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चीटिंग, दलाली और हवाला का रैकेट... फर्जी दूतावास वाले हर्षवर्धन जैन की ठग कंपनी ऐसे कर रही थी काम, जानें पूरी कहानी

गाजियाबाद में ठग हर्षवर्धन जैन ने वेस्ट आर्कटिक जैसे फर्जी देशों के नाम पर चार नकली दूतावास खोलकर बड़ा ठगी और हवाला रैकेट खड़ा कर दिया. STF की छापेमारी में विदेशी मुद्रा, फर्जी पासपोर्ट, नकली कार्ड और करोड़ों की धोखाधड़ी का खुलासा हुआ.

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हर्षवर्धन जैन की करतूत देख पुलिस भी हैरान है (फोटो- ITG)
हर्षवर्धन जैन की करतूत देख पुलिस भी हैरान है (फोटो- ITG)

Fake Embassy in Ghaziabad: नटवरलाल को गुजरे हुए जमाना हो गया लेकिन उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वालों की अब भी कमी नहीं है. ऐसे ऐसे ठग हमारे समाज में मौजूद हैं, जिनकी करतूतें हैरान करने वाली हैं. ऐसी ही महाठगी की कहानी सामने आई है, दिल्ली के करीबी शहर गाजियाबाद से. दिल्ली में करीब 150 से ज्यादा देशों के दूतावास या उच्चायोग मौजूद हैं. लेकिन एक नटवार लाल ने उसी गाजियाबाद में एक नहीं बल्कि चार-चार दूतावास खोल डाले. वो भी ऐसे देशों के दूतावास जिनका दुनिया में कोई वजूद ही नहीं है. और इन दूतावासों के नाम पर अंजाम दी गई ठगी की बड़ी वारदात.

गाजियाबाद में चल रही थी फर्जी एंबेसी
दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में दुनिया भर के सारे एंबेसी, दूतावास या उच्चायोग मौजूद हैं. और दिल्ली के करीब है यूपी का गाजियाबाद शहर. अभी चार महीने पुरानी बात है. इसी गाजियाबाद से ओमान देश के एक हाई कमिश्नर साहब पकड़े गए थे. अब चार महीने बाद इसी गाजियाबाद से एक एंबेसी भी बाहर निकल आई है. बस, सच्चाई ये है कि जैसे हाई कमिश्नर साहब नटवरलाल थे, वैसे ही ये एंबेसी भी ठगी का गढ़ है. 

कोठी को बनाया फर्जी दूतावास
हाई कमिश्नर साहब की कहानी बाद में, पहले ताजा-ताजा गाजियाबाद से बाहर आए इस एंबेसी का सच जान लीजिए. सच्चाई जान कर आप भी दंग रह जाएंगे. आइए सबसे पहले कहानी की शुरुआत गाजियाबाद के पॉश कविनगर इलाके में मौजूद इस आलीशान कोठी से ही करते हैं. क्योंकि ठगों ने इसी कोठी को फर्जी दूतावास का नाम दे रखा था. कविनगर की इस कोठी का पता है केबी 35. लेकिन आस-पास के दूसरे घरों की तरह इस मकान में लोगों की रिहायश नहीं है, बल्कि यहां से भारत सरकार के साथ कई देशों की राजनायिक गतिविधियों का संचालन होता है. 

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कोठी पर लगा था एंबेसी ऑफ वेस्ट आर्कटिक का बोर्ड
कम से कम आज से पहले तक तो कविनगर के लोगों को कुछ ऐसा ही पता था. क्योंकि कोठी के बाहर हाई प्रोफाइल नंबर प्लेट्स और बोनट के कोने पर अलग-अलग देशों के झंडे लगी एक से बढ़ कर एक चमचमाती हुई आलीशान गाड़ियां खड़ी होती थीं. जबकि कोठी में अक्सर सूटेड-बूटेड लोगों आना-जाना भी लगा रहता था. और तो और कोठी की दीवार पर बाकायदा एंबेसी ऑफ वेस्ट आर्कटिक का ब्रास बोर्ड चिपका हुआ था. ऐसे में हर किसी को लगता था कि शायद इस कोठी में किसी देश का दूतावास है, जहां से डिप्लोमेटिक एक्टिविटीज चलती हैं.

STF की छापेमारी में खुला फर्जीवाड़ा
लेकिन मंगलवार 22 जुलाई की शाम जब पुलिस ने यहां पर दबिश डाली, तो दूतावास के फर्जी ताम-झाम के पीछे ठगी का एक ऐसा काला साम्राज्य निकल कर सामने आया कि कविनगर में रहने वाले सारे के सारे लोग हैरत में पड़ गए. पुलिस को यहां ठगी के साम्राज्य का पता तो चला ही, नकली पासपोर्ट, विदेशी करंसी, नकली आई कार्ड, पैन कार्ड, प्रेस कार्ड सरीखी एक से बढ़ कर एक आपत्तिजनक चीजें तो हाथ लगी ही, साथ ही 47 साल का वो शख्स भी पुलिस के हाथ लगा, जो यहां से इस सारे खेल का संचालन कर रहा था. नाम है - हर्षवर्धन जैन. 

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शेल कंपनियों के जरिए चल रहा था हवाला रैकेट
जैन साहब लोगों को अलग-अलग देशों का राजदूत या फिर काउंसल बता कर उन्हें प्रभाव में लेते, उन्हें अपने साथ प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत दूसरे बड़े लोगों की तस्वीरें दिखाते और फिर किसी को विदेश में सेटल करवा देने का, किसी को कोई बड़ा कांट्रैक्ट दिलाने का, तो किसी को उनकी ब्लैक मनी व्हाइट करा देने का झांसा देते और अपनी जेब गर्म कर लेते. पुलिस की मानें तो असल में इस सारे गोरखधंधे की आड़ में वो शेल कंपनियों के जरिए हवाला रैकेट का संचालन कर रहा था.

कोठी के अंदर का मंजर देख पुलिस भी हैरान
नोएडा एसटीएफ को इस कोठी से फर्जी दूतावास के नाम पर चल रहे गोरखधंधे की खबर मिली थी. जिसके बाद पुलिस ने यहां पर छापेमारी की. असल में नोएडा एसटीएफ को गाजियाबाद और आस-पास के इलाके से कुछ शेल कंपनियों के जरिए हवाला कारोबार की खबर मिली थी. और इसी हवाला के धंधे का पीछा करती हुई पुलिस इस कोठी तक आ पहुंची, जहां पर ये फर्जी दूतावास चल रहा था. फिर तो हवाला के साथ-साथ लोगों को ठगने और हर तरह के सही गलत धंधों के लिए लाइजनिंग करने के पूरे के पूरे रैकेट का खुलासा हो गया. छापेमारी में बाहर लगी गाड़ियों के काफिले के बाद कोठी के अंदर का मंजर देख कर खुद पुलिस भी चौंक गई.

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कई देशों की करेंसी और पोसपोर्ट बरामद
अलग-अलग देशों की करंसी, 44 लाख 70 हजार रुपये कैश, विदेश मंत्रालय के नकली मुहर लगे दस्तावेज, 20 जोड़े डिप्लोमेटिक गाड़ियों के नंबर प्लेट्स, ग़ैरकानूनी तरीके से बनाए गए 12 फर्जी पासपोर्ट, हर्षवर्धन जैन के नाम पर बने 2 पैन कार्ड, 34 अलग-अलग सील मुहर, 12 महंगी घड़ियों का एक बॉक्स, 1 लैपटॉप, 1 मोबाइल फोन और आधार कार्ड, वोर्ट आईकार्ड, डिप्लोमेटिक कार्ड यहां तक कि गैरकानूनी प्रेस कार्ड तक हाथ लगे.

एनजीओ के नाम को बनाया देश का नाम
इस फर्जी दूतावास से एक नहीं बल्कि चार-चार ऐसे देशों के राजनायिक ऑफिसेज का संचालन किए जाने की बात सामने आई है. फर्जी देश यानी वेस्ट आर्कटिक, सबोरगा, पौलविया और लोडोनिया. जबकि हकीकत ये है कि ये सारे के सारे देश दुनिया के नक्शे पर कहीं हैं ही नहीं. उदाहरण के लिए वेस्ट आर्कटिक नाम के इस देश को ही लीजिए, जिसका एंबेंसी होने का बोर्ड इस कोठी की दीवार पर चिपका था. जब इस नाम को गूगल पर सर्च किया गया, तो पता चला कि ये वेस्ट आर्कटिक दरअसल एक ऐसा एनजीओ है, जो पर्यावरण सुरक्षा के लिए काम करता है. लेकिन कमाल ये है कि यहां एनजीओ को ही मुल्क का नाम देकर उसका दूतावास खोल कर ठगी का धंधा बदस्तूर चल रहा था.

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गाड़ियों पर दूतावासों की फर्जी नंबर प्लेट
अब आइए ठगी और हवाला कारोबार के इस काले धंधे की मॉ़डस ऑपरेंडी को बारीकी से समझते हैं. फर्जी दूतावास के बाहर खड़ी ये गाड़ियां और गाड़ियों में लगे ये नंबर प्लेट अपनी कहानी खुद बयान करते हैं. गाड़ियों में जो जेनुइन नंबर प्लेट हैं, वो तो हैं हीं, लेकिन उसके साथ-साथ एक दूतावासनुमा नंबर प्लेट भी चिपका दिया गया है. जबकि सचमुच के नंबर को प्रॉपर प्लेट की जगह ब्लू कलर की प्लेट पर लिखा गया है, ताकि लोगों को देखते ही ये गुमान हो जाए कि ये गाड़ियां किसी दूतावास की हैं. और तो और असर गहरा हो, इसलिए गाड़ियों में अलग-अलग फर्जी देशों के झंडे भी लगे हैं. पुलिस की मानें तो एक बार जब शिकार हर्षवर्धन जैन की इन्हीं ताम-झाम को देख कर उसके झांसे में फंस जाता था, तो फिर उसे लूटना उसके लिए आसान हो जाता था.

हर्षवर्धन जैन की ठग कंपनी
हर्षवर्धन ने फर्जी दूतावास वाली इस कोठी को किराये पर ले रखा था, जबकि वो इसी कविनगर इलाके में थोड़ी ही दूरी पर एक दूसरी कोठी में रहता है. पुलिस को छापेमारी के दौरान अंदर से जो चीजें मिली, उसने इसका इशारा दे दिया कि आखिर वो यहां से कर क्या रहा था. कोठी से जो 20 जोड़ी फर्जी डिप्लोमेटिक नंबर प्लेट मिले, उससे साबित होता है कि वो इन नंबर प्लेट्स को जरूरत के मुताबिक किसी भी गाड़ी में लगा कर उसका इस्तेमाल लोगों पर प्रभाव डालने के लिए करता था. ठीक इसी तरह जब जहां जैसी जरूरत होती फर्जी कार्ड्स, दस्तावेज और मार्फ की गई तस्वीरों के जरिए वैसे ही लोगों को प्रभाव में ले लिया जाता था. यानी साफ सीधे शब्दों में कहें तो ये ठगी की वो प्राइवेट लिमिडेट कंपनी थी, जिसमें हर्षवर्धन जैन जब जैसा जी चाहे, करता था.

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हर्षवर्धन ने लंदन से किया MBA
वैसे हर्षवर्धन जैन काम बेशक ठगी का कर रहा हो, लेकिन उसका ताल्लुक एक अच्छे परिवार से है. उसके पिता जेडी जैन एक जाने माने इंडस्ट्रियलिस्ट रहे हैं, जो गाजियाबाद के जैन रोलिंग मिल के मालिक थे. जैन परिवार का राजस्थान समेत कई राज्यों में मार्बल और माइनिंग का भी काम था. खुद हर्षवर्धन जैन ने लंदन के कॉलेज ऑफ एप्लाइड साइंसेज से एमबीए की पढ़ाई की. 

चंद्रास्वामी से मिलने के बाद बदली जिंदगी
लेकिन हर्षवर्धन जैन का ट्रैक तब चेंज हो गया, जब उसकी मुलाकात विवादास्पद तांत्रिक चंद्रास्वामी से हुई. वो चंद्रास्वामी से साल 2000 में मिला, जिसने उसकी मुलाकात आर्म्स डीलर अदनान खागोशी और लंदन के रहने वाले एहसान अली सैयद से करवाई. जिसके साथ मिलकर हर्षवर्धन जैन ने लंदन में 12 फर्जी कंपनियां बनाई और लाइजनिंग यानी दलाली का काम शुरू कर दिया.

चीटिंग, दलाली और हवाला का रैकेट
एसटीएफ ने बताया है कि इसके बाद वो ऐसे ही संदिग्ध लोगों के साथ मिलता-जुलता रहा और दलाली के जरिए पैसे कमाता रहा. साल 2012 में उसके पास से पुलिस ने एक सैटेलाइट फोन बरामद किया था. तभी उसने खुद को एक सबोरगा नाम के फर्जी देश का एडवाइजर और वेस्ट आर्कटिक समेत कई ऐसे ही काल्पनिक देशों का एबेंसेडर बता कर दलाली का कारोबार करता रहा. और फिलहाल गाजियाबाद के इसी फर्जी दूतावास से चीटिंग, दलाली और हवाला का रैकेट चला रहा था.

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(गाजियाबाद से मयंक गौड़, अरविंद ओझा के साथ हिमांशु मिश्रा का इनपुट)

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