यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि 'सियासी उलटफेर और बिहार' एक दूसरे के पर्यायवाची हो चुके हैं. और पिछले कुछ दशक में जब उत्तर भारत के इस सूबे में राजनीतिक उठा-पटक की बात आती है, तो उसके केंद्र में एक नाम जरूर होता है, वह हैं नीतीश कुमार. अबकी बार किसी ने सोचा नहीं होगा कि नीतीश कुमार पलटेंगे. क्योंकि उन्होंने डेढ़ साल पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से अलग होते वक्त बातें ही कुछ ऐसी की थीं. लेकिन बात वहीं आकर ठहरती है कि 'बिहार की सियासत और उलटफेर' एक दूसरे के पर्यायवाची बन चुके हैं.
बस 50 दिन और बिहार के सियासी समीकरण पूरी तरह बदल गए. इस उलटफेर का नेतृत्व एक बार फिर नीतीश कुमार कर रहे हैं. उन्होंने कहा था, 'मर जाना पसंद करूंगा लेकिन एनडीए में वापस नहीं जाऊंगा'. लेकिन 18 महीने में नीतीश अपने बयान से पलटते हुए दिखाई पड़ रहे हैं. उनकी पार्टी जेडीयू किसी भी वक्त राजद से गठबंधन तोड़कर वापस एनडीए में शामिल हो सकती है, और बिहार में एक बार फिर जेडीयू-बीजेपी गठबंधन की सरकार बन सकती है.
बिहार के लिए नीतीश जरूरी भी और मजबूरी भी
लालू यादव ने अगस्त 2017 में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था, 'नीतीश कुमार सत्ता के लालची हैं. कुर्सी के लिए उन्होंने कितनी बार अपना रुख और अपनी निष्ठा बदली है, इसकी मुझे गिनती नहीं है. वह उन लोगों में से हैं, जो अनुकूल परिस्थिति आने पर पाला बदल लेते हैं'. लेकिन सच यह भी है कि बिहार की राजनीति के लिए नीतीश कुमार जरूरी भी हैं और मजबूरी भी. अब बिहार की राजनीति ऐसी हो गई है कि नीतीश कुमार की अकेले कोई बहुत बड़ी राजनीतिक ताकत नहीं रह गई है. लेकिन जब वह किसी के साथ हो जाते हैं तो उस गठबंधन की ताकत कई गुना बढ़ जाती है.
बीजेपी ने INDIA गठबंधन की सुस्त चाल को परखा
यही सोचकर, विपक्ष के 28 दल नीतीश के साथ INDIA गठबंधन बनाने के लिए राजी हो गए. अगर नीतीश और उनकी पार्टी की मानें तो, INDIA गठबंधन में कांग्रेस ने उन्हें उतनी अहमियत नहीं दी, जितनी वह चाह रहे थे. साथ ही सीट-शेयरिंग को लेकर भी नीतीश और कांग्रेस के बीच, सबकुछ ढीला-ढाला ही चलता रहा. INDIA गठबंधन की सुस्त चाल को बीजेपी ने परखा, और नीतीश के मन में कांग्रेस का प्लान खटका. और उसके बाद एक बार फिर बिहार में शुरू हो गई राजनीतिक पटलबाजी की कहानी. नीतीश को बिहार में सीएम की कुर्सी चाहिए थी, और बीजेपी के टारगेट पर INDIA गठबंधन और कांग्रेस थे.
शाह-नीतीश की मुलाकात के बाद बदले समीकरण
दरअसल बिहार में एनडीए से अलग होने के बाद 10 दिसंबर 2023 को पहली बार अमित शाह और नीतीश कुमार एक साथ, एक मंच पर नजर आए. सरकारी कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने गर्मजोशी से गृहमंत्री का स्वागत किया. इस मुलाकात के चंद दिन बाद बिहार में अचानक राजनीतिक घटनाक्रम बदलने लगे. 29 दिसंबर 2023 को पटना से दूर दिल्ली में जेडीयू की अहम बैठक हुई, जिसमें ललन सिंह को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और नीतीश कुमार ने कमान संभाली. ये वही ललन सिंह थे जो जेडीयू के एनडीए से अलग होने के बाद गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमले कर रहे थे.
ये संयोग था या NDA में वापसी का सियासी प्रयोग,ललन सिंह के हटने के 16 दिन बाद नीतीश कुमार पर अमित शाह का स्टैंड बदल जाता है. अमित शाह इस थ्योरी को नकार देते हैं कि अब नीतीश कुमार के लिए NDA में वापसी की कोई संभावना नहीं है. दरअसल एक मीडिया संस्थान को दिए इंटरव्यू के दौरान अमित शाह से सवाल पूछा गया था, पुराने साथी जो छोड़कर गए थे नीतीश कुमार आदि, ये आना चाहेंगे तो क्या रास्ते खुले हैं? अमित शाह ने जवाब दिया, जो और तो से राजनीति में बात नहीं होती. किसी का प्रस्ताव होगा तो विचार किया जाएगा.
BJP ने की दो डिप्टी CM और स्पीकर पद की मांग
अब बीजेपी और नीतीश के बीच डील पक्की हो चुकी है. नीतीश एक बार फिर से बीजेपी के सपोर्ट से बिहार में सरकार बना सकते हैं. कहा जा रहा है कि बीजेपी ने नीतीश कुमार का सपोर्ट करने के लिए, दो डिप्टी सीएम और सदन में स्पीकर की मांग की है. मुख्यमंत्री नीतीश ही रहेंगे. इस सियासी उठापटक पर बिहार में एनडीए के घटक लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान कहते हैं, 'मेरी बीजेपी की टॉप लीडरशिप से बात हुई और हमने अरपनी चिंताओं को रखा. उन्होंने हमें विश्वास दिलाया है, अभी आगे भी चर्चा चलेगी. लेकिन गठबंधन की परिस्थियां सकारात्मक हैं'. (आजतक ब्यूरो)