिया. अखलाक के परिवार ने आरोप लगाया कि नमूने बदले गए हैं. यह सवाल आज तक इस केस के सबसे विवादित पहलुओं में शामिल है.

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देशभर में प्रतिक्रिया
अखलाक हत्याकांड ने असहिष्णुता और गौ-रक्षा के नाम पर हिंसा की राष्ट्रीय बहस छेड़ दी. कई लेखकों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों ने अपने पुरस्कार सरकार को लौटा दिए. सरकार और विपक्ष आमने-सामने आ गए. यह मामला सिर्फ कानून का नहीं, बल्कि सामाजिक ताने-बाने का मुद्दा बन गया. अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी भारत में बढ़ती मॉब लिंचिंग पर सवाल उठाए. बिसाहड़ा गांव का अखलाक हत्याकांड मॉब लिंचिंग का एक प्रतीक बन गया.

चार्जशीट और आरोपियों की पहचान
पुलिस ने जांच के बाद 19 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की. इनमें गांव के प्रभावशाली लोग और एक स्थानीय भाजपा नेता का बेटा भी शामिल था. आरोपियों पर हत्या, दंगा और साजिश जैसी धाराएं लगाई गईं. हालांकि मुकदमे की रफ्तार काफी धीमी रही. कई बार सुनवाई टलती रही. इससे पीड़ित परिवार की पीड़ा और बढ़ती गई.

अखलाक के परिवार को जान खतरा
घटना के बाद अखलाक का परिवार गांव में सुरक्षित महसूस नहीं कर पाया. सुरक्षा कारणों से परिवार ने बिसाहड़ा छोड़ दिया. वे लंबे समय तक अलग-अलग स्थानों पर रहे. बच्चों की पढ़ाई और रोजमर्रा की जिंदगी बुरी तरह प्रभावित हुई. परिवार लगातार न्याय की मांग करता रहा. उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल चुकी थी.

ट्रायल में देरी और गवाहों पर दबाव
मुकदमे के दौरान कई गवाहों के बयान बदलने की बात सामने आई. परिवार ने गवाहों पर दबाव और धमकी के आरोप लगाए. अदालत में बार-बार तारीखें बढ़ती रहीं. इससे यह सवाल उठा कि क्या सिस्टम आरोपियों के साथ खड़ा है. अखलाक की पत्नी इकरामन लगातार अदालतों के चक्कर लगाती रहीं. इंसाफ की राह लंबी होती चली गई.

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केस वापसी की अर्जी
अक्टूबर 2025 में यूपी सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए केस वापस लेने की अर्जी दाखिल की. सरकार ने तर्क दिया कि सामाजिक सद्भाव बनाए रखने और गवाहों के विरोधाभासी बयानों के कारण यह फैसला जरूरी है. इस कदम ने नया राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया. विपक्ष और नागरिक संगठनों ने इसका विरोध किया. इसे न्याय प्रक्रिया में हस्तक्षेप बताया गया.

पीड़ित परिवार की कानूनी चुनौती
अखलाक की पत्नी इकरामन ने सरकार के इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी. उन्होंने कहा कि केस वापसी से न्याय की उम्मीद खत्म हो जाएगी. हाईकोर्ट में इस याचिका पर सुनवाई शुरू हुई. परिवार ने साफ किया कि वे आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ेंगे. तब यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया.

सूरजपुर कोर्ट का अहम फैसला
अब 23 दिसंबर 2025 को ग्रेटर नोएडा की सूरजपुर कोर्ट ने यूपी सरकार की केस वापसी की अर्जी खारिज कर दी. कोर्ट ने अर्जी को आधारहीन बताया है. अदालत ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सामग्री मौजूद है. कोर्ट के इस फैसले को पीड़ित परिवार के लिए बड़ी राहत माना गया. इससे ट्रायल जारी रहने का रास्ता साफ हो गया.

बिसाहड़ा गांव में हालात
दस साल बाद भी बिसाहड़ा गांव में इस घटना की छाया बनी हुई है. गांव में सामाजिक और राजनीतिक तनाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. लोग खुलकर बात करने से अब भी कतराते हैं. यह मामला गांव की पहचान बन चुका है. गांव में मौजूद अखलाक का घर आज भी उस हिंसा की गवाही देता है.

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भारत में मॉब लिंचिंग पर बहस
अखलाक हत्याकांड आज भी भारत में मॉब लिंचिंग की बहस का केंद्रीय उदाहरण है. यह केस दिखाता है कि अफवाह कैसे हत्या में बदल सकती है. दिसंबर 2025 तक भी यह मामला न्याय की प्रक्रिया में है. यह सिर्फ एक परिवार की लड़ाई नहीं, बल्कि कानून और लोकतंत्र की परीक्षा है. उम्मीद की जाती है कि इस मामले में आने वाला फैसला देश के लिए मिसाल बनेगा.

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