संगीत क्या है? म्यूजिक की ओर बढ़ते हुए और सुर, लय-ताल जैसे शब्दों के मतलब जानने से पहले जिस शब्द से सबसे पहले रूबरू होते हैं, वह है संगीत. यह भी कोई एक और अनोखा शब्द नहीं है, बल्कि इसकी शब्द की उत्पत्ति हुई संगत से. ये संगत गीत, वाद्ययंत्र और नृत्य तीनों की होनी चाहिए. संगीत से जुड़े प्राचीन ग्रंथों में भी संगीत शब्द की उत्पत्ति 'सम्यक गीत' से बताई गई है. कोई गीत सम्यक तभी हो सकता है, जब उसके साथ सही ताल और सही वाद्ययंत्र की संगत हो.
तीन कलाओं का संगम है संगीत
इस आधार पर अगर देखा जाए तो, गायन, वादन तथा नृत्य इन तीनों कलाओं को मिलाकर संगीत कला बनती है. "संगीत रत्नाकर" नाम के ग्रंथ में इसकी परिभाषा कुछ ऐसी दी गई है कि, 'गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगीतमुच्यते' यानी कि गायन (गीत), वाद्य (बाजा या वाद्ययंत्र) और नृत्य इन तीनों को मिलाकर ही संगीत कला बनता है, क्योंकि इन तीनों की संगति एक-दूसरे के साथ हो सकती है और बिना किसी भी एक के तीनों ही अपूर्ण अवस्था में होते हैं.
गायन का स्थान है पहला
प्राचीन काल में गायन का स्थान पहला रहा है. उसके बाद वादन और अंत में नृत्य का स्थान माना गया है. गायन इसलिए पहले माना गया है क्योंकि हृदय के भाव कंठ से होकर स्वर के रूप में फूटते हैं और फिर इसी से गीत की रचना होती है. इसका सबसे सुंदर उदाहरण है, आदिकवि वाल्मीकि द्वारा रची गई, 'रामायण' है.
वाल्मीकि रामायण और महर्षि का पहला श्लोक
कहते हैं कि महर्षि वाल्मीकि ने संकल्प तो कर लिया था कि वह 'रामायण' की रचना करेंगे, लेकिन उन्हें सही शब्द नहीं मिल रहे थे और इसी वजह से वह अपने कथानक को गढ़ नहीं पा रहे थे. शुरुआत न हो पाने के कारण उनका रामायण रचने का संकल्प अधूरा था. इसी उधेड़बुन में वह एक दिन तमसा नदी के तट पर स्नान के लिए पहुंचे. प्रभात वेला थी. ऋतु भी सुखद थी और वातावरण भी. नदी किनारे एक पेड़ की डाली पर क्रौंच पक्षियों का जोड़ा आपस में प्रेम मगन था.
श्राप के रूप में जन्मा था पहला काव्य
महर्षि को यही सभी दृष्य बहुत सुखद लग रहे थे और वह इनका आनंद लेने लगे. तभी एक दिशा से सनसनाता हुआ तीर आया और नर क्रौंच पक्षी को बेध गया. क्रौंच पक्षी तड़पकर नीचे गिरा और मर गया. यह देखकर स्त्री क्रौंच पक्षी ने भी उसके वियोग में अपने प्राण त्याग दिए. अब दृश्य तुरंत बदल गया, जहां पहले सुख की बयार थी उसकी जगह शोक ने ले ली. महर्षि का हृदय जो प्रेम से भरा था, अचानक वह कड़वा हो गया और वह क्रोध से भर उठे.
पलटकर देखा तो वही शिकारी अपने शिकार की सफलता पर मुस्कुराता हुआ उधर ही आ रहा था. महर्षि वाल्मीकि का पीड़ा से भरा हृदय कांप उठा और इसी भाव में उनके कंठ से करुणा-क्रोध और श्राप से मिश्रित कविता फूट पड़ी.
' मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।'
(हे निषाद, जिस तरह प्रेम में रत क्रौंच पक्षी का वध कर तुमने उनका वियोग किया और उन्हें संतोष नहीं मिलने दिया. तू कभी भी प्रतिष्ठा नहीं पा सकेगा और तुझे कभी संतोष नहीं होगा.)
ब्रह्मांड का पहला शब्द और संगीत
महर्षि वाल्मीकि के मुख से श्राप के रूप में यह कविता ही निकली थी. इसलिए संगीत में गीत का स्थान पहला है. इसके अलावा भी गीत इसलिए प्रमुख हैं, क्योंकि शब्द स्वयं ही ब्रह्म हैं और सृष्टि की शुरुआत में जो महाविस्फोट (बिगबैंग) हुआ, और उससे जो नाद उपजा वह ओंकार था और यही ब्रह्मांड का पहला शब्द भी है.
महर्षि वाल्मीकि भी जब भावनाओं के सबसे उच्च स्तर पर पहुंचे तो उनके कंठ से पहले कविता/गीत ही फूटा. इसलिए संगीत की परिभाषा देते समय गीत को सबसे पहले रखा गया है.
गायन-वादन और नृत्य में घनिष्ठ संबंध
गायन, वादन और नृत्य इन तीनों में घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है. केवल इतना ही नहीं, तीनों एक दूसरे के पूरक हैं. इस बारे में पुस्तक 'राग परिचय' में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि गायन, वादन और नृत्य की, वादन गायन और नृत्य की और नृत्य गायन और वादन की सहायता करता है. यहीं पर नृत्य का विस्तृत अर्थ लिया गया है. गाते-बजाते समय भाव-प्रदर्शन के लिये थोड़ा-बहुत हाथ चलाना, गाते समय मुखाकृति बनाना आदि नृत्य के व्यापक अर्थ में आते हैं.
सुर-लय के जरिए भाव प्रकट करना ही संगीत
संगीत रत्नाकर में कहा गया है कि नृत्य वादन के और वादन गायन पर आश्रित हैं 'नृत्य वाद्यानुगं प्रोक्त वादगीतानुवर्चित'. संगीत रत्नाकर की इस सूक्ति के आधार पर मानें तो इन गीतों में गायन सर्वश्रेष्ठ साबित होता है. अब इस आधार पर अगर संगीत की परिभाषा दी जाए, तो वह ये हो सकती है कि 'संगीत वह ललित कला है जिसमें स्वर और लय के द्वारा हम अपने भावों को प्रकट करते हैं. हर एक कला जैसे संगीत, मूर्तिकला, चित्रकला, वास्तु कला में मानव सदियों से अपनी भावनाओं को ही तो व्यक्त करता चला आ रहा है.
हालांकि सभी में उसका माध्यम बदल जाता है. अगर रंग, पेंसिल, कागज आदि के द्वारा भावों को व्क्त करते हैं तो यह चित्रकला बन जाता है, अगर स्वर-लय के जरिएअपने भावों को प्रकट करते हैं तो संगीत की रचना होती है. यानी कि अपनी भावनाओं को जाहिर करने का जरिया बदलते ही कला का नाम बदल जाता है.