scorecardresearch
 

2019 की सियासी जंग जीतने के लिए तैयार हो रहा है मोदी का अपना 'मनरेगा'

श्रम मंत्रालय ने 1.2 लाख करोड़ रुपये की यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी स्कीम का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है. इस स्कीम के तहत केंद्र सरकार गरीब जनसंख्या को मासिक पेंशन समेत कई आर्थिक लाभ देकर सामाजिक सुरक्षा देने की तैयारी में है.

Advertisement
X
2019 के लिए मास्टर स्ट्रोक!
2019 के लिए मास्टर स्ट्रोक!

मोदी सरकार लोकसभा चुनाव 2019 को ध्यान में रखते हुए अब तक का सबसे बड़ा दांव चलने की तैयारी कर रही है. इस दांव से सरकार तकरीबन 45 करोड़ लोगों के जीवन को सीधे प्रभावित करेगी, हालांकि इससे सरकारी खजाने पर तकरीबन सवा लाख करोड़ रुपये प्रतिवर्ष का बोझ भी पड़ेगा. केंद्रीय श्रम मंत्रालय इस योजना पर काम कर रहा है और उसके निशाने पर हैं देशभर में काम कर रहे असंगठित क्षेत्र के करोड़ों मजदूर.

सूत्रों के मुताबिक श्रम मंत्रालय ने 1.2 लाख करोड़ रुपये की यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी स्कीम का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है. इस स्कीम के तहत केंद्र सरकार गरीब जनसंख्या को मासिक पेंशन समेत कई आर्थिक लाभ देकर सामाजिक सुरक्षा देने की तैयारी में है.

इस स्कीम के तहत केंद्र सरकार निम्नतम श्रेणी में पड़ी 20 फीसदी जनसंख्या (45 करोड़ वर्कफोर्स) को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए मासिक पेंशन, इंश्योरेंस और मैटरनिटी कवर की व्यवस्था करेगी. स्कीम के दूसरे चरण में देश में सभी के लिए स्वैच्छिक मेडिकल इंश्योरेंस और बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा.

Advertisement

श्रम मंत्रालय अपनी इस योजना का ड्राफ्ट अब वित्त मंत्रालय को भेजेगा ताकि उसकी स्वीकृति मिल सके और स्कीम के लिए फंड की व्यवस्था की जा सके. सरकार की योजना अगले साल तक इस स्कीम को जमीन पर उतारने की है जिससे 2019 के आम चुनावों तक आम आदमी को स्कीम का फायदा पहुंचाया जा सके.

मोदी के मिशन 2019 में सबसे बड़ा रोड़ा हैं ये 5 आर्थिक चुनौतियां

सूत्रों के मुताबिक इस स्कीम को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को सरकारी खजाने से लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष खर्च करने होंगे. केंद्र सरकार के आकलन के मुताबिक देश की लगभग 20 फीसदी जनसंख्या को इस स्कीम का फायदा पहुंचेगा. इस स्कीम का फायदा पहुंचाने के लिए केन्द्र सरकार सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना की श्रेणी का इस्तेमाल करेगी.

गौरतलब है कि देश में कुल 45 करोड़ वर्कफोर्स है जिसमें महज 10 फीसदी वर्कफोर्स संगठित क्षेत्र में है और उसे किसी न किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा मिलती है. वहीं प्रति वर्ष लगभग 1 करोड़ नए लोग इस वर्कफोर्स में शामिल होते हैं. इनमें अधिकांश लोगों को सामाजिक सुरक्षा तो दूर की बात है न्यूनतम सैलरी भी नहीं मिलती. ऐसे अधिकांश लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं.

Advertisement

मोदी सरकार के सामने इस स्कीम को लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती सरकारी खजाने पर पड़ने वाले दबाव की है लेकिन माना जा रहा है कि इस स्कीम से चुनाव के ठीक पहले उसकी लोकप्रियता में खासा इजाफा देखने को मिलेगा. सरकार और बीजेपी से जुड़े सूत्र मानते हैं कि ये योजना पार्टी के लिए वैसे ही चमत्कारी साबित हो सकती है जैसे यूपीए-1 के लिए मनरेगा हुई थी और मनमोहन सरकार ने 2009 में जबर्दस्त वापसी की थी.

Advertisement
Advertisement