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मुंबई में रेप केस में आरोपी NRI साइंटिस्ट बरी, कोर्ट ने कहा- महिला ने सहमति से शारीरिक संबंध बनाया!

मुंबई की एक अदालत ने शादी का झांसा देकर बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार एक एनआरआई वैज्ञानिक को बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि यदि कोई महिला पूरी समझदारी और सोच-समझ के साथ शारीरिक संबंध बनाती है, तो इसे 'झूठे वादे' की गलतफहमी नहीं माना जा सकता.

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प्रतीकात्मक फोटो.
प्रतीकात्मक फोटो.

मुंबई की एक अदालत ने शादी का झांसा देकर बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार एक एनआरआई वैज्ञानिक को बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि यदि कोई महिला पूरी समझदारी और सोच-समझ के साथ शारीरिक संबंध बनाती है, तो इसे 'झूठे वादे' की गलतफहमी नहीं माना जा सकता. यहां इस बात के ठोस सबूत नहीं है कि आरोपी ने जानबूझकर झूठा वादा किया था.

इस मामले की शुरुआत सितंबर 2019 में हुई जब दोनों की मुलाकात एक मैट्रोमोनियल वेबसाइट के जरिए हुई. एक-दूसरे की प्रोफाइल पसंद करने के बाद दोनों के बीच फोन और मैसेज के ज़रिए बातचीत शुरू हो गई. 31 दिसंबर, 2019 को वे मुंबई में नए साल का जश्न मनाने के लिए मिले. इस दौरान उन दोनों ने अंधेरी के एक फाइव स्टार होटल में चेक-इन किया.

महिला का आरोप था कि आरोपी ने शादी का वादा किया, फिर उसके ड्रिंक में नशीला पदार्थ मिलाकर बलात्कार किया. दोनों ने होटल में रात बिताई और फिर एक क्लब में पार्टी के लिए भी गए. अगले दिन वे होटल से चेकआउट कर अलग हो गए. इसके बाद आरोपी ने महिला से दूरी बनाना शुरू कर दी. उसने शादी से इनकार कर दिया, जिसके बाद पीड़िता ने केस दर्ज कराया.

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अदालत में सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने व्हाट्सएप चैट के रिकॉर्ड प्रस्तुत किए. इनसे यह सिद्ध होता था कि दोनों ने परस्पर शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा जताई थी. इसके अलावा यह भी उजागर किया गया कि महिला ने अपनी वैवाहिक स्थिति वैवाहिक वेबसाइट पर अविवाहित बताई थी, जबकि वो पहले से शादीशुदा थी और इस्लाम धर्म अपना चुकी थी.

अदालत ने कहा कि महिला ने न केवल आरोपी की संगति का आनंद लिया, बल्कि होटल में किसी भी कर्मचारी से कोई शिकायत नहीं की. इसके अलावा शिकायत दर्ज करने में छह दिन की देरी को लेकर भी कोई ठोस कारण नहीं बताया गया. अदालत ने इस जोर दिया कि पीड़िता ने स्वीकार किया था कि आरोपी ने अप्रैल 2020 में उससे शादी करने का आश्वासन दिया था. 

इससे यह सिद्ध होता है कि आरोपी ने तत्काल शादी से इनकार नहीं किया था, बल्कि परिस्थितियां कठिन थीं. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश किशोर मोरे ने अपने फैसले में कहा, "जब कोई महिला इस तरह की कार्रवाई के परिणामों को समझते हुए सहमति से शारीरिक संबंध बनाती है, तो यह सहमति तथ्यों की गलतफहमी पर आधारित नहीं मानी जा सकती.''

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