बंद दुनिया के बीच तमाम बुरी खबरें आ रही है. भारत के बारे में तो अब नई बुरी खबर ये आ रही है कि कोरोना का कहर जून-जुलाई में शायद यहां सबसे ज्यादा टूटेगा. क्योंकि तब मानसून आ चुका होगा और मानसून वायरस फैलाने में काफी मददगार होता है. मगर इन बुरी खबरों के बीच खुशखबरी भी आने वाली है. अब ये खुशखबरी सबसे पहले इजराइल से आएगी, इटली से, ब्रिटेन से या चीन से. ये नहीं कह सकते. पर खुशखबरी आने वाली जरूर है.
सांसों पर पहरा लगाए मास्क. दिल को दिल और हाथ को हाथों से छूने से मना करते दस्ताने. दो गज की दूरी भरे रिश्ते. सूनी सड़कें. वीरान गलियां. बदरंग बाजार. बोझिल आबोहवा. इन सबको इंतजार है. इंतजार है एक ऐसी सुई का जो रगों में उतरे और कोरोना बाहर निकल जाए. बंद भारत और बंद दुनिया की उदासी के बीच कोरोना को शिकस्त देने के लिए एक साथ कई देश बाज़ी मारने में लगे हैं. होड़ इस बात की है कि कौन सबसे पहले उस वैक्सीन को बनाता है, जिस वैक्सीन पर पूरी दुनिया की नज़रें गड़ी हैं.
मगर फिलहाल रेस में जो देश सबसे आगे नज़र आ रहे हैं, उनमें इज़राइल, ब्रिटेन, इटली, चीन, जापान, स्पेन, जर्मनी, भारत और अमेरिका ही नज़र आ रहे हैं. इन देशों में भी सबसे आगे फिलहाल इज़राइल दिखाई दे रहा है. इज़राइल ने दावा किया है कि उसने कोरोना के असर को बेअसर करने के लिए फिलहाल वैक्सीन से भी ज़्यादा कारगर एंटीबॉडी बना ली है.
इज़राइल ने आधिकारिक तौर पर कोरोना का काल बनने वाले इलाज का खुलासा कर दुनिया की आंखों में उम्मीद की चमक दी है. इज़राइल के रक्षा मंत्री नैफताली बेन्नेट के मुताबिक इज़राइल इंस्टीट्यूट फॉर बायोलॉजिकल रिसर्च यानी IIBR ने कोरोना वायरस को बेअसर करने वाले मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को इंसानी शरीर के सेल से अलग करने में कामयाबी हासिल कर ली है.
कोरोना पर फुल कवरेज के लिए यहां क्लिक करें
इजराइली मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस का आधिकारिक दावा है कि इंस्टीट्यूट फॉर बायोलॉजिकल रिसर्च ने ग्राउंड ब्रेकिंग साइंटिफिक डेवलपमेंट कंप्लीट कर लिया है. और इस लैब में इंसानी सेल से एंटीबॉडीज़ को अलग कर कमाल कर दिखाया है. जिससे अब कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज़ के शरीर में इसके एंटीबॉडी यानी शरीर में पाए जाने वाले वो प्रोटीन जो इस वायरस को बेअसर करें. उसे अब इंसानी शरीर में सीधे डाला जा सकता हैं. जिससे ना सिर्फ कोरोना को फैलने से रोका जा सकेगा बल्कि जो इसकी जद में आ चुके हैं उनकी जान भी बचाई जा सकेगी.
इज़राइल का बहुत बड़ा दावा!इज़राइल के इंस्टीट्यूट फॉर बायोलॉजिकल रिसर्च ने इसके लिए कई अलग अलग पैरामीटर्स पर काम किया है. मसलन, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी रिफाइंड है और इसमें नुकसान पहुंचाने वाले प्रोटीन की मात्रा कम है. इंसानी शरीर के लिए प्लाज़्मा थेरेपी से कहीं ज़्यादा सुरक्षित है मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़. मोनोक्लोनल एंटीबॉडी शरीर में घुस चुके कोरोना वायरस को ना सिर्फ बेअसर बल्कि खत्म भी कर सकता है. इज़राइल में काफी बड़े पैमाने पर लैब में टेस्ट किए हैं और ये टेस्ट काफी हद तक पॉजिटिव है. रिसर्च फिलहाल जारी है. जल्द ही इसका पेटेंट करवाकर इसकी प्रोडक्शन शुरु कर दी जाएगी. हालांकि इस तमाम प्रक्रिया में कम से कम 6 महीने से लेकर एक साल तक का वक्त लग सकता है.
यानी इज़राइल अभी वैक्सीन नहीं बना रहा है, बल्कि वैक्सीन से दो कदम आगे की चीज़ बना रहा है, वैक्सीन दरअसल उन लोगों के किसी काम की नहीं है. जो इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं. मगर मोनोक्लोनल एंटीबॉडी से उन लोगों की भी जान बच सकती है. जो कोरोना संक्रमित हैं. तो फिर क्या ये मान लिया जाए कि ये वैक्सीन का विकल्प है. जानकारों का कहना है कि ऐसा कहना पूरी तरह से गलत नहीं होगा. मगर कम से कम तब तक जब तक कोरोना की वैक्सीन नहीं बन जाती. तब तक तो मोनोक्लोनल एंटीबॉडी एक विकल्प ज़रूर हो सकता है.
आखिर क्या है ये मोनोक्लोनल एंटीबॉडी
फर्ज़ कीजिए कि तीन लोग हैं. पहला शख्स जिसमें इंफेक्शन के बाद वो तमाम सिम्टम्स मौजूद हैं, जो कोरोना पॉज़िटिव में होते हैं. दूसरा शख्स कोरोना का एसिम्टोमैटिक पेशेंट है. यानी वो कोरोना से पॉज़िटिव तो है मगर उसे पता ही नहीं है. और तीसरा वो शख्स है ,जिसे एक महीने पहले कोरोना हुआ था. मगर दो हफ्तों के बाद उसकी बॉडी के इम्यून सिस्टम ने कोरोना वायरस का एंटी बॉडीज़ बनाना शुरु कर दिया. और अब इस तीसरे शख्स का इम्यून सिस्टम इतना स्ट्रांग हो गया है कि इसने कोरोना के वायरस को बेअसर कर दिया है.
यानी तीन अलग-अलग लोगों में कोरोना का वायरस अलग-अलग तरीके से रिएक्ट कर रहा है. जिन देशों में तीसरे शख्स के जैसे इम्यून सिस्टम वाले लोग ज़्यादा हैं. वहां ये वायरस बेअसर है. क्योंकि ऐसी हालत में वायरस का संक्रमण होता ही नहीं और दुनिया इसकी जद में नहीं आती. इसे ही हर्ड इम्यूनिटी भी कहते हैं. जो शुरुआत में इंग्लैंड ने ट्राई किया था. मगर वहां ये फेल हो गया. इसका लॉजिक ये है कि लोग इस वायरस के खिलाफ खुद ब खुद एंटी बॉडीज़ डेवलप कर लेंगे और इससे वो इम्यून हो जाएंगे और तब ये फैलेगा भी नहीं. मगर कोरोना वायरस के साथ दिक्कत ये है कि ये बिलकुल नए तरीके का वायरस है. और बॉडी के मौजूदा इम्यून सिस्टम के लिए काफी दिक्कतें पैदा कर रहा है. इसीलिए अब तक कोरोना के कुल मामलों में महज़ 2 से 3 फीसदी लोगों का शरीर ही इस वायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज़ बना पाया है.
कोरोना कमांडोज़ का हौसला बढ़ाएं और उन्हें शुक्रिया कहें...
कैसे काम करती एंटीबॉडीज़
अब जानते हैं कि आखिर ये एंटीबॉडीज़ काम कैसे करती हैं. और ये वायरस के खिलाफ आपके इम्यून सिस्टम को कैसे मदद करती है. दरअसल एक वायरस के लिए सबसे अहम काम होता है ह्यूमन बॉडी के अंदर एक सेल को ढूंढना. एक इंसान के शरीर में सिर से लेकर पांव तक कई ट्रिलियन सेल्स मौजूद होते हैं. और इन कई ट्रिलियन सेल्स में ये वायरस बस एक सेल को कब्जा कर फिर उससे खुद की कॉपी बनाता है. इस तरह आपकी पूरी बॉडी में ये फैल जाता है. लेकिन अगर किसी के पास कोरोना वायरस की एंटीबॉडी है. तो उसकी बॉडी में ये वायरस घुस ही नहीं पाएगा. जो एंटी बॉडीज हैं वो उस वायरस को एंट्री गेट पर ही रोक देंगी.
कैसे काम करेगा मोनोक्लोनल एंटीबॉडी?
अगर किसी इंसान के शरीर ने कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद एंटी बॉडीज डेवलप कर लिया है. तो वो अपनी बॉडी में अब कोरोना वायरस को बेअसर कर सकता है और उसको बॉडी के बाहर भी फेंक सकता है. विज्ञान की भाषा में एंटीबॉडीज़ एक प्रोटेक्टिव प्रोटीन है. जो हमारा इम्यून सिस्टम किसी बाहरी वायरस के लिए बनाता है. अब इसके बाद एक और अहम बात ये है कि अगर किसी का इम्यून सिस्टम स्ट्रांग है और उसके शरीर में एंटी बॉडीज़ डेवलप हो चुकी हैं. तो ये इंसान उन लोगों की जान बचा सकता है. जिसके शरीर में एंटी बॉडीज़ अभी तक नहीं बनी है. इसको प्लाज़्मा थेरेपी भी कहते हैं. तो इस तरह एक एंटी बॉडीज़ बना चुके शरीर का प्लाज़्मा दूसरे संक्रमित शरीर की मदद कर सकता है.
मगर ये तरीका 100 फीसदी सटीक बैठेगा ये कह पाना मुश्किल है. हालांकि अब तक इस थेरेपी से भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान और चीन में कई लोगों की जान बच चुकी है. मगर इस पर अभी भी रिसर्च जारी है. इज़राइल काफी बड़ी तादाद में संक्रमित लोगों को बचाने के लिए प्लाज़्मा थेरेपी का इस्तेमाल कर रहा है. टाइम्स ऑफ़ इज़राइल में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक कोरोना से ठीक हो चुके मरीज़ों की प्लाज़्मा से 33 मरीज़ों को ठीक किया जा चुका है.