सुप्रीम कोर्ट ने निजी बैंकों की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने डिफॉल्टर्स सहित सभी तरह के खाताधारकों के बारे में जानकारी सार्वजनिक करने के रिजर्व बैंक के अधिकार को चुनौती दी थी.
सुप्रीम कोर्ट के ही साल 2015 के एक आदेश के द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को यह अधिकार दिया गया था कि वह बैंकों के एनपीए, डिफॉल्टर्स और क्रेडिट लाइन के बारे में जानकारी सूचना के अधिकार (RTI) के तहत किसी को भी दे सके.
निजी बैंकों ने इस आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी. बैंक यह चाहते थे कि उनके ग्राहकों की जानकारी सार्वजनिक करने का अधिकार रिजर्व बैंक के पास न हो. निजी बैंकों ने साल 2015 के इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को वापस लेने और मामले की सुनवाई एक बड़े बेंच में करने का अनुरोध किया था.
क्या है इस व्यवस्था का फायदा
यह बात इस लिहाज से ठीक है कि ग्राहकों की गोपनीयता और विश्वसनीयता उजागर न हो, लेकिन फैसले का फायदा यह है कि अगर कोई संस्था, व्यक्ति या मीडिया के लोग विजय माल्या, नीरव मोदी जैसे किसी डिफॉल्टर के खाते के बारे में जानकारी चाहते हैं तो उन्हें रिजर्व बैंक से आरटीआई के द्वारा अभी मिल जाती है.
इसी अधिकार के तहत अभी तमाम आरटीआई आवेदकों को रिजर्व बैंक से विलफुल डिफॉल्टर यानी जानबूझ कर कर्ज न चुकाने वाले लोगों की सूची मिल जाती है. निजी बैंक चाहते हैं कि रिजर्व बैंक ऐसी जानकारी सार्वजनिक न करे.
साल 2015 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रिजर्व बैंक किसी ग्राहक के बारे में जानकारी, उसके खाते और कर्ज चुकाने के इतिहास के बारे में जानकारी सार्वजनिक कर सकता है और बैंकिंग एवं वित्तीय जगत के आंकड़ों को प्रकाशित कर ऐसा कर सकता है.
क्या है बैंकों को नुकसान
HDFC, ICICI और अन्य बैंकों की तरफ से पेश एडवोकेट हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि इस फैसले का काफी गंभीर असर हो रहा है, क्योंकि इससे ग्राहकों की निजता का अधिकार और बैंकों के साथ उनके भरोसे के रिश्ते का उल्लंघन होता है.
उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक इस बात के लिए दबाव बना रहा है कि बैंक किसी ग्राहक के कर्ज हिस्ट्री, लोन आदि की पूरी जानकारी 'तीसरे पक्षों' को दें. बैंक का पक्ष रखते हुए हरीश साल्वे ने कहा था कि बैंक किसी ग्राह को लोन देने से पहले अपने सिक्योरिटी सिस्टम के द्वारा उसके बारे में गोपनीय आकलन/जोखिम आकलन करते हैं. लेकिन साल 2015 के फैसले से ग्राहकों के बारे में कॉमर्शियल डिटेल आरटीआई के तहत खोल दिया गया है. इस तरह का ब्याेरा किसी तीसरे पक्ष को क्यों देना चाहिए?
मुकुल रोहतगी ने कहा था, 'निजी बैंक आरटीआई के तहत पब्लिक अथॉरिटी नहीं है, तो इस तरह की गोपनीय जानकारी किसी को कैसे दी जा सकती है? अगर बैंक ने किसी ग्राहक के कर्ज और एकाउंट की जानकारी सार्वजनिक की तो ग्राहक उस पर मानहानि का मामला भी दर्ज कर सकता है.'