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DDA को मिली मिलेनियम डिपो की जमीन, अब ग्रीन बेल्ट बनाने का प्लान

अप्रैल 2019 में बस डिपो से संबंधित मामला पर सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी को ट्रांसफर कर दिया था. मिलेनियम डिपो में पार्किंग की सुविधा के साथ-साथ खुद का सीएनजी पंप था. अब इस डिपो को रिस्टोर किया जा रहा है.

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मिलेनियम डिपो की जमीन डीडीए को वापस मिली.
मिलेनियम डिपो की जमीन डीडीए को वापस मिली.

साल 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स (2010 Commonwealth Games) के दौरान डीटीसी की एक हजार से ज्यादा बसों की पार्किंग के लिए बनाया गया मिलेनियम डिपो की जमीन को डीडीए ने वापस ले लिया है. डीडीए मिलेनियम डिपो के बाहर अतिक्रमण ना करने का बोर्ड भी लगा दिया है. लगभग 60 एकड़ से ज्यादा यमुना किनारे डीडीए की जमीन पर बसा मिलेनियम डिपो में लगभग 1,000 से अधिक डीटीसी की बसें की पार्किंग की व्यवस्था साल 2010 में शुरू हुई थी. मिलेनियम डिपो में पार्किंग की सुविधा के साथ-साथ खुद का सीएनजी पंप था, जहां से डीटीसी की बसें सीएनजी भरने के बाद दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में जाती थीं.

बनाई जाएगी ग्रीन बेल्ट

डीडीए के अधिकारियों की माने तो यमुना किनारे बसे इस डिपो की जमीन डीडीए को वापस मिली है. इसको जल्द ही रिस्टोर किया जाएगा. बड़े स्तर पर यहां पर पेड़ पौधों को लगाने का काम तेजी से किया जा रहा है. नर्सरी बनाई जा रही है. आजतक की टीम में जब मिलेनियम डिपो की जमीन का जायजा लिया तो वहां पर बड़े स्तर पर नर्सरी और पेड़ पौधे लगाने का काम नजर आया.

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, अप्रैल 2019 में बस डिपो से संबंधित मामला पर सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर एनजीटी को स्थानांतरित कर दिया था कि एक ही मुद्दे पर 'समानांतर कार्यवाही' नहीं हो सकती है. कोर्ट ने कहा था कि बस डिपो को गिराने का आदेश देना उचित नहीं होगा. दिल्ली सरकार और डीटीसी को दिल्ली मास्टर प्लान के तहत जोनिंग पैरामीटर को संशोधित करने के लिए एक वर्ष का समय दिया था, जिसमें विफल रहने पर उसे डिपो को स्थानांतरित करना होगा.

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संशोधन करने का मौका

अदालत ने यह भी नोट किया कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2015 में दिल्ली सरकार और डीटीसी को मास्टर प्लान में संशोधन करने का मौका दिया था. राज्य सरकार और डीटीसी ने डिपो साइट के भूमि उपयोग को बदलने के लिए डीडीए से संपर्क करने के लिए छह महीने के लिए ट्रांसपोर्टर की याचिका को खारिज करने के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी. सूत्रों के अनुसार, डीडीए ने प्रस्तुत किया था कि भूमि-उपयोग संशोधन संभव नहीं था, क्योंकि एनजीटी ने जोन ओ (नदी और जलाशय क्षेत्रों) के रूप में सीमांकित क्षेत्रों में निर्माण पर रोक लगा दी थी और डिपो स्थल ऐसे क्षेत्र में पड़ता था.

एनवायरमेंट एक्सपोर्ट ने किया स्वागत

एनवायरनमेंट एक्सपोर्ट अनिल सूट की माने, तो डीडीए ने जिस तरीके से जमीन को वापस लिया है इस फैसले का वो स्वागत करते हैं. इस जमीन पर ग्रीन बेल्ट बनाई जाए यह बहुत अच्छा कांसेप्ट है. लेकिन ग्रीन बेल्ट के नाम पर इस जमीन को कमर्शियल ना किया जाए.

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