बाल्टी लेकर ट्रैंकर के सामने पानी भरते लोगों की तस्वीरें दिल्ली और एनसीआर के लिए अब आम बात हो गई हैं. अभी गर्मी की शुरुआत ही हुई है और कई जगह से पानी की किल्लत की खबरें आने लगी हैं. नोएडा और दिल्ली में लाखों रुपये देकर लोगों ने घर तो खरीद लिए लेकिन आए दिन पानी की परेशानी से लोग जूझ रहे हैं. देश की राजधानी दिल्ली हो या एनसीआर के इलाके हर साल गर्मियां आफत लेकर आती हैं. पिछले साल ही दिल्ली के वीआईपी इलाकों में भी पानी की ऐसी किल्लत हुई की टैंकर से टंकियों में पानी भरने की नौबत आ गई. गर्मी होती है तो पानी की किल्लत, और बारिश के मौसम में वॉटर लॉगिंग की दिक्कत हर साल की यही कहानी है.
अधिक भूजल दोहन की वजह से नोएडा और ग्रेटर नोएडा वेस्ट जैसे इलाकों में पानी का लेवल तेजी से गिर रहा है, क्योंकि हाई-राइज सोसायटियों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन जल संरक्षण के उपाय अपर्याप्त हैं. इस इलाके में पानी गंभीर समस्या बनती जा रही है. सैकड़ों हाईराइज सोसायटीज तो बन गई हैं, लेकिन कहीं लोग पानी कि किल्लत झेल रहे हैं तो वहीं कई सोसायटीज में गंदे पानी की सप्लाई से लोग परेशान हैं. कुछ दिन पहले ही सुपरटेक इकोविलेज 2 के लोग टैंकर से सामने खड़े होकर बाल्टी से पानी भरते नजर आए. ये परेशानी सिर्फ एक सोसायटी की नहीं है हर साल गर्मी के दिनों में लोग पानी के लिए तरसते हैं. पिछले साल भी ग्रेटर नोएडा वेस्ट में जून के महीने में कई सोसायटीज में लोग पानी नहीं आने से परेशान रहे. सैकड़ों सोसायटीज में टैंकर के सामने लोग लाइन में खड़े नजर आए थे.
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कई ऐसी सोसायटीज हैं जहां बारिश होते पर्किंग एरिया तालाब बन जाते हैं और पार्क स्वीमिंग पुल. अगर इसी पानी का सही तरीके से इस्तेमाल कर लिया जाता तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती. अगर इन सोसायटीज का रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम सही ढंग से काम करता तो शायद पानी की कमी को खुद ही ये लोग पूरा कर लेते. नोएडा अथॉरिटी यूपी अपार्टमेंट एक्ट के मुताबिक हर सोसायटी में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य हैं, लेकिन अधिकांश सोसायटी नियमों की अनदेखी करते हैं. कायदे से किसी भी सोसायटी को कंप्लीशन सर्टिफिकेट तभी देना चाहिए जब रेन वॉटर हार्वेस्टिंग का पूरा सिस्टम चेक हो जाए.
नोएडा और ग्रेटर नोएडा वेस्ट के कई सोसायटीज के रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बंद पड़े हैं. जबकि इन्हीं सोसायटीज में बारिश होते ही पार्किंग एरिया तालाब बन जाता है. पिछले साल ही प्रशासन ने कई सोसोयटीज की जांच की तो 80 फीसदी के रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम काम नहीं कर रहे थे. प्रशासन की सख्ती के बावजूद लोग नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं. रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के कई फायदे भी हैं. वैसे बारिश का पानी का पानी मिट्टी की ऊपरी सतह के साथ बह जाता है, लेकिन अगर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम होता है तो ये पानी बर्बाद नहीं होता. काफी हद तक पानी की दिक्कत को कम किया जा सकता था.
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मुश्किल ये है कि हमारे देश में बारिश के पानी का सिर्फ 8 फीसदी ही संचयन किया जाता है. सरकार की तरफ से अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग नियम बनाए गए हैं. दिल्ली में 2001 में शहरी विकास मंत्रालय ने 100 वर्ग मीटर से अधिक छत वाले सभी मकानों और एक हजार वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्र वालों जमीनों के लिए रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अनिवार्य कर दिया था. वहीं उत्तर प्रदेश में 300 वर्गमीटर से अधिक क्षेत्रफल वाले घरों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य है. मध्यप्रदेश में 250 वर्गमीटर से अधिक क्षेत्रफल वाली इमारतों में ये सिस्टम लगाने पर प्रॉपर्टी में 6 प्रतिशत की छूट मिलती है. सरकार ने कानून तो बना दिए हैं, लेकिन उनका पालन कितना हो रहा है हालात देखकर तो नहीं लगता.
भारत सरकार ने जल संरक्षण के लिए देश भर में कई योजनाएं भी चलाईं. 2019 में कैच द रेन अभियान चलाया गया. इस अभियान के तहत हर साल अप्रैल से नवंबर तक बारिश के पानी के संचयन का काम होता है. इसका उद्देश्य जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन, जल निकायों की जियो टैंगिग, जल शक्ति केंद्रों की स्थापना करना है. साथ ही देश के सभी जिलों में अनिवार्य रूप से रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाने की योजना है. सबसे बड़ी मुश्किल ये हैं कि यहां पानी की बर्बादी भी हो रही है और पानी की किल्लत भी है, लेकिन इस समस्या का सही तरीके से समाधान नहीं हो रहा है, जिसका खामियाजा हर साल लोग चुकाते हैं और आने वाले वक्त में पानी की समस्या और भी ज्यादा गंभीर हो सकती है.