आर्थिक मोर्चे पर तनातनी की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है. कोविड के दौरान भी कच्चे तेल की कीमतों में इसी तरह की गिरावट देखने को मिली थी. लेकिन भारत के लिए ये एक बेहतरीन मौका है. दरअसल, ग्लोबल मार्केट में ब्रेंट क्रूड की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गई है, जबकि डब्ल्यूटीआई (WTI) 57.22 डॉलर तक पहुंच गया है. बता दें, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) द्वारा टैरिफ की घोषणा के बाद कच्चे तेल की कीमतों में 15% तक गिरावट दर्ज की गई है. भारत के लिए फिलहाल कच्चा तेल किसी सोने (Gold) से कम नहीं है, जो कि बेहद सस्ते मिल रहे हैं.
इस बीच वित्तीय सलाहकार गौरव जैन का कहना है कि भारत के लिए यह समय बेहतर साबित हो रहा है. क्योंकि देश अपनी अधिकांश तेल जरूरतों को आयात करता है. कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से महंगाई को नियंत्रित करने से लेकर विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करने तक का अवसर है, इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को भी ताकत मिलने वाली है. तेल की कीमतों में तेज गिरावट के साथ, भारत कई आर्थिक मोर्चों पर फायदा उठाने की स्थिति में है.
1. आयात बिल में कमी
भारत अपनी क्रूड ऑयल जरूरतों का लगभग 85% इंपोर्ट करता है. वित्त वर्ष 23 में, देश ने करीब 232 मिलियन टन क्रूड आयात किया था, जिसकी कीमत 158 अरब डॉलर थी. उन्होंने कहा, 'तेल की कीमत में 10 डॉलर प्रति बैरल की कमी से आयात बिल में सालाना करीब 15 अरब डॉलर की बचत हो सकती है.'
2. चालू खाता घाटा (CAD) में सुधार
भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 24 में CAD को जीडीपी के 1.2% पर आंका था. एक्सपर्ट की मानें तो क्रूड की कीमत में हर 1 डॉलर प्रति बैरल की गिरावट CAD को 1.5-1.6 अरब डॉलर तक कम कर सकती है. जिससे भारत का बाहरी क्षेत्र मजबूत होगा.
3. महंगाई पर काबू
क्रूड की कीमतें ईंधन, उर्वरक, परिवहन, प्लास्टिक और FMCG जैसे क्षेत्रों को प्रभावित करती हैं. 2022 में, तेल की कीमतों में उछाल ने थोक मूल्य सूचकांक (WPI) मुद्रास्फीति को 12% से ऊपर पहुंचा दिया था. लेकिन अब कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) और थोक मूल्य सूचकांक (WPI) दोनों में गिरावट आने की उम्मीद है.
4. राजकोषीय घाटे का दबाव कम
भारत का वित्त वर्ष 25 के लिए राजकोषीय घाटा लक्ष्य जीडीपी का 5.1% है. सस्ता क्रूड ईंधन और गैस से जुड़ी उर्वरक सब्सिडी को कम करता है. इस बचत से सरकार दूसरे कामों पर फोकस कर सकती है.
5. करेंसी में मजबूती
वित्त वर्ष 22 में, तेल की बढ़ती कीमतों ने रुपये पर दबाव डाला और यह 83 रुपये प्रति डॉलर तक पहुंच गया. क्रूड की कीमतों में गिरावट का मतलब है कि डॉलर के मुकाबले रुपया कम खर्च होगा, जो कि विदेशी मुद्रा भंडार और मुद्रा स्थिरता को समर्थन देता है.
6. उपभोग को बढ़ावा
ईंधन और एलपीजी की कीमतों में कमी से घरेलू डिस्पोजेबल आय बढ़ती है. इससे ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में उपभोग को बल मिल सकता है, जो जीडीपी की गति को बनाए रखने में मदद करता है.
7. इन सेक्टर्स को भी लाभ
एयरलाइंस, लॉजिस्टिक्स, पेंट, टायर और FMCG जैसे उद्योग सस्ते तेल का लाभ उठा रहे हैं. विमानन ईंधन एयरलाइंस की लागत का लगभग 40% होता है, यानी ATF में कमी से सीधे मार्जिन में सुधार होता है.
8. विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा
कम तेल आयात से भारत डॉलर के बहिर्वाह को बचा सकता है और अपने विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत कर सकता है, जो मैक्रो स्थिरता को और बढ़ाता है.
तेल की कीमतों में यह गिरावट भारत के लिए एक सुनहरा मौका है, जिसका सही इस्तेमाल कर देश अपनी आर्थिक स्थिति को और मजबूत कर सकता है.