बिहार विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद आरजेडी नेता तेजस्वी यादव मंगलवार को अलग और बदले हुए रूप में नजर आए. चुनावी हार के 17 दिन बाद तेजस्वी यादव सार्वजनिक तौर पर बोलते नजर आए. इस दौरान तेजस्वी ना तो आक्रामक थे, ना ही तंज कस रहे थे और ना ही उनकी बातों में तल्खी दिखी. इसके बजाय उनके लफ्जों में शालीनता और गहरे सियासी संकेत दिखाई दिए. यह मौका बीजेपी के वरिष्ठ विधायक प्रेम कुमार को विधानसभा अध्यक्ष चुने जाने का था.
बीजेपी के विधायक प्रेम कुमार को मंगलवार को सर्वसम्मति से विधानसभा अध्यक्ष चुना गया. चली आ रही परंपरा के अनुसार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने प्रेम कुमार को अध्यक्ष के आसन तक पहुंचाया,. इस तरह सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ने उनका स्वागत किया. इस दौरान तेजस्वी यादव उन्हें बधाई देते हुए एक अलग अंदाज में नजर आए. उन्होंने एक सकारात्मक और सहयोगात्मक राजनीतिक संदेश देने का प्रयास किया.
तेजस्वी ने गंभीरता और शालीनता से रखी बात
प्रेम कुमार को अध्यक्ष बनने पर विपक्ष की तरफ से तेजस्वी यादव ने बधाई देते हुए अपना संबोधन दिया. उन्होंने न सिर्फ प्रेम कुमार को बधाई दी बल्कि उम्मीद जताई कि विधानसभा में अब विपक्ष की आवाज पहले से ज्यादा सम्मान और गंभीरता के साथ सुनी जाएगी.
साथ ही उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष प्रेम कुमार के पास राजनीतिक और सामाजिक जीवन में लंबा अनुभव है. मंत्री और नेता प्रतिपक्ष रहते हुए उन्होंने हमेशा ही जनता की आवाज उठाई है. अब अध्यक्ष के रूप में उनसे आशा है कि वे नियमावली के अनुसार पूर्ण निष्पक्षता के साथ जनता की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे.
तेजस्वी ने कहा कि आप ज्ञान और मोक्ष की धरती के प्रतिनिधि हैं, भगवान विष्णु और महात्मा बुद्ध की धरती से आते हैं. ऐसे में हमें पूरा विश्वास है कि आप निष्पक्ष होकर सदन को चलाएंगे. हमें भरोसा है कि आप विपक्ष की आवाज को भी बराबर सम्मान देंगे. आवश्यकता पड़ने पर विपक्ष हमेशा विधानसभा के अध्यक्ष के साथ खड़ा रहेगा. तेजस्वी ने इस तरह से विधानसभा अध्यक्ष को सहयोग करने का आश्वासन दिया तो साथ ही यह भी उम्मीद जताई कि विपक्ष की बातों को गंभीरता से लिया जाएगा.
तेजस्वी ने दिखाई राजनीतिक परिपक्वता
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने राजनीतिक परिपक्वता दिखाते हुए भविष्य की सियासी चुनौतियों को स्वीकार करने के भी संकेत दिए. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में विपक्ष भी सरकार का ही एक अहम अंग है और सभी का मकसद बिहार को एक अग्रणी राज्य बनाने का है. तेजस्वी यादव ने इस दौरान कहा कि बेरोजगारी, गरीबी और पलायन जैसी चुनौतियों को खत्म कर के नए संकल्प के साथ नए बिहार का निर्माण होना चाहिए.
आरजेडी नेता तेजस्वी सियासी संदेश देते नजर आए कि हम सबका लक्ष्य बिहार को अव्वल बनाना है. विपक्ष सरकार का दुश्मन नहीं, बल्कि लोकतंत्र का संतुलन है. यह बयान बताता है कि तेजस्वी यादव अब विपक्ष की राजनीति को पुराने तेवरों के बजाय व्यवस्थित और संस्थागत तरीके से आगे बढ़ाना चाहते हैं. साथ ही यह भी मैसेज देते नजर आए हैं कि बिहार को विकास के रास्ते पर ले जाने के बीच विपक्ष बाधा नहीं बनेगा.
तेजस्वी यादव के बदले अंदाज के मायने
विधानसभा सदन में विपक्षी नेता के रूप में तेजस्वी यादव का नया अंदाज और बदले हुए तेवर के मायने निकाले जा रहे हैं. तेजस्वी ने ना तो आक्रामक रुख अपनाया और ना ही आरोप-प्रत्यारोप लगाते नजर आए. इसके बदले सरकार और विधानसभा अध्यक्ष को सहयोग करने का भरोसा दिया. उनके इस बदले हुए रूप को राजनीतिक जानकर मानते हैं कि यह सिर्फ औपचारिकता नहीं बल्कि तेजस्वी के गंभीर सियासी राह पर बढ़ने का कदम है.
सदन के जरिए तेजस्वी यादव अपनी नई छवि को गढ़ना चाहते हैं ताकि उन्हें बिहार की राजनीति में गंभीरता से लिया जा सके. तेजस्वी की बात का संकेत है कि आने वाले समय में बिहार विधानसभा में सत्तापक्ष से टकराव के बजाय नीतिगत राजनीति पर चर्चा चाहते हैं.
सरकार ने जो वादे बिहार की जनता से किए हैं उस पर भी वह पैनी नजर रखने वाले हैं, क्योंकि तेजस्वी ने कहा कि जब भी आपकी जरूरत होगी, विपक्ष आपके साथ खड़ा रहेगा, लेकिन जब जरूरी होगा तो सरकार को आईना दिखाने से हम पीछे नहीं हटेंगे.
2025 के नतीजे से तेजस्वी ने लिया सबक
बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी को अपने सियासी इतिहास में दूसरी सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. इसके चलते लालू यादव के सियासी वारिस माने जाने वाले तेजस्वी यादव के लिए भविष्य की राजनीति किसी अंधकार से कम नहीं है. इसकी वजह यह है कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी को बिहार में दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा है. इससे पहले 2024 के लोकसभा चुनाव में भी आरजेडी के चुनाव अभियान की अगुवाई भी उन्हीं के हाथ में थी, उस समय आरजेडी को सिर्फ चार सीटें मिली थीं और अब 26 सीटों पर सिमट गई है.
चुनाव नतीजों के बाद तेजस्वी यादव के लीडरशिप पर सवाल खड़े होने लगे थे. ऐसे में 14 नवंबर से तेजस्वी यादव पूरी तरह खामोशी अपनाए हुए थे. बिहार के नए सियासी माहौल में अब जब 17 दिन बाद तेजस्वी सार्वजनिक मंच पर बोलते नजर आए तो उन्होंने राजनीतिक आरोपों का पुराना अंदाज नहीं अपनाया बल्कि गंभीरता और शालीनता के साथ अपनी बात रखी.
तेजस्वी ने विधानसभा अध्यक्ष प्रेम कुमार को सिर्फ बधाई ही नहीं दी बल्कि सियासी तौर पर दोबारा उभरने के प्रयास का परिचय दिया. तेजस्वी यादव के भाषण में आत्मविश्वास दिखा. इस तरह तेजस्वी ने विपक्ष के रूप में सरकार से सिर्फ टकराव नहीं बल्कि अपने रोल को गंभीर बनाने की रणनीति अपनाई है ताकि बिहार की जनता के बीच उनकी बात को गंभीरता से लिया जाए. चुनाव में तेजस्वी ने तमाम बड़े-बड़े और लोकलुभावने वादे किए थे, लेकिन उन्हें नीतीश के वादों के सामने नहीं लिया गया.