पाकिस्तान के पावर कॉरिडोर में मुनीर की एंट्री, लेकिन किसी भी मिसएडवेंचर से पहले सीनियर की कहानी पढ़ लें 'फील्ड मार्शल'

पाकिस्तान के पावर कॉरिडोर में एक बार फिर 25 साल पुरानी हलचल सुनाई पड़ रही है. घटनाक्रम मिलते जुलते हैं, स्क्रिप्ट भी वैसी ही दिखती है. तब कारगिल था, अब पहलगाम है. नाम बदले हैं, लेकिन सोच और रणनीति वैसी ही पुरानी है. सवाल यह उठ रहा है कि क्या पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर भी वही रास्ता चुनने जा रहे हैं, जिस पर कभी परवेज मुशर्रफ चले थे?

Advertisement
फील्ड मार्शल आसिम मुनीर और परवेज मुशर्रफ. फील्ड मार्शल आसिम मुनीर और परवेज मुशर्रफ.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 मई 2025,
  • अपडेटेड 9:16 AM IST

आसिम का फील्ड मार्शल के पद पर प्रमोशन और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान फैलाए गए झूठ, करगिल युद्ध और मुशर्रफ के कार्यकाल की याद दिलाते हैं. पाकिस्तानी जनरलों ने अपने मंसूबों की पूर्ति के लिए भारत के खिलाफ साजिश रची है, झूठ फैलाकर जनता को धोखा दिया और सत्ता की ताकत हासिल की है. लेकिन मौजूदा हाल में इसके बाद का घटनाक्रम शहबाज शरीफ के लिए यह खतरे की घंटी है, क्योंकि मुनीर का बढ़ता प्रभाव उनकी राजनीतिक सत्ता को चुनौती दे सकता है और पाकिस्तान में वो घटनाक्रम दोहराया जा सकता है कि जिसका वो आदि रहा है. तख्तापलट. 

Advertisement

तब करगिल, अब पहलगाम: भारत के खिलाफ साजिश

परवेज मुशर्रफ ने 1999 में करगिल में घुसपैठ की योजना बनाकर न केवल भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ा, बल्कि नवाज शरीफ सरकार को भी अस्थिर किया था. अब जनरल मुनीर पर भी वैसी ही 'डुअल गेम' खेलने के आरोप लग रहे हैं. एक ओर वे दुनिया के सामने 'शांति' का मुखौटा पहनते हैं, वहीं दूसरी ओर पहलगाम के कातिलों को समर्थन देकर भारत में अशांति फैलाने की कोशिश करते हैं. 

1998 में परवेज मुशर्रफ को पाकिस्तान के सेना प्रमुख (COAS) के रूप में नियुक्त किया गया, जबकि नवाज शरीफ प्रधानमंत्री थे. उस समय, दोनों देशों ने परमाणु परीक्षण किए, जिसने क्षेत्र में तनाव बढ़ा दिया. 

ऐन मौके पर मुशर्रफ ने कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाने और भारत को सामरिक चोट पहुंचाकर कमजोर करने के लिए करगिल युद्ध की साजिश रची. 

Advertisement

मुशर्रफ ने 1998 के अंत में पाकिस्तानी सेना और मुजाहिदीन को भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने का आदेश दिया. उन्होंने रणनीतिक रूप से करगिल क्षेत्र में ऊंचाई वाले पदों पर कब्जा किया, जो भारतीय सेना ने सर्दियों के दौरान खाली कर दिए थे. 

कहा जाता है कि मुशर्रफ ने अपने इस मिसएडवेंचर के बारे में नवाज शरीफ को इस साजिश के बारे में नहीं बताया था. अल जजीरा और गार्जियन जैसी समाचार एजेंसियां इसकी पुष्टि भी करती हैं. भारत ने जब घुसपैठियों के खिलाफ अभियान शुरू किया तो शरीफ को इसकी जानकारी नहीं थी, और उन्हें अंतरराष्ट्रीय दबाव का सामना करना पड़ा, खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से, जो परमाणु युद्ध की आशंका से चिंतित थे. 

करगिल में भारत के जवाब ने मुशर्रफ के मंसूबों को ध्वस्त कर दिया. पाकिस्तान को हार का सामना पड़ा. मुशर्रफ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फटकार मिली. लेकिन आज के आसिम मुनीर की तरह तब भी मुशर्रफ ने इस घुसपैठ को घरेलू स्तर पर एक "सफलता" के रूप में प्रचारित किया, जिसने उनकी सैन्य छवि को मजबूत किया. 

नवाज शरीफ को कैसे किनारे किया

करगिल युद्ध के बाद पाकिस्तान की सत्ता के दो केंद्र सरकार और सेना के बीच तनाव था ही. मुशर्रफ ने 12 अक्टूबर 1999 को अपना आखिरी वार चल दिया. उन्होंने तख्तापलट कर दिया और नवाज शरीफ को हटा कर खुद पाकिस्तानी के कार्यकारी चीफ बन गए. मुशर्रफ ने दावा किया कि शरीफ ने उन्हें बर्खास्त करने की कोशिश की, जिसके जवाब में उन्होंने तख्तापलट किया. 

Advertisement

मुशर्रफ ने पाकिस्तान के राजनीतिक विपक्ष को कुचल दिया, मीडिया को नियंत्रित किया, और सैन्य की सत्ता को मजबूत किया. इस दौरान पाकिस्तान के मौजूदा पीएम शहबाज शरीफ के बड़े भाई नवाज शरीफ की बड़ी दुर्गति हुई. उनपर कई केस लाद दिए गए. उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई. लेकिन एक डील के तहत शरीफ को देश निकाला दे दिया गया. शरीफ कई सालों तक पाकिस्तान से बाहर रहे. 

पाकिस्तान की सत्ता पर अपनी पकड़ और जकड़ को मजबूत करना लक्ष्य

आसिम मुनीर ने तरकीबें अलग अपनाई है, पटकथा अलग लिखी है लेकिन घटनाक्रम बताते हैं कि उनका भी अंतिम लक्ष्य पाकिस्तान की सत्ता पर अपनी पकड़ और जकड़ को और भी मजबूत करना है. 

पहलगाम के आतंकी हमले में पाकिस्तानी सेना की पूरी डिटेल अभी सामने नहीं आई है, लेकिन इस हमले के पीछे आसिम मुनीर और उसकी टीम के होने से इनकार नहीं किया जा सकता है. 

इस हमले से पहले ही आसिम मुनीर ने दौ कौमी नजरिये के थ्योरी का गुणगान किया था और मुसलमानों को हिन्दुओं से अलहदा और बेहतर बताया था. 

हिन्दुस्तान में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि, "कुछ लोगों को लगा कि ये बयान शक्ति प्रदर्शन हैं. ऐसा लग रहा था मानों वो घोषणा कर रहे हों कि सबकुछ उनके कंट्रोल में हैं और पाकिस्तान की कमान एक बार फिर से सेना के हाथ में है."

Advertisement

आसिम मुनीर के इसी बयान पर जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशिया मामलों पर नजर रखने वाले विश्लेषक जोशुआ टी व्हाइट ने बीबीसी से बात करते हुए कहा है कि ये कोई सामान्य बयानबाज़ी नहीं थी. हालांकि इस भाषण की सामग्री पाकिस्तान की वैचारिक नैरेटिव जैसी ही है लेकिन लहजा अहम है, खासकर हिंदू-मुसलमानों के बीच मतभेदों की सीधी बात करना, इस भाषण को खास तौर पर भड़काऊ बनाता है."

क्या मंशा है मुनीर की?

गौरतलब है कि आसिम मुनीर पाकिस्तान में विश्वास का संकट झेल रहे थे. इमरान खान की पार्टी पाकिस्तानी सेना को एकदम पसंद नहीं कर रही है. इमरान खान सेना पर पक्षपात का आरोप लगाते रहते हैं. 

आसिम मुनीर 2022 में पाकिस्तान आर्मी के चीफ के प्रमुख बने थे. उन्होंने ऐसे समय में देश की सेना की कमान संभाली थी जब पाकिस्तान राजनीतिक और आर्थिक संकट से गुजर रहा था. इमरान खान का उनसे लगातार टकराव हो रहा था. पाकिस्तान की जनता सरकार और शासन से जुड़े मामलों में सेना के कथित दखल से बिफर रही थी.

इसके अलावा मौजूदा परिदृश्य में पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी राष्ट्र दोनों ही अपना महत्व वर्ल्ड प्लेटफॉर्म पर खोते जा रहे थे. कर्ज की किस्तों के लिए बार बार आईएमएफ का दरवाजा खटखटाना, महंगाई, क्षेत्रीय अस्थिरता, बलोच विद्रोहियों का खुलेआम एक्शन, जाफर एक्सप्रेस की हाईजैकिंग कुछ ऐसे तत्व थे जहां पाकिस्तान की सेना असहाय महसूस कर रही थी. 

Advertisement

ऐसे नाजुक मौके पर आसिम मुनीर ने साजिश रचते हुए कश्मीर फ्रंट को खोल दिया. ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान को भले ही मार पड़ी हो लेकिन अपने घरेलु मोर्चे पर लंबे समय बाद (बालाकोट के बाद) पाकिस्तानी सेना ये मैसेज देने में कामयाब रही कि पाकिस्तान की दीफा (रक्षा) करने वाला एकमात्र फैक्टर आज भी पाकिस्तानी सेना ही है. 

आसिम मुनीर ने डोमेस्टिक ऑडियंस के सामने जबर्दस्त प्रोपगैंडा वॉर खेला और सेना के बहाने अपनी लोकप्रियता में इजाफा कर लिया. ऐन मौके पर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ आसिम मुनीर को प्रमोशन खुद भी लोकप्रियता के लहर पर सवार हो गए. 

लेकिन यहां के बाद शहबाज शरीफ का सफर उथल-पुथल भरा हो सकता है. क्योंकि पाकिस्तान की अवाम को नेताओं के सफेद कुर्ते पायजामे से ज्यादा पसंद सेना के जनरलों के बूट हैं. 

द इकोनॉमिस्ट और सीएनएन के जैसी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियाों का आकलन है कि मुनीर का बढ़ता प्रभाव शहबाज शरीफ की सत्ता को चुनौती दे सकता है, क्योंकि सेना अब राजनीतिक नेतृत्व पर हावी हो रहा है. द वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, शहबाज शरीफ को सैन्य के साथ सावधानीपूर्वक संतुलन बनाना होगा, अन्यथा उनकी सत्ता खतरे में पड़ सकती है. इस मोड़ से आगे की पाकिस्तान की राह पर विश्लेषकों की नजर होगी. 

Advertisement

मुशर्रफ का अंजाम क्या हुआ

 

मुशर्रफ जितनी लोकप्रियता के साथ पाकिस्तान की सत्ता में आए, उनके जीवन का आखिरी समय उतने ही एकाकीपन, इस्लामाबाद से दूर दुबई के एक फ्लैट में एक खतरनाक बीमारी से जूझते हुए गुजरा. तब पाकिस्तान का कोई शख्स उन्हें याद नहीं कर रहा था. जिंदगी के अंतिम समय उन्होंने अपमान, अवसाद और बीमारी में गुजारे.

2008 में जनता और विपक्ष के दबाव में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.  इसके बाद वे दुबई और लंदन में निर्वासित जीवन जीने लगे. पाकिस्तान में उनपर कई केस दर्ज कर दिए गए. 2013 में वे चुनाव लड़ने दुबई से पाकिस्तान लौटे. लेकिन यहां पर उन पर देशद्रोह के मुकदमे चले. 2023 में दुबई में एक दुर्लभ बीमारी एमाइलॉयडोसिस ने उन्हें घेर लिया. इसी बीमारी ने उनकी जिंदगी खत्म कर दी. न तो पाकिस्तान की सेना को उसके इस कथित 'नायक' की चिंता थी और न ही किसी बड़े सियासतदान ने उनकी खोज खबर ली. यहां तक की पाकिस्तान का राजनीतिक नेतृत्व उन्हें मुल्क से दूर करने में ही जुटा रहा. क्योंकि तब तक पाकिस्तान में नए नेतृत्व का उदय हो चुका था. 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement