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बिहार में महागठबंधन को बड़ा झटका देंगे ओवैसी? सीमांचल से मिथिलांचल तक का प्लान तैयार

बिहार में अपने पहले चुनावी दौरे पर ओवैसी भले ही सीमांचल से शुरुआत कर रहे हों, लेकिन उनकी अगली दस्तक मिथिलांचल और सारण के इलाके में होनी है. ओवैसी 4 मई को मोतिहारी के ढाका और गोपालगंज में भी मीटिंग करेंगे. जाहिर है ओवैसी का मकसद आगामी विधानसभा चुनाव में नए इलाकों के अंदर दस्तक देने की है.

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ओवैसी ने बिहार चुनाव के लिए प्लान तैयार कर लिया है (फाइल फोटो- पीटीआई)
ओवैसी ने बिहार चुनाव के लिए प्लान तैयार कर लिया है (फाइल फोटो- पीटीआई)

बिहार विधानसभा चुनाव में अब 6 महीने से काम का वक्त बचा है और ऐसे में तमाम राजनीतिक दल और उनके नेता अपने चुनावी प्लान को एक्टिवेट करने में लगे हुए हैं. वहीं, AIMIM के नेता असदुद्दीन ओवैसी भी बिहार के दौरे पर हैं, ओवैसी का दौरा सीमांचल से शुरू हो रहा है और मिथिलांचल होते हुए गोपालगंज में भी मीटिंग करेंगे. ओवैसी शुक्रवार को अपने 2 दिवसीय बिहार दौरे पर किशनगंज पहुंचे. ओवैसी शनिवार को बहादुरगंज में चुनावी जनसभा को संबोधित करेंगे.

4 मई को ओवैसी मोतिहारी के ढाका में दूसरी मीटिंग करेंगे और उसी दिन उनका गोपालगंज में भी कार्यक्रम हैं. बिहार चुनाव को देखते हुए ओवैसी का यह दौरा उनका चुनावी शंखनाद माना जा रहा है. खुद ओवैसी यह कह चुके हैं कि बिहार को लेकर अभी वह केवल शुरुआत कर रहे हैं. आगे आने वाले दिनों में ओवैसी की मौजूदगी सबसे अधिक बिहार में देखने को मिलेगी.

क्या है ओवैसी का बिहार प्लान?

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार के अंदर पहली बार अपनी किस्मत आजमाई थी. तब सीमांचल के इलाके में ओवैसी की पार्टी ने जो नतीजे दिए थे, उसने न केवल राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था, बल्कि यह भी माना गया कि तेजस्वी यादव अगर मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए तो उसकी बड़ी वजह ओवैसी और उनकी पार्टी रही.

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बिहार में जिस MY समीकरण पर आरजेडी अपना पूरा एकाधिकार रखती आई है, उसमें ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल के इलाके में बड़ी सेंधमारी की थी. यही वजह रही कि सीमांचल में ओवैसी की पार्टी को 5 सीटें हासिल हुईं, कई ऐसी सीटें भी रहीं, जहां ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवारों की वजह से महागठबंधन के उम्मीदवारों की हार हुई. कुल मिलाकर अगर महागठबंधन और तेजस्वी यादव बहुमत के आंकड़े से फिसल गए तो उसमें ओवैसी फैक्टर सबसे खास रहा. 

ओवैसी बिगाड़ेंगे महागठबंधन का खेल?

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी AIMIM ने कुल 18 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से 5 पर उसे जीत भी हासिल हुई थी. 2020 में सबको चौंकाने के बाद ओवैसी अब एक बार फिर बिहार में अपनी ताकत दिखाने की तैयारी में हैं. बिहार में मुस्लिम आबादी तकरीबन 18 फीसदी है. राज्य के सीमांचल का इलाका जिसमें किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, कटिहार जैसे जिले शामिल हैं, उन्हें मुस्लिम बहुल माना जाता है. किशनगंज में तकरीबन 67 फीसदी मुस्लिम आबादी है. ओवैसी ने बड़ी प्लानिंग के साथ इसी इलाके में बीते विधानसभा चुनाव के अंदर उम्मीदवार उतारे थे और तेजस्वी यादव को बड़ा झटका दे डाला था. बीते विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने जो चुनौती तेजस्वी और महागठबंधन के सामने पेश की थी, उसे वह और आगे बढ़ाने की तैयारी में है. बिहार की सियासत में तेजस्वी की पार्टी भले ही बीते विधानसभा चुनाव में डार्क हॉर्स रही हो, लेकिन इस बार महागठबंधन भी ओवैसी पर नजर टिकाए बैठा है.

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मिथिलांचल और सारण में दस्तक

बिहार में अपने पहले चुनावी दौरे पर ओवैसी भले ही सीमांचल से शुरुआत कर रहे हों, लेकिन उनकी अगली दस्तक मिथिलांचल और सारण के इलाके में होनी है. ओवैसी 4 मई को मोतिहारी के ढाका और गोपालगंज में भी मीटिंग करेंगे. जाहिर है ओवैसी का मकसद आगामी विधानसभा चुनाव में नए इलाकों के अंदर दस्तक देने की है. वह अपनी पार्टी के लिए बिहार में न केवल विस्तार देख रहे हैं, बल्कि उन इलाकों में एंट्री कर सबको चौंकना चाहते हैं जहां अब तक किसी ने ओवैसी को गंभीरता से नहीं लिया है. बीते विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी के 5 विधायक जीते थे, तेजस्वी यादव को इस जीत से भले ही झटका लगा था, लेकिन बाद में तेजस्वी ने हिसाब चुकता करते हुए ओवैसी की पार्टी के 4 विधायकों को तोड़कर आरजेडी में शामिल कर लिया. 

ओवैसी का दामन छोड़कर RJD में जाने वालों के सामने चुनौती

ओवैसी की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल इमान केवल वफादार साबित हुए बाकी चार विधायक पाला बदलकर तेजस्वी के साथ आ गए थे. पाला बदलने वाले विधायकों में राजद के पूर्व सांसद मरहूम तस्लीमुद्दीन के बेटे शाहनवाज भी शामिल थे. बाद में आरजेडी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में अररिया से शाहनवाज को उम्मीदवार भी बनाया. शाहनवाज को इस सीट पर बीजेपी के प्रदीप सिंह के सामने हार का सामना करना पड़ा. अब ओवैसी की पार्टी छोड़कर पाला बदलने वाले विधायकों के सामने विधानसभा चुनाव जीतने की चुनौती है. 

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किन सीटों पर है ओवैसी की नजर?

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि ओवैसी की पार्टी से जीत हासिल कर विधानसभा पहुंचने वाले इन विधायकों के लिए आरजेडी के टिकट पर आगामी चुनाव में जीत हासिल करना आसान नहीं होगा. विधायकों की टूट ओवैसी के लिए बिहार में पुरानी बात हो चुकी है, सामने विधानसभा चुनाव है लिहाजा वह सीमांचल के साथ-साथ अब उससे सटे मिथिलांचल के इलाके में भी दस्तक देने को तैयार खड़े हैं. उनकी पार्टी के नेता इस बात के संकेत भी दे चुके हैं कि बिहार में कुछ नई सीटों के अंदर वह मजबूती से चुनाव लड़ने को तैयार हैं. इनमें मिथिलांचल का इलाका भी है और सारण का भी. दरअसल मिथिलांचल में कुछ ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटर्स बेहद खास भूमिका अदा करते हैं, ओवैसी की नजर इन्हीं सीटों पर है. सारण के इलाके में भी ओवैसी की पार्टी एंट्री को तैयार है.

सिवान से सांसद रहे मोहम्मद शहाबुद्दीन के परिवार और लालू परिवार के बीच जब दूरियां बढ़ी थीं, तब ओवैसी यहां एक खास रणनीति के साथ एंट्री को तैयार थे, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. शहाबुद्दीन का परिवार वापस लालू परिवार से हाथ मिला चुका है, ऐसे में ओवैसी के लिए सारण में अपनी मौजूदगी को मजबूत तरीके से पेश करना आसान नहीं होगा. बावजूद इसके छपरा, गोपालगंज और सिवान के इलाके में भी ओवैसी की पार्टी अपने उम्मीदवार दे सकती है. गोपालगंज में ओवैसी की तरफ से मीटिंग किया जाना इसी बात के संकेत हैं.

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तेजस्वी के लिए चुनौती

बिहार में ओवैसी की पार्टी का 5 साल पुराना इतिहास यह बताता है कि उनकी मजबूती ने तेजस्वी यादव की पार्टी को सीमांचल के इलाके में कमजोर किया था. जाहिर है अब अगर ओवैसी नए इलाकों में अपने उम्मीदवार देते हैं तो इसका सीधा नुकसान महागठबंधन को ही उठाना पड़ेगा. ओवैसी की पार्टी AIMIM मुसलमानों की राजनीति पर फोकस करती है. उनकी पार्टी का सबसे बड़ा वोटर तबका भी मुस्लिम है. जाहिर है अगर बिहार में मुस्लिम वोट पाने में ओवैसी कामयाब रहते हैं तो इसका सीधा नुकसान आरजेडी और उसके गठबंधन को होगा. बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी इस बात को भली भांति जानते हैं और यही वजह है कि चुनावी माहौल में लगातार आरजेडी और उसके घटक दल यह बात दोहरा रहे हैं कि ओवैसी बीजेपी की बी टीम की तरह काम करते हैं.

आरजेडी का दावा है कि बिहार में ओवैसी अगर अपने उम्मीदवार उतार रहे हैं तो इसका सीधा मकसद मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव पैदा करना है. अगर मुसलमानों का वोट बंटेगा तो इसका सीधा फायदा बीजेपी और एनडीए गठबंधन को होगा. महागठबंधन ने ओवैसी की पार्टी को बिहार में वोट कटवा बता डाला है, बावजूद इसके ओवैसी और उनकी पार्टी जिस तरह बीजेपी पर हमलावर नजर आते हैं उसी तरह उन्होंने आरजेडी और उसके गठबंधन पर भी सवाल खड़े किए हैं. 

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मुस्लिम वोटर्स पर RJD का एकाधिकार खत्म करना मकसद!

ओवैसी लगातार यह सवाल खड़े करते हैं कि तेजस्वी यादव और लालू परिवार अगर सत्ता में रहता है तो मुसलमानों का एकमुश्त वोट पाने के बावजूद कैबिनेट में मुसलमानों की हिस्सेदारी उस तौर पर क्यों नहीं होती जैसी होनी चाहिए? ओवैसी यह सवाल भी खड़ा कर चुके हैं कि आरजेडी के सत्ता में रहते जिन मुसलमानों को कैबिनेट में जगह दी जाती है, उनके हिस्से आने वाला बजट बेहद कम है, यानी छोटे विभाग मुस्लिम नेताओं को मिलते हैं, जबकि बड़े और मलाईदार विभाग तेजस्वी यादव अपने साथ-साथ यादव जाति के दूसरे मंत्रियों के पास रख लेते हैं. ओवैसी के इन सवालों का जवाब ना तो तेजस्वी यादव के पास है और नहीं आरजेडी के पास. ओवैसी अपनी सधी हुई चुनावी चाल से बिहार में मुस्लिम वोटर्स पर से आरजेडी का एकाधिकार खत्म करना चाहते हैं. बीते विधानसभा चुनाव में उन्हें इसमें सफलता भी मिली थी और अब सबकी नज़रें इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर हैं.

NDA पर क्या होगा असर?

ओवैसी बिहार में विधानसभा चुनाव के अंदर जिस तरह महागठबंधन के लिए परेशानियां पैदा करेंगे, उसके बाद यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वाकई ओवैसी के आने से बिहार में एनडीए का काम आसान हो जाएगा? देखा जाए तो चुनाव में कौन सा मुद्दा कब सबसे ऊपर आ जाए इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. वोटों में सेंधमारी के लिहाज से भले ही ओवैसी महागठबंधन के लिए सिरदर्द बने हों, लेकिन बिहार चुनाव में ओवैसी की एंट्री होने से कई ऐसे धार्मिक मुद्दे भी गर्म रहेंगे, जो बीजेपी और उसके सहयोगियों के लिए चुनौती पेश करेंगे. देश में नया वक्फ एक्ट लागू होने के बाद पहला चुनाव बिहार में ही होना है, ऐसे में ओवैसी बिहार चुनाव के दौरान इन सवालों को लेकर भाजपा और एनडीए की घेरबंदी खूब करेंगे. ओवैसी के निशाने पर सेक्युलर इमेज रखने वाले नीतीश कुमार भी होंगे.

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जेडीयू के लिए ओवैसी के सवालों का जवाब देना आसान नहीं होगा. खास बात ये भी की जिस सीमांचल के इलाके में ओवैसी अपने उम्मीदवार उतारेंगे, वहां एनडीए से सबसे अधिक उम्मीदवार जेडीयू के कोटे से होंगे. मिथिलांचल में भी कमोबेश यही तस्वीर होगी, बीजेपी के लिए असल चुनौती सारण के इलाके में होगी. अब देखना होगा कि ओवैसी अपने चुनावी शंखनाद का आगाज कैसे करते हैं और उनका पहला निशाना किस पर होता है.

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