एक थी सोहनी. कुम्हार की बेटी. बला की खूबसूरत सोहनी चिनाब से पानी भर लाती और पिता मिट्टी के घड़े बनाया करते. दिन बीत कर महीने बन गए और महीने सालों में बदले कि देखते-देखते सोहनी को भी सोलहवां लग गया. एक दिन सोहनी की आंखें एक घुम्मकड़ बांके नौजवान से लड़ीं और चार हो गईं. लड़का भी ऐसा दीवाना निकला कि उसके पास ही रहने की जुगत खोजने लगा और नसीब देखो कि किस्मत ने यहां उनका साथ दिया.
सोहनी के बाबा को अपनी माहियों (भैंसों) को चराने के लिए एक रखवाले की जरूरत थी और ये जरूरत पूरी की उसी बांके नौजवान ने सो वो बन गया महिवाल (भैंस चराने वाला) और सोहनी के घर में बने बाड़े में ही रहने लगा. पर कहते हैं न कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते, तो इनकी भी मोहब्बत कहां छिपने वाली थी, एक दिन सामने आ ही गई.
फिर हुआ वही जो मुहब्बत वाले मामलों में होता आया है. महिवाल को भगा दिया गया और सोहनी के हाथ पीले कर दिए गए, पर सोहनी तो दिल से अपना सबकुछ महिवाल को मान चुकी थी तो किसी और की न हो सकी. उसे पता चला कि महिवाल चिनाब के उस पार है. सोहनी ने पके घड़ों की नाव बनाई और उसके सहारे चिनाब जैसा दरिया पार किया, पहुंच गई अपने महिवाल से मिलने. दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमें खाईं और सोहनी ने अगले दिन फिर आने का वादा किया, हमेशा साथ आने के लिए, लेकिन इस बार किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.
सोहनी की भाभी को पता चल गया कि सोहनी कहां जाने वाली है, तो उसने उस रात घड़ा बदल दिया. पके घड़े की जगह कच्चा घड़ा रख दिया. सोहनी जब चिनाब में तैरने लगी तो घड़ा गल के पानी में मिल गया. सोहनी जितना तैर सकती थी तैरी और फिर उसने अपने आपको धारा के हवाले कर दिया.
उधर, चिनाब के दूसरी ओर पानी में पैर लटकाए सोहनी का इंतजार करता महिवाल बैठा था, देखता क्या है कि उसके पैरों से किसी का जिस्म टकरा रहा है. महिवाल ने उसे ध्यान से देखा तो चीख मारकर चिनाब में गिर पड़ा. वो सोहनी थी. जिंदगी जिन्हें एक न कर सकी, मौत ने उन्हें एक-दूसरे में मिला दिया. एक-दूसरे की बांहों में लिपटे दोनों के जिस्मों को चिनाब में तैरते हुए दोनों ओर के लोगों ने देखा.
तब से आजतक सोहनी-महिवाल और उनका इश्क कश्मीर की फिजाओं में महकता है, न सिर्फ इधर, बल्कि सरहद पार भी दोनों की कहानियों को कहने-सुनने वाले आज भी मौजूद हैं. न जाने कितना पानी चिनाब में बह चुका है, लेकिन नहीं बही तो जेहन से सोहनी-महिवाल की याद.

चिनार के दरख्तों से घिरी वादियों के बीच से जब आब (पानी) धारा बनकर बहा तो उसे लोगों ने चिनाब कहा. चिनाब यानी, चिनार के पेड़ों के बीच बहने वाली नदी. यह वही चिनाब है, जो भारत से निकलती है और पाकिस्तान को जाती है. वो गीत है न कि 'पंछी-नदियां, पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके... लेकिन चिनाब का पानी सरहद पर रोकना पड़ा है.
वजह है भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान. जो प्रेम की धारा बहाने वाली इस नदी से भी प्रेम में बहना नहीं सीख सका है, और सिर्फ नफरत व आतंक की पौध ही सींच रहा है. खबर है कि भारत ने चिनाब का पानी रोक दिया है. बांधों पर बने गेट बंद कर दिए हैं, लिहाजा पाकिस्तान की ओर नदी सूख चुकी है और इसके प्रवाह मार्ग पर सिर्फ पत्थर ही पत्थर नजर आ रहे हैं.
सरहद के पार जाने वाले मीठे पाने के इस दरिया का नाम हमेशा से चिनाब नहीं था. भारतीय वैदिक और पौराणिक कहानियों में जो दर्जा गंगा-यमुना-सरस्वती नदियों को मिला है, तो पवित्रता में वही दर्जा अन्य नदियों को भी मिला है. यहां हर सामान्य जल गंगाजल कहलाता है और हर नदी गंगा नदी का प्रतीक स्वरूप, लेकिन चिनाब तो एक कदम बढ़कर आगे है क्योंकि नदियों के नाम वाली लिस्ट में ये नदी गंगा-यमुना-सरस्वती के ठीक बगल में मौजूद है.
जम्मू-कश्मीर में बहने वाली चिनाब नदी का प्राचीन नाम चंद्रभागा है, जिसका उल्लेख महाभारत, स्कंद पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है. यह नदी न केवल धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखती है, बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों में इसके नाम से जुड़े स्थल और परंपराएं भी मौजूद हैं. चंद्रभागा का नाम राजस्थान के भीलवाड़ा जिले और महाराष्ट्र के अमरावती जिले में बहने वाली नदियों के लिए भी प्रयोग होता है. इसके अलावा, गुजरात के जामनगर में भी चंद्रभागा मंदिर और ओडिशा के कोणार्क में चंद्रभागा तट प्रसिद्ध है. ओडिशा का चंद्रभागा तट, जो सूर्य मंदिर से मात्र तीन किलोमीटर दूर है, कभी कुष्ठ रोगियों के लिए प्राकृतिक उपचार स्थल माना जाता था.
ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व
प्राचीन चंद्रभागा शहर की स्थापना 6वीं या 7वीं शताब्दी में मालवा के जाट राजा चंद्रसेन ने की थी. राजस्थान के झालावाड़ क्षेत्र में स्थित आधुनिक झालरापाटन प्राचीन चंद्रभागा के निकट बसा है. यहां का शीतलेश्वर महादेव मंदिर (689 ई.) स्थापत्य और मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण है. झालरापाटन, जिसे "घंटियों का शहर" भी कहा जाता है, कभी 108 मंदिरों का केंद्र था.
वाकाटक वंश और चम्मक ताम्रपत्र
इसी तरह वाकाटक वंश के राजा प्रवरसेन द्वितीय के 18वें वर्ष के चम्मक ताम्रपत्रों में चंद्रभागा नदी का उल्लेख मधुनदी के रूप में मिलता है. यह नदी उस समय चार्मंका (वर्तमान चम्मक) गांव के पास बहती थी. प्रवरसेन ने अपनी राजधानी प्रवरपुरा (वर्तमान पवनार, वर्धा के पास) में स्थापित की थी. ताम्रपत्रों में भोजकट (वर्तमान भटकुली, अमरावती) का भी जिक्र है, जिसे रुक्मिणी के भाई रुक्मिन ने स्थापित किया था.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण के पुत्र सांब ने कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए चंद्रभागा के तट पर सूर्य देव की उपासना की थी. हालांकि इसी नाम से एक स्थल ओडिशा में भी है, जिसे चंद्रभागा समुद्र तट के रूप में जाना जाता है. आज चंद्रभागा का तट कवियों, कलाकारों और पर्यटकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है. कोणार्क आने वाले पर्यटक इस पवित्र स्थल की यात्रा अवश्य करते हैं.
यहां का सूर्योदय और समुद्री संसाधन आकर्षण का केंद्र हैं. तट के पास आंध्र प्रदेश के मछुआरों की बस्ती भारत की जनजातीय संस्कृति को दर्शाती है. ये तो बात रही, कश्मीर के अलावा भारत के अन्य प्रदेशों में मौजूद चंद्रभागा नदियों की मौजूदगी की, लेकिन कश्मीर में सरहद के पास और उससे पार बहती चंद्रभागा यानी चिनाब की बात ही अलग है.
कहां से निकलती है चिनाब? चंद्रभागा की प्रेम गाथा
चिनाब नदी का उद्गम हिमाचल प्रदेश में लाहौल और स्पीति जिले में टांडी नामक स्थान पर होता है, जहां दो नदियां, चंद्रा और भागा मिलती हैं. इसमें भी कहते हैं कि चंद्रा कन्या है और भागा नदी पुरुष है. ठीक वैसे ही जैसे उत्तर भारत में नर्मदा नदी और सोन की कहानी प्रचलित हैं. कहते हैं कि चंद्र की पुत्री चंद्रा और सूर्य के बेटे सौभाग्य (भागा) का आपस में प्रेम था. चंद्रभागा वास्तव में प्रेम से पैदा हुई है. दोनों ने 'लाहौल' के पवित्र पहाड़ों की परिक्रमा करते हुए लंबी पैदल यात्रा करने का फैसला किया. कई घुमावदार रास्तों के बाद वे 'तांडी' में एक-दूसरे के साथ हमेशा के लिए गले लग गए और 'चंद्रभागा' का जन्म हुआ.
ऋषि और चंचल राजकुमार की कथा
एक कथा ऐसी भी है कि एक ऋषि कन्या को चंद्र नाम का एक राजकुमार छिपकर देखा करता था. एक दिन कन्या नदी स्नान कर रही थी और तभी वह राजकुमार नदी तट पर पहुंच गया. इतने में वह ऋषि भी वहां पहुंच गए और उन्होंने राजकुमार को ऐसा करते देख लिया, ऋषि के श्राप के डर से चंद्र भाग खड़ा हुआ और नदी का नाम चंद्रभागा हो गया. खैर, यह एक लोककथा है और इसकी कोई प्रामाणिकता नहीं है.
चंद्रा नदी दक्षिण पूर्व से बहती है और भागा उत्तर पूर्व से बहती है. संयुक्त नदी को चंद्रभागा कहा जाता है और यह उत्तर पश्चिम की ओर बहती है. चंद्रभागा अपनी निचली पहुंच में चिनाब कहलाती है जो सिंधु नदी (सिंधु नदी) की एक प्रमुख सहायक नदी है. जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ शहर से 12 किलोमीटर दूर भंडेरा कोट में मरौ नदी से मिलने पर यह चिनाब बन जाती है.
ऋग्वेद में चंद्रभागा का जिक्र
ऋग्वेद के नदीसूक्त में नदियों का वर्णन किया गया है और इसके साथ ही वह किस देश और दिशा में बहती हैं, उनका जिक्र भी है. ऋग्वेद में वर्णित नदियों का भौगोलिक महत्व बहुत अधिक है. वे सभ्यताओं के विकास में सहायक हैं. ऐसी नदियों को कई नामों से पुकारा जाता था. नदी-सूक्त (नदीसूक्तम्) इस वेद में नदियों को समर्पित एक सूक्त है.
मंडल 10 में वर्णित नदी-सूक्त (नदीसूक्तम्) एक सूक्त (75) है जो पूरी तरह से नदियों को समर्पित है. इस सूक्त के 5वें और 6वें मंत्र में कम से कम 19 नदियों का नाम लिया गया है. इसमें सिंधु नदी की सहायक नदियों के साथ प्रमुख नदियों का भी उल्लेख किया गया है.
'इमं मे॑ गंगे यमुने सरस्वती शुतु॑द्री स्तोमन॑ सचता पुरुषोष्ण्या।
असिकन्या मा॑रुदृद्धे वितस्तयार्जी॑किये श्रृणुह्या सुशोम॑या ॥5॥ (ऋग्वेद 10.75.5)
(भाव- हे गंगा, यमुना, सरस्वती, शुतुद्री या शतुद्री, परुष्णी (पुष्णी), असिक्नी (असिक्नी, चंद्रभागा, चिनाब), मरुवृद्धा (मरुद्वृधा), वितस्ता (वितस्, झेलम) सहित सुशोमा (सुषोमा) और अर्जिकिया (आर्जिकीय), मेरी प्रार्थना स्वीकार करो और अपने लिए मेरी स्तुति सुनो.)
चिनाब की पौराणिक कथाएं इसके वैदिक नाम असिकन्या या असिक्नी और कृष्णा से लेकर महाभारत में चंद्रभागा और पंजाबी लोककथाओं में प्रेम और बलिदान की कहानियों तक फैली हुई हैं. यह नदी न केवल भौगोलिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से भी एक गहरी छाप छोड़ती है. हीर-रांझा और सोहनी-महिवाल जैसी कहानियां चिनाब को पंजाबी संस्कृति में अमर बनाती हैं, जबकि इसका वैदिक और महाकाव्यिक महत्व इसे प्राचीन भारतीय सभ्यता से जोड़ता है.
ऋग्वेद में असिक्नी: ऋग्वेद में चिनाब नदी को असिक्नी (असिकन्या) कहा गया है, जिसका अर्थ है "काले रंग का पानी". शायद यह नाम नदी के गहरे नीले-काले जल या हिमालयी क्षेत्र में इसके प्रवाह के रंग के कारण दिया गया है. असिक्नी को वैदिक काल में आर्य सभ्यता के लिए महत्वपूर्ण नदियों में से एक माना गया, जो धार्मिक अनुष्ठानों और जीवनदायिनी के रूप में उपयोग की जाती थी.
अथर्ववेद में कृष्णा: अथर्ववेद में चिनाब को कृष्णा के रूप में पुकारा गया है. जिसका अर्थ है "काला या गहरा रंग". यह नाम भी नदी के जल के रंग से प्रेरित हो सकता है और इसकी पवित्रता को यमुना नदी के बराबर में ला खड़ा करता है. इसी तरह महाभारत में चिनाब को चंद्रभागा कहा गया है, जो चंद्रा और भागा नदियों के संगम से बना है. इस नाम का अर्थ है "चंद्र और भागा का मिलन", जो हिमालयी क्षेत्र में एक पवित्र मिलन का प्रतीक है.
महाभारत के विभिन्न पर्वों जैसे सभा पर्व, भीष्म पर्व और कर्ण पर्व में चंद्रभागा नदी का उल्लेख है. यह नदी शतद्रु, विपाशा, इरावती, वितस्ता और सिंधु जैसी पवित्र नदियों के साथ गिनी जाती है. यह नदी पंजाब क्षेत्र की प्रमुख नदियों में से एक थी और उस समय के राज्यों और युद्धों के भौगोलिक संदर्भों में महत्वपूर्ण भी रही है.
हीर-रांझा से भी जुड़ी चिनाब
प्रेमियों के बीच मशहूर हीर-रांझा की मजार भी पाकिस्तान में चिनाब नदी के किनारे ही मौजूद है. इस तरह यह नदी प्रेम के एक और प्रतीक के रूप में दर्ज हो जाती है, मगर अफसोस! इतनी प्रेम भरी दास्तान के बावजूद चिनाब पर नफरत का साया है. आतंक का साया है.