
इंसान के बनाए एक भगवान के चरणों की धूल ने 121 इंसानों की जान ले ली. आज के दौर में ये देख सुनकर यकीन नहीं होता, लेकिन सच्चाई यही है कि उत्तर प्रदेश पुलिस के एक हवलदार से बाबा बने भोले बाबा की गाड़ी के पहियों से उड़ती धूल को माथे पर लगाने की होड़ में भगदड़ मची और ऊपर से कमाल ये कि जिंदगी की आस में आए भक्तों को अपने सामने मरता देखने के बावजूद उन्हें उनका भगवान छोड़कर भाग गया और ऐसा भागा कि अब तक सामने नहीं आया.
इंसानों के बनाए भगवान में इंसानियत की कमी
वो सब इंसान नहीं, वे तो चरणों की धूल हैं. अपने ही जैसे एक इंसान के चरणों की धूल. उस इंसान के चरणों की धूल, जिसके चरणों की धूल को पाने के लिए अपने ही जैसे इंसानों के चरणों तले रौंदते, कुचलते, मसलते, सिसकते, सुबकते, हांफते टुकड़ों और किस्तों में सांसों की डोर तोड़ते रहे. और कमाल ये कि जिस भगवाननुमा इंसान के चरणों की ज़रा सी धूल की ख़ातिर ये सब मारे गए, भगवान बन बैठे उस इंसान में इतनी भी इंसानियत नहीं थी कि धूल उड़ाती अपनी गाड़ी के काफ़िले को रोक कर अपने भक्तों की सुध लेता. यही फर्क है इंसानों के बनाए भगवान और एक भक्त के बीच. यही फर्क है एक भक्त और अंधभक्त के बीच. इंसान के बनाए भगवान के चरणों की धूल के लिए जो ढाई लाख भक्त पहुंचे थे, उनमें से 121 भक्तों की मौत के 24 घंटे गुजरने के बाद भी वो भगवान गायब है.
चरणों की धूल की पूरी कहानी
दो कानूनी और प्रशासनिक दस्तावेज सामने आए हैं. एक उसी इलाके के एसडीएम की रिपोर्ट और दूसरी इस मातमी हादसे की पहली कहानी. कानूनी दस्तावेज यानी एफआईआर की जुबानी. इन दोनों ही दस्तावेजों में चरणों की धूल की पूरी कहानी तो है पर कमाल ये है कि इसमें कहीं भी इंसानों के बनाए उस भगवान यानी भोले बाबा यानी यूपी पुलिस का पूर्व हवलदार यानी सूरजपाल सिंह जाटव यानी नारायण साकार हरि को सीधे तौर पर जिम्मेदार या कसूरवार नहीं ठहराया गया है. जिसके चरणों के धूल की वजह से 121 इंसानों ने पांव तले कुचलते हुए उखड़ती सांसों के साथ दम तोड़ दिया था.
एसडीएम की रिपोर्ट में कई खुलासे
सबसे पहले बात एसडीएम की रिपोर्ट की. हाथरस के एसडीएम रवींद्र कुमार ने ये रिपोर्ट अपने बॉस यानी डीएम हाथरस को भेजी है. डीएम हाथरस मतलब यूपी सरकार को भेजी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक दो जुलाई को नेशनल हाई वे नंबर 51 पर भोले बाबा का प्रवचन कार्यक्रम था. एसडीएम खुद मौके पर मौजूद थे. सत्संग के पंडाल में दो लाख से ज्यादा की भीड़ थी. दोपहर साढ़े 12 बजे भोले बाबा प्रवचन देने के लिए पंडाल में पहुंचे थे.
चरणों की धूल माथे पर लगाने की होड़
करीब एक बज कर 40 मिनट पर प्रवचन समाप्त कर बाबा पंडाल से निकल गए. हाईवे नंबर 51 पर अब वो एटा की तरफ जा रहे थे. जिस रास्ते से भोले बाबा जा रहे थे, उस रास्ते पर भक्तों की भीड़ उनके दर्शन चरण स्पर्श और उनके चरणों की धूल लेकर अपने माथे पर लगाने लगी. बीच रोड पर बने डिवाइडर पर बहुत सारे भक्त पहले से ही खड़े थे. वो भोले बाबा के दर्शन के लिए डिवाइडर से कूद पड़े.

SDM के मुताबिक ऐसे हुआ हादसा
भीड़ बाबा तक न पहुंच पाए, इसके लिए बाबा के निजी सुरक्षाकर्मचारी यानी ब्लैक कमांडो और सेवादारों ने भीड़ के साथ धक्कामुक्की करना शुरू कर दिया. इसमें कुछ लोग नीचे गिर गए. तब भी भीड़ नहीं मानी. अफरातफरी का माहौल हो गया. खुद को इस भगदड़ से बचाने के लिए भीड़ खुले खेत की तरफ सड़क के दूसरी तरफ भागी. सड़क से खेत में उतरने के दौरान ढलान होने की वजह से ज्यादातर भक्त फिसल कर गिर पड़े. इसके बाद वो उठ नहीं सके. और भीड़ उनके ऊपर से होकर इधर-उधर भागने लगी. तो ये थी एसडीएम की रिपोर्ट.
हादसे की कहानी, FIR की जुबानी
अब आइए एफआईआर की जुबानी आपको इस हादसे की कहानी आपको बताते हैं. हादसे के करीब 8 घंटे बाद रात दस बज कर 18 मिनट पर सिकंदराराऊ थाने में दर्ज इस कहानी के मुताबिक 2 जुलाई को सिंकदराराऊ के फुलरई गांव के करीब जीटी रोड के पास गुरु साकार विश्वहरि भोले बाबा के सत्संग के आयोजन के लिए उनके मुख्य सेवादार देव प्रकाश मधुकर की तरफ से थाने को तहरीर मिली थी.
80 हजार की बजाय पहुंचे थे ढाई लाख से ज्यादा भक्त
कार्यक्रम में करीब 80 हजार लोगों के इकट्ठा होने की इजाजत मांगी गई थी. उसी हिसाब से पुलिस प्रशासन ने इंतजाम किेए. लेकिन 2 जुलाई को सत्संग के दौरान ढाई लाख से ज्यादा भक्तों की भीड़ इकट्ठी हो गई. जिसकी वजह से जीटी रोड पर ट्रैफिक जाम हो गया. कार्यक्रम खत्म होने के बाद जब भोले बाबा अपनी गाड़ी में सवार हो कर दोपहर करीब दो बजे जब वापस लौट रहे थे, तभी महिला पुरुष और बच्चे उनकी गाड़ी के गुजरने के रास्ते से धुल समेटना शुरू कर दिया.
आयोजनकर्ताओं और सेवादारों ने नहीं की मदद
श्रद्धालुओं की बेतहाशा भीड़ की वजह से नीचे बैठे झुके श्रद्धालु दबने कुचलने लगे. जीटी रोड की दूसरी तरफ लगभग तीन मीटर गहरे खेतों में पानी और कीचड़ था. आयोजन समिति और भोले बाबा के सेवादारों ने हाथों में लिए डंडों से भीड़ को जबरन रोकने की कोशिश की. जिससे भगदड़ मच गई. भगदड़ के बाद आयोजनकर्ताओं और सेवादारों ने कोई मदद नहीं की.
FIR के पन्नों से गायब बाबा
बेशर्मी का आलम देखिए कि ना एसडीएम की रिपोर्ट में और ना ही एफआईआर में उस भोले बाबा को कहीं आरोपी नहीं बनाया गया, जिसके चरणों की धूल में 121 लोग मटियामेट हो गए. प्रवचन बाबा का. सत्संग बाबा का. आयोजन बाबा का. भक्तों के भगवान बाबा. लेकिन एफआईआर के पन्नों से गायब बाबा. और सरकार का दावा ये कि कोई भी नहीं बख्शा जाएगा. वैसे अकेले बाबा को भी क्या ही कहा जाए? कायदे से इन 121 मौतों के लिए अपना पूरा सिस्टम ही जिम्मेदार है.

अस्पताल और ट्रॉमा सेंटर पर नहीं थे डॉक्टर
सच्चाई तो ये है कि 80 हजार भक्तों के इंतजाम के लिए भी कोई इंतजाम नहीं था. इसकी बानगी इसी से समझ जाइए कि जिस वक्त ये हादसा हुआ, तब इस गांव के सबसे करीबी सरकारी अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर भी सिर्फ और सिर्फ एक जूनियर डॉक्टर तैनात था. अगर खुद पुलिस और प्रशासन ने 80 हजार लोगों के हिसाब से भी सत्संग की इजाजत दी, तो भी क्या प्रशासन को ये पता नहीं था कि अगर कुछ हो जाता है, तो कम से कम अस्पताल में दो-चार डॉक्टर तो मौजूद हों. पर इसमें प्रशासन को भी क्या कोसें? अपने देश में बाबाओं की धौंस ही कुछ ऐसी है कि पुलिस प्रशासन भी क्या करे, जब खुद सरकार ही बाबाओं के चरणों में हो.
हवलदार सूरजपाल ऐसे बना भोले बाबा
ये भोले बाबा भी ऐसे ही बाबा थोड़े ही बने! बड़े-बड़े नेताओं ने इनसे आशीर्वाद लिया, तो सत्ता की उसी ताकत की वजह से ये भक्तों को आशीर्वाद देने लायक बने. असल में जब भोले बाबा खुद पुलिस में थे तभी उनको वर्दी की ताकत के साथ-साथ सत्ता की ताकत का भी अहसास हो चुका था. इसीलिए नौकरी से उनका मोह भंग हो गया. वैसे भी 17 साल की नौकरी में कुछ कर ही नहीं पाए थे. जब खुद का करियर नहीं संवार पाए, तब उन्हें देश के फल-फूल रहे उस वक्त के कई बाबाओं की याद आई. लगा ये सही धंधा है. ना इसमें पूंजी लगानी है. ना और कोई सिरदर्दी है. बस मां-बाप के रखे नाम सूरजपाल सिंह जाटव को वापस मां-बाप को लौटा कर भोला बनना है और फिर भक्त तो हैं ही. वो भोले बाबा बना देंगे.
फिल्मी कहानी से कम नहीं बाबा की कहानी
और सच में सूरजपाल उर्फ भोले बाबा गलत नहीं थे. गलत होते तो इतनी तेज उमस भरी गर्मी में धूल फांकने के लिए दो ढाई लाख लोग यूं ही तो नहीं चले आते. पर यहीं एक सवाल भी है कि आखिर पुलिस का एक हवलदार वर्दी उतार कर सफेद सूट वाला बाबा कैसे बन बैठा? इस बाबा में ऐसा कौन सा चमत्कार था, जिसको उनके भक्त नमस्कार करने लगे. तो कायदे से खुद इन बाबा की कहानी भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है.
बाबा पर लगा था यौन शोषण का आरोप
दरअसल, सूरजपाल सिंह जाटव कभी यूपी पुलिस का एक सिपाही हुआ करता था. इस दौरान लंबे समय तक उसकी पोस्टिंग लोकल इंटेलिजेंस यूनिट यानी एलआईयू में रही. लेकिन नौकरी के दौरान ही उस पर यौन शोषण का आरोप लगा और उसको गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद उसे जेल जाना पड़ा और इसी जेल यात्रा के चलते उसकी पुलिस की नौकरी भी चली गई. लेकिन जेल में रहते हुए न जाने कौन सा ज्ञान मिला कि बाबा बन गया.
जेल से आकर देने लगा था प्रवचन
जेल से बाहर आकर यौन शोषण का आरोपी पुलिस वाला सीधे सत्संग करने और उपदेश देने वाला संत बन बैठा. इसके भजन प्रवचन की शुरुआत पहले इसके घर से हुई. फिर देखते ही देखते इसके चाहने वालों की भीड़ बढ़ने लगी और तब घर से निकल कर सत्संग का सिलसिला अड़ोस-पड़ोस में, फिर खुली जगहों में, पंडालों में और अलग-अलग राज्यों में शुरू हो गया. बाबा अपने सत्संगो में अपनी नौकरी जाने की बात कभी नहीं कहता.

बाबा के खिलाफ 5 मुकदमें
वो ये बताता कि भगवान के दर्शन होने के बाद उसने खुद ही पुलिस की नौकरी से वॉलेंटियरली रिटायरमेंट ले लिया है. ऐसा नहीं है कि भोले बाबा के नाम से मशहूर सूरजपाल सिंह जाटव पर सिर्फ यौन शोषण का एक एफआईआर ही दर्ज हुआ था, बल्कि सच्चाई तो ये है कि उसके ऊपर अब तक पांच मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. इनमें 1-1 केस उत्तर प्रदेश के आगरा, इटावा, कासगंज, फर्रुखाबाद और राजस्थान के दौसा में दर्ज हुआ है.
हमेशा सफेद सूट में नजर आता है बाबा
बाबा को जानने वाले बताते हैं कि जेल से बाहर आने के बाद उसने लोगों ये से कहना शुरू कर दिया कि उसे भगवान का साक्षात्कार हो गया है. उसके आशीर्वाद से लोगों के दुख दूर हो सकते हैं. लेकिन वो दूसरे बाबाओं की तरह भगवा वस्त्र नहीं पहनता था और ना ही उनकी तरह बाल और दाढ़ी रखता, बल्कि इसके उलट वो हमेशा सफेद सूट में ही नजर आता और शायद यही उसकी एक यूएसपी यानी यूनिक सेलिंग प्वाइंट भी बन गई.
हैंडपंप से बीमारियों का इलाज!
इसके बाद बाबा ने लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने की शुरुआत कर दी. उसके चाहने वालों में गरीब और कम पढ़े लिखे लोगों की तादाद ही ज्यादा है. उन दिनों बाबा के घर के बार एक हैंडपंप हुआ करता था. बाबा ने उसके पानी को चमत्कारिक बताना शुरू कर दिया और लोग उसी हैंडपंप का पानी पीने के लिए दूर-दूर से आने लगा. इसके बाद बाबा ने जहां-जहां आश्रम बनाये या जहां-जहां भी उसका ठिकाना होता, वहां हैंडपंप जरूर लगा लेता.
गोद ली गई भतीजी की मौत
भक्त हैंडपंप का पानी पीकर खुद को धन्य समझने लगते. बाबा को जानने वाले एक शख्स पंकज ने बाबा से जुड़ा एक वाकया बताया. उनका कहना है कि भोले बाबा उर्फ सूरजपाल सिंह जाटव की अपनी कोई संतान नहीं है. उसने अपनी भतीजी को गोद ले लिया था. कुछ समय बाद उसे कैंसर होने की बात सामने आई. एक बार जब बाबा सत्संग से लौट कर आए, तब तक उनकी गोद ली हुई भतीजी की मौत हो चुकी थी.
घर में रख ली थी भतीजी की लाश
तब बाबा के अनुयायी उनकी बेटी का अंतिम संस्कार नहीं करने देना चाहते थे. क्योंकि उन्हें यकीन था कि बाबा अपने चमत्कार से अपनी बेटी को ठीक कर देंगे. बल्कि कुछ तो दावा कर रहे थे कि बाबा ने अपनी बेटी को ठीक कर भी दिया है. इसके बाद वहां हंगामा शुरू हो गया. आखिरकार कहानी में पुलिस की एंट्री हुई और अनुयायियों पर लाठी चार्ज कर बाबा को गिरफ्तार कर लिया. हालांकि बाद में इस मामले में बाबा बरी हो गया.

माताश्री के नाम से जानी जाती है बाबा की पत्नी
58 वर्षीय सूरजपाल सिंह जाटव कासगंज जिले के बहादुर नगर गांव के एक दलित परिवार से है, जो हाथरस से लगभग 65 किलोमीटर दूर है. इस गांव की प्रधान नाजिस खानम के पति जफर अली के मुताबिक सूरजपाल शादीशुदा है. उनके कोई बच्चे नहीं हैं. पुलिस बल छोड़ने के बाद उन्होंने अपना नाम भोले बाबा रख लिया था, जबकि उनकी पत्नी को माताश्री के नाम से जाना जाता है. उनका परिवार संपन्न था. वो तीन भाइयों में दूसरे नंबर के हैं.
30 बीघा जमीन पर आलीशान आश्रम
प्रधानपति ने आगे बताया कि उनके बड़े भाई की कुछ साल पहले मौत हो गई थी, जबकि उनके छोटे भाई राकेश, जो एक किसान हैं, अभी भी अपने परिवार के साथ गांव में रहते हैं. उन्होंने गांव में अपनी 30 बीघा जमीन पर आश्रम बनवाया है. दूसरे जिलों और यहां तक कि राज्यों से भी लोग उनका आशीर्वाद लेने आश्रम आते हैं. उन्हें आश्रम में रहने की सुविधा भी दी जाती है. अपने खिलाफ़ किसी साजिश के संदेह में उन्होंने गांव छोड़ दिया था.
आगरा के केदार नगर में है बाबा का ठिकाना
बाबा अपने गांव से निकल कर पहले आगरा के केदारनगर में रहते थे. वहां बाबा के पड़ोसियों का अपना अलग ही दर्द है. उनका कहना है कि बाबा अब अपने पुराने मकान में नहीं आते. यहां आए हुए उन्हें 15 साल हो चुके हैं. लेकिन इसके बावजूद बाबा के भक्त उनके पुराने मकान में हाजिरी लगाते हैं. भक्तों की भीड़ से अक्सर उनके घर के पास की गली बंद हो जाती है. कई बार प्रोग्राम के बाद पड़ोसियों की बाइक और दूसरी छोटी-मोटी चीजें चोरी चली जाती हैं.
मंच पर बाबा के साथ नजर आती है मामी
हालांकि केदार नगर का ये घर हर हफ्ते दो दिन सिर्फ कुछ ही घंटों के लिए खुलता है. घर खोलने के लिए बाबा के लोग आते हैं. मंगलवार और शनिवार को यहां सिर्फ बाबा के घर के दर्शन करने के लिए उनकी चौखट को चूमने के लिए बड़ी तादाद में दूर दराज से महिलाएं यहां आती हैं. उनके गांव वाले बताते हैं कि बाबा की पत्नी का नाम कटोरी देवी है. लेकिन उनके साथ सत्संग में सिंहासन में उनके बगल में बैठने वाली महिला उनकी पत्नी नहीं, बल्कि मामी हैं.
देश के कई राज्यों में मौजूद हैं बाबा के भक्त
बाबा के रिश्ते अपने भाई के साथ ही ठीक नहीं हैं. इसलिए वो अब अपने गांव भी नहीं जाता. फिलहाल उनके भक्त उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली के अलावा देश के दूसरे हिस्सों में भी मौजूद हैं. जो सत्संग में आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं. फिलहाल हाथरस वाले हादसे के बाद एफआईआर तो दर्ज हो गई है, लेकिन एफआईआर में बाबा का नाम नहीं है. एफआईआर में नाम न होने के बावजूद हादसे के बाद से बाबा फरार यानी गायब हैं.
(श्रेया चटर्जी और संतोष शर्मा के साथ हिमांशु मिश्र का इनपुट)