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फर्जी पुलिस, CBI का डर और WhatsApp कॉल... दिल्ली में 1.75 करोड़ की ठगी के आरोपी की जमानत खारिज

व्हाट्सएप वीडियो कॉल पर पुलिस की वर्दी में आरोपी, स्क्रीन पर सुप्रीम कोर्ट का फर्जी आदेश और फोन पर धमकियां... दिल्ली के एक शख्स से इस डिजिटल जालसाजी में 1.75 करोड़ रुपए ठग लिए गए. जब आरोपी ने अग्रिम जमानत की अर्जी लगाई, तो दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया.

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गिरफ्तारी के डर से हाई कोर्ट पहुंचा आरोपी, जज ने दिखाया सख्त रुख. (Photo: Representational)
गिरफ्तारी के डर से हाई कोर्ट पहुंचा आरोपी, जज ने दिखाया सख्त रुख. (Photo: Representational)

दिल्ली हाई कोर्ट ने साइबर ठगी के एक आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है. उसने व्हाट्सएप वीडियो कॉल के जरिए पुलिस अधिकारी बनकर एक व्यक्ति से 1.75 करोड़ रुपए ठग लिए. ठगी का तरीका इतना हाईटेक और सुनियोजित था कि आरोपी ने वीडियो कॉल पर सुप्रीम कोर्ट के फर्जी आदेश और सीबीआई के दस्तावेज तक दिखा दिए. दिल्ली पुलिस की साइबर सेल इस मामले की जांच कर रही है.

न्यायमूर्ति अमित महाजन ने 25 सितंबर को पारित अपने आदेश में कहा कि ये मामला साइबर क्राइम के गंभीर आरोपों से जुड़ा है. इसमें भोले-भाले लोगों को ठगने के लिए हाई टेक उपकरणों और मनोवैज्ञानिक दबाव का इस्तेमाल किया गया. कोर्ट ने कहा, "ऐसे साइबर ठगी से जुड़े अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं. तकनीक का जो वरदान हमें मिला है, वो आज अपराधियों के हाथों में लगकर विनाश का औजार बन गया है."

न्यायाधीश ने कहा कि इस तरह के मामलों में जांच एजेंसियों को कई तकनीकी स्तरों से गुजरना पड़ता है. कॉल डेटा, डिजिटल सिम लोकेशन, और फर्जी पहचान के जाल से निकलना आसान नहीं होता. कोर्ट ने कहा कि अपराध के दौरान आवेदक के पास मौजूद सिम कार्ड के विश्लेषण से यह साफ हुआ कि वो शिकायतकर्ता के साथ बातचीत कर रहा था. इस पूरे अपराध को अंजाम देने में सक्रिय भूमिका निभा रहा था.

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उन्होंने कहा कि जांच एजेंसी का काम कठिन है. उन्हें निष्पक्ष जांच के लिए पूरा अवसर मिलना चाहिए. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए गिरफ्तारी से पहले जमानत देना जांच को कमजोर कर सकता है. कोर्ट ने साफ कहा, "यह नहीं कहा जा सकता कि जांच आवेदक को परेशान करने के लिए की जा रही है. प्रथम दृष्टया यह मामला ठोस साक्ष्यों पर आधारित है, इसलिए अग्रिम जमानत याचिका खारिज की जाती है."

शिकायत के मुताबिक, 6 मई 2024 को एक व्यक्ति का फोन आया. उस व्यक्ति ने खुद को मुंबई के तिलक नगर पुलिस स्टेशन का पुलिस अधिकारी बताया. उसने दावा किया कि शिकायतकर्ता के आधार कार्ड से एक सिम कार्ड खरीदा गया है, जिसका दुरुपयोग अश्लील संदेश भेजने के लिए किया जा रहा है. शिकायतकर्ता के जेट एयरवेज के मालिक नरेश गोयल से संबंध की बात कही गई. उन पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगाए गए. 

आरोपी ने धमकी दी कि यदि उसने सहयोग नहीं किया, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी. कुछ ही देर बाद आरोपी ने व्हाट्सएप वीडियो कॉल की, जिसमें वो पुलिस वर्दी में नजर आया. उसने पीछे पुलिस स्टेशन जैसा सेटअप दिखाया और दस्तावेज भेजे. उन दस्तावेजों पर सुप्रीम कोर्ट और सीबीआई की फर्जी मुहरें लगी थीं. उसने दावा किया कि ये सरकारी आदेश हैं. शिकायतकर्ता को तुरंत बैंक डिटेल और आईडी देनी होगी.

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पीड़ित आरोपी के दबाव में आ गया. उसने अपने बैंक खाते से बड़ी रकम आरोपी को ट्रांसफर कर दी, जो कुल मिलाकर 1.75 करोड़ रुपए निकली. इसके बाद में जब सच्चाई सामने आई, तो उसने दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल में शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता और आईटी एक्ट की संबंधित धाराओं में केस दर्ज करके जांच शुरू कर दी. जांच में सामने आया कि आरोपी ने कई वर्चुअल नंबरों का इस्तेमाल किया. 

वहीं, कोर्ट ने यह मानने से इनकार कर दिया कि आरोपी को फंसाया गया है. कोर्ट ने कहा, "इस केस में तकनीकी सबूत पर्याप्त हैं. यह मामला महज ठगी नहीं बल्कि डिजिटल इकोसिस्टम के जरिए चलाए जा रहे एक सुनियोजित आपराधिक नेटवर्क का हिस्सा प्रतीत होता है." दिल्ली पुलिस आरोपी के नेटवर्क और उसके साथियों की तलाश में जुटी है. हाईकोर्ट के सख्त रुख और टिप्पणी ने साइबर क्राइम की गंभीरता को दर्शाया है.

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