15 अगस्त पर सिर्फ जश्न नहीं, सेल्युलर जेल जाकर महसूस करें आजादी की असली कीमत

अंडमान-निकोबार स्थित सेल्युलर जेल, जिसे ‘काला पानी’ कहा जाता है, आजादी की लड़ाई की सबसे दर्दनाक कहानियों में से एक है. अब यह एक राष्ट्रीय स्मारक है, जहां पर्यटक तंग कोठरियां, ऐतिहासिक दस्तावेज और लाइट एंड साउंड शो के जरिए उस दौर की झलक देख सकते हैं.

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काला पानी की ऐतिहासिक इमारत (Pfoto-incredibleindia.gov.in) काला पानी की ऐतिहासिक इमारत (Pfoto-incredibleindia.gov.in)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 12:38 PM IST

इस 15 अगस्त, अगर आप आजादी को सिर्फ झंडा फहराकर नहीं, बल्कि उसे अपने दिल की गहराइयों में महसूस करना चाहते हैं, तो  अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की यात्रा करें. यहां, समंदर के बीच बसा है एक ऐसा टापू, जहां के पत्थरों में शहीदों की आवाज आज भी गूंजती हैं. पोर्ट ब्लेयर में खड़ी सेल्युलर जेल, जिसे इतिहास 'काला पानी' के नाम से जानता है, कोई साधारण जेल नहीं थी, यह वह जगह थी, जहां हवा में सजा का दर्द घुला था, और हर सांस गुनाह-सी लगती थी. इसकी दीवारें, जंजीरें और कोठरियां आजादी के लिए दी गई अनगिनत कुर्बानियों की गवाह हैं. इस स्वतंत्रता दिवस, अगर आप आजादी की असली कीमत को आत्मसात करना चाहते हैं, तो सेल्युलर जेल का सफर आपके लिए एक तीर्थयात्रा से कम नहीं होगा.

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सेल्युलर जेल का निर्माण 1906 में ब्रिटिश सरकार ने कराया था. यह जेल पोर्ट ब्लेयर के एक एकांत द्वीप पर बनाई गई थी ताकि स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल क्रांतिकारियों को मुख्यभूमि से दूर रखा जा सके. ‘काला पानी’ नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहां की सजा का मतलब था अपने घर, परिवार और समाज से हमेशा के लिए कट जाना.

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कैदियों का नरक जैसा जीवन

यहां राजनीतिक कैदियों को पूरी तरह अकेले रखने के लिए ‘सेल्युलर’ डिजाइन में बनाया गया था, ताकि एक कैदी दूसरे से बात तक न कर सके. इतना ही नहीं हर कोठरी में सन्नाटा और बाहर दिन-रात कठोर परिश्रम, पैरों में बेड़ियां, पीठ पर कोड़ों की मार और तरह-तरह की अमानवीय यातनाएं, यही इस जेल की हकीकत थी. स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त, बाबाराव सावरकर, विनायक दामोदर सावरकर और दीवान सिंह जैसे कई वीरों ने यहां वह दर्द झेला, जिसे सुनकर भी रूह कांप जाए.

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सेल्युलर जेल है इतिहास का जिंदा सबूत

आज यह जेल एक राष्ट्रीय स्मारक बन चुकी है, लेकिन इसकी दीवारों में अब भी शहीदों की कहानियां गूंजती हैं. यहां आने वाले लोग कैदियों की तंग कोठरियां, पुराने ऐतिहासिक दस्तावेज और उस दौर की तस्वीरें देख सकते हैं. सबसे खास है यहां का लाइट एंड साउंड शो, जहां अंधेरे में डूबी यह जेल अचानक बोलने लगती है और आपको सौ साल पीछे आजादी की लड़ाई के उस दर्दनाक दौर में पहुंचा देती है.

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यात्रा की जानकारी

सेल्युलर जेल सोमवार को बंद रहती है, जबकि बाकी दिनों में यह दो समय पर खुली रहती है, सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक और फिर दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक.  यहां पहुंचने के लिए पहले आपको पोर्ट ब्लेयर आना होगा, जहां देश के ज्यादातर बड़े शहरों से सीधी हवाई सेवा उपलब्ध है. पोर्ट ब्लेयर से जेल कुछ ही दूरी पर है, जिसे आप आराम से टैक्सी या ऑटो से तय कर सकते हैं.

बेस्ट टाइम: अगस्त में अंडमान का मौसम नम रहता है, इसलिए हल्के कपड़े और रेनकोट साथ रखें.

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बजट: पोर्ट ब्लेयर में मिड-रेंज होटल्स 2000-5000 रुपये/रात में उपलब्ध हैं. जेल का प्रवेश शुल्क 30 रुपये और लाइट एंड साउंड शो का टिकट 50-200 रुपये है.

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