सुगौली, पूर्वी चंपारण जिले के पश्चिमी हिस्से में स्थित एक सामान्य वर्ग की विधानसभा सीट है. इसकी स्थापना वर्ष 1951 में हुई थी और अब तक यहां 16 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. यह सीट सुगौली और रामगढ़वा प्रखंडों को मिलाकर बनी है और पश्चिम चंपारण लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है. दिलचस्प बात यह है कि 1957 में यहां चुनाव नहीं हुआ था, जिससे यह बिहार की
उन कुछ सीटों में शामिल हो गई, जहां एक चुनावी चक्र मिस हुआ.
जिले मुख्यालय मोतिहारी से लगभग 28 किलोमीटर पश्चिम और राज्य की राजधानी पटना से करीब 190 किलोमीटर उत्तर में स्थित सुगौली, ऐतिहासिक और राजनीतिक दृष्टि से खास महत्व रखती है. इसके आसपास के प्रमुख शहरों में बेतिया (40 किमी उत्तर-पश्चिम), रक्सौल (35 किमी उत्तर), अरेराज (22 किमी दक्षिण-पूर्व) और मेहसी (60 किमी दक्षिण-पश्चिम) शामिल हैं. नेपाल की सीमा के उस पार बीरगंज (45 किमी उत्तर) और कलैया (60 किमी उत्तर-पूर्व) प्रमुख नगर हैं. यहां का सुगौली जंक्शन एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है.
सुगौली इतिहास के पन्नों में भी दर्ज है. वर्ष 1816 में यहीं ब्रिटिश भारत और नेपाल के बीच सुगौली संधि हुई थी, जिसने नेपाल और ब्रिटिश क्षेत्रों की सीमाओं को परिभाषित किया. महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए चंपारण सत्याग्रह में भी सुगौली की भूमिका रही. अंग्रेजी साहित्य में भी इसका जिक्र मिलता है, जैसे रुडयार्ड किपलिंग की कहानी रिक्की-टिक्की-टैवी में इसे "सेगोवली" के नाम से लिखा गया है.
भौगोलिक रूप से यह इलाका उपजाऊ और समतल है. धान, गेहूं, मक्का और गन्ना यहां की मुख्य फसलें हैं. कभी यहां एक चीनी मिल स्थानीय अर्थव्यवस्था का आधार थी, जो बाद में एथेनॉल उत्पादन योजना के तहत HPCL बायोफ्यूल्स लिमिटेड के अधीन चालू हुई. लेकिन नीतिगत देरी और परिचालन समस्याओं के कारण यह बंद हो गई और अब रोजगार का प्रमुख स्रोत नहीं रही. बागमती नदी के समीप होने से बाढ़ की समस्या अक्सर बनी रहती है. उद्योग सीमित हैं और युवाओं का बड़े पैमाने पर पलायन देखा जाता है.
राजनीतिक इतिहास की बात करें तो शुरूआती दौर में कांग्रेस का दबदबा रहा और उसने चार बार जीत दर्ज की. भाजपा भी चार बार यहां जीत चुकी है, जिसमें एक बार 1967 में इसके पूर्व रूप भारतीय जनसंघ के नाम से. सीपीआई ने तीन, राजद ने दो और समाजवादी पार्टी, कोसल पार्टी तथा एक निर्दलीय प्रत्याशी ने एक-एक बार जीत हासिल की है. रामाश्रय सिंह (सीपीआई) और रामचंद्र साहनी (भाजपा) तीन-तीन बार के विजेता रहे हैं.
2020 के चुनाव में यह सीट राजद ने जीती. भाजपा ने इसे अपने सहयोगी विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को दिया था, लेकिन राजद के शशि भूषण सिंह ने 3,447 वोटों से जीत दर्ज की. इसमें लोजपा की भूमिका अहम रही, जिसने अलग से उम्मीदवार उतारकर 8.3 प्रतिशत वोट हासिल किए और वीआईपी की हार सुनिश्चित की.
2020 में इस सीट पर कुल 2,87,461 मतदाता दर्ज थे, जिनमें अनुसूचित जाति के 11.22% और मुस्लिम मतदाता 23.40% थे. 2024 लोकसभा चुनाव तक मतदाताओं की संख्या बढ़कर 2,88,765 हो गई. पलायन की वजह से 2,529 मतदाता सूची से बाहर हुए. मतदान प्रतिशत स्थिर रहा और 2020 में यह 59.36% था.
2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सुगौली खंड में 32,390 वोटों की बढ़त बनाई. अब जबकि वीआईपी राजद गठबंधन में चली गई है और लोजपा दोबारा एनडीए में शामिल हो चुकी है, ऐसे में 2025 विधानसभा चुनाव में भाजपा के यहां से लड़ने की संभावना प्रबल है. विपक्षी गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर जारी मतभेद भाजपा को बढ़त दिला सकते हैं.
(अजय झा)