भयावह है...कोरोना वायरस का कहर. उतना ही भयावह होता है इस बीमारी से होने वाला दर्द. अब एक वैज्ञानिक ने दावा किया है कि चमगादड़ की वजह से दुनिया में कोरोना वायरस फैला है. अब चमगादड़ ही मानव जाति को बचाएगा. इस वैज्ञानिक ने चमगादड़ों पर कई साल अध्ययन किया है. आइए जानते हैं इस वैज्ञानिक का दावा क्या है और वह किस आधार पर ये बात कह रहे हैं. (फोटोः रॉयटर्स)
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आपको बता दें दुनियाभर के शोधकर्ता चमगादड़ों से के अंदर मौजूद 500 से ज्यादा कोरोना वायरसों की खोज कर चुके हैं, जो इंसानों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इन चमगादड़ों और वायरसों को ऐसी गुफाओं में खोजा गया है, जहां इनकी पूरी बस्ती है. वैज्ञानिक यहां से चमगादड़ों के जालों, थूक और खून समेत कई तरह के नमूने एकत्रित करते हैं. (फोटोः रॉयटर्स)
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जिस वैज्ञानिक ने यह दावा किया है उनका नाम है पीटर डैसजैक. पीटर इकोहेल्थ एलायंस नाम की एक गैर सरकारी संस्था के कर्ताधर्ता हैं. यह वैज्ञानिक संस्था है जो घातक वायरसों की खोज, पहचान और बचाव करने में दुनियाभर के शोधकर्ताओं की मदद करता है.
From our archives: Both the makeup of a virus and human activities play into whether a pathogen makes the jump from animals to humans, Peter Daszak says. (2/2) https://t.co/VX8J6Y6kmL
पी़टर डैसजैक 10 सालों में 20 से ज्यादा देशों में खतरनाक वायरस की खोज कर चुके हैं. पीटर दुनिया भर के शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों को हर तरह के वायरस की जानकारी देते हैं. (फोटोः रॉयटर्स)
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फिर पीटर से मिली जानकारी के अनुसार ये पता लगाया जाता है कि कौन सा वायरस इंसानों में फैल सकता है. ताकि कोरोना जैसी महामारी के लिए दुनिया को पहले से तैयार किया जा सके. (फोटोः रॉयटर्स)
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पीटर डैसजैक ने कहा कि चमगादड़ों के खून में कोरोना और उसके जैसे कई वायरसों से लड़ने वाले एंटीबॉडी मिले हैं. ये एंटीबॉडी चमगादड़ों को कोरोना जैसे कई वायरसों से लड़ने में मदद करते हैं. (फोटोः रॉयटर्स)
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पीटर डैसजैक ने कहा कि इन्हीं एंटीबॉडी की मदद से कोविड-19 कोरोना वायरस से लड़ने के लिए वैक्सीन बनाया जा सकता है. इसके लिए वैज्ञानिकों को नए सिरे से मेहनत करनी होगी. (फोटोः रॉयटर्स)
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पीटर डैसजैक ने कहा कि केन्या में लोगों को बताया जा रहा है कि अपने घरों में मौजूद छेद बंद कर दें ताकि चमगादड़ घरों में न घुसें. कई जानवरों से वायरस फैल सकता है. इसलिए बिल्ली, ऊंट, पैंगोलिन और अन्य स्तनपायी जीवों जो इंसानों के आसपास रहते हैं, उनसे उपयुक्त दूरी और साफ-सफाई रखने की जरूरत है. (फोटोः रॉयटर्स)
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पीटर डैसजैक ने बताया कि 2003 में सार्स से पहले कोरोना वायरस के बारे में ज्यादा अध्ययन नहीं हुआ था. उस समय तक सिर्फ दो प्रकार के वायरस के बारे में पता था, जिसे 1960 में खोजा गया था. (फोटोः रॉयटर्स)
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2009 में अमेरिका ने प्रेडिक्ट मिशन की स्थापना की थी. इसमें इकोहेल्थ एलायंस, द स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन, द वाइल्ड लाइफ कॉन्जर्वेशन सोसाइटी और कैलिफोर्निया की कंपनी ने साथ मिलकर एक महामारी ट्रैकर बनाया. मकसद था नई बीमारियों की पहचान करना. (फोटोः रॉयटर्स)
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प्रेडिक्ट ने सालों तक जांच करके हजारों प्रकार के कोरोना वायरसों की खोज की. कोरोना वायरस कोविड-19 का जब फैलाव होने लगा तो जांच में पता चला कि इसका डीएनए वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में बंद नमूनों से 96.2 फीसदी मेल खाता है. ये नमूने 2013 में यूनान प्रांत की गुफाओं में बंद चमगादड़ों से लिए गए थे. (फोटोः रॉयटर्स)