चुनाव से पहले फरवरी में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी की उम्मीद पर अब पानी फिरने लगा है. अप्रैल-दिसंबर में बंपर मुनाफा कमाने वाली ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने अब डीजल की बिक्री पर नुकसान का दावा किया है. तेल कंपनियों के मुताबिक डीजल की बिक्री पर तेल कंपनियों को करीब 3 रुपये प्रति लीटर का नुकसान हो रहा है. वहीं पेट्रोल पर मुनाफा मार्जिन कम होकर करीब 3 से 4 रुपये प्रति लीटर रह गया है.
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पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी का कहना है कि पेट्रोल-डीजल के दाम सरकार तय नहीं करती है. तेल कंपनियां सभी आर्थिक पहलुओं को ध्यान में रखकर कीमतों पर फैसला करती हैं. उन्होंने कहा कि अभी बाजार में अस्थिरता बनी हुई है. इससे एक संकेत के तौर पर भी देखा जा सकता है कि जब तक मार्केट में स्थिरता नहीं आएगी तबतक पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर कोई फैसला लिया जाना मुश्किल है.
अप्रैल-दिसंबर में तेल कंपनियों को बंपर मुनाफा
हालांकि अप्रैल-दिसंबर के दौरान 9 महीनों में तीनों कंपनियों को 69 हजार करोड़ रुपये का बंपर मुनाफा हुआ है. लेकिन पेट्रोलियम मंत्री का कहना है कि अगर मौजूदा तिमाही में यही रुझान बना रहा तो तेल कंपनियां दाम घटा सकती हैं. इस तिमाही के नतीजे अप्रैल से पहले नहीं आएंगे जिसके चलते ये अनुमान लगाया जा सकता है कि अभी पेट्रोल-डीजल की कीमतों में राहत मिलने के आसार नहीं हैं. पुरी के मुताबिक तेल कंपनियों ने खुद ही दाम ना बढ़ाने का फैसला किया था जिससे उन्हें नुकसान हुआ था.
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मौजूदा कारोबारी साल में तीनों कंपनियों ने पहली दो तिमाहियों यानी अप्रैल-जून और जुलाई-सितंबर में रिकॉर्ड आमदनी की. इस दौरान अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतें 2022-23 की पहली छमाही के मुकाबले आधी होकर 72 डॉलर प्रति बैरल तक आ गईं थीं. लेकिन अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में अंतर्राष्ट्रीय कीमतें फिर से बढ़कर 90 अमेरिकी डॉलर हो गईं जिससे उनकी कमाई में कमी आई है.
पिछले महीने तक हुआ भारी मुनाफा!
हालांकि पहली छमाही के प्रदर्शन के आधार पर तेल कंपनियां अभी भी भारी मुनाफे में हैं. लेकिन 2022 में कच्चे तेल की ऊंची कीमतों की वजह से इन्हें भारी नुकसान हुआ था. 24 जून 2022 को खत्म हफ्ते में पेट्रोल पर तेल कंपनियों को 17.4 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 27.7 रुपये प्रति लीटर का नुकसान हुआ. हालांकि बाद में क्रूड में नरमी से घाटा, मुनाफे में तब्दील हो गया और पिछले महीने तीनों कंपनियों को पेट्रोल पर 11 रुपये और डीजल पर 6 रुपये का मार्जिन मिला था.
महंगा पेट्रोल-डीजल बना EMI का विलेन
पिछले कुछ बरसों में अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव का माहौल रहा है. 2020 में कोविड-19 की शुरुआत के वक्त इसके दाम में भारी गिरावट आ गई थी. लेकिन मार्च 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद क्रूड की कीमत 140 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई. फिर टॉप इम्पोर्टर चीन में मांग घटने और आर्थिक सुस्ती के असर से इनमें कमी आ गई. कच्चे तेल की कीमतों का सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. दरअसल, भारत में 85 फीसदी क्रूड का आयात होता है. इसके दाम बढ़ने से यहां पर महंगाई बढ़ती है और लोगों को ऊंची ब्याज दरें चुकाने को मजबूर होना पड़ता है. यही वजह है कि 8 फरवरी को पेश की जाने वाली RBI की मॉनेटरी पॉलिसी में छठी बार ब्याज दरों को स्थिर रखा जा सकता है क्योंकि दिसंबर में 4 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंची रिटेल महंगाई दर ने अभी तक भी रिज़र्व बैंक को रेट कम करने की गुंजाइश उपलब्ध नहीं कराई है.