ढाका, बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में स्थित एक सामान्य वर्ग की विधानसभा सीट है. यह क्षेत्र शिवहर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है और इसमें ढाका और घोड़ासहन प्रखंड शामिल हैं.
यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि यह ‘ढाका’ बांग्लादेश की राजधानी से भिन्न है. यह उत्तर बिहार का एक
व्यस्त कस्बा है, जो भारत-नेपाल सीमा के समीप स्थित है और सिकरहना अनुमंडल का मुख्यालय भी है. ऐतिहासिक रूप से दोनों ‘ढाका’ नामों के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध साबित नहीं हुआ है, लेकिन नाम की समानता संयोग मात्र भी नहीं लगती. विभाजन से पूर्व, दोनों क्षेत्र अविभाजित भारत का हिस्सा थे. कुछ स्थानीय कथाओं के अनुसार, बंगाल क्षेत्र के व्यापारियों या प्रवासियों के प्रभाव से इस कस्बे का नामकरण हो सकता है, हालांकि यह केवल अनुमान है.
ढाका, जिला मुख्यालय मोतिहारी से लगभग 28 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है. यह मेहसी, बैरगनिया और सुगौली जैसे नगरों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है. यह भारत-नेपाल सीमा के काफी नजदीक है, और बैरगनिया एवं रक्सौल के जरिए नेपाल के गौर, चंद्रनिगहापुर और बीरगंज जैसे शहरों तक पहुंचा जा सकता है. रक्सौल, एक प्रमुख व्यापारिक और ट्रांजिट हब, धाका से लगभग 28 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है. इसके दक्षिण में सीतामढ़ी और बेलसंड जैसे शहर हैं, जबकि राज्य की राजधानी पटना ढाका से लगभग 180 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में है.
ढाका एक स्थानीय व्यापारिक केंद्र के रूप में उभरा है, जहां ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले लोग खरीदारी के लिए आते हैं. यहां के बाजारों में स्थानीय उत्पादों के साथ-साथ ब्रांडेड सामान भी उपलब्ध होता है. यह क्षेत्र मुख्यतः कृषि-प्रधान है, जहां धान, मक्का और गन्ना प्रमुख फसलें हैं. हालांकि, उत्तर बिहार के अन्य हिस्सों की तरह यहां भी बड़ी संख्या में लोग दिल्ली, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में काम करने के लिए प्रवास करते हैं, और उनका रेमिटेंस स्थानीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है.
ढाका विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी और तब से अब तक यहां 17 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. शुरुआती दशकों में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व रहा, जिसमें मसूदुर रहमान और मोतिउर रहमान जैसे नेता प्रमुख रहे. 1952 से 1985 के बीच हुए 9 चुनावों में से कांग्रेस ने 6 बार जीत दर्ज की.
इसके बाद का समय बीजेपी और आरजेडी के बीच सत्ता की अदला-बदली का रहा. बीजेपी ने इस सीट पर 5 बार जीत दर्ज की, आरजेडी ने 2 बार, जबकि सीपीआई, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी और एक निर्दलीय प्रत्याशी ने एक-एक बार जीत हासिल की.
बीजेपी के अवनीश कुमार सिंह ने 1990 से 2005 के बीच चार बार इस सीट पर जीत दर्ज की. आरजेडी के मनोज कुमार सिंह ने 2000 में जीत हासिल की. 2010 में पवन कुमार जयसवाल ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की और जदयू के फैसल रहमान को हराया. 2015 में फैसल रहमान ने आरजेडी के टिकट पर जयसवाल को हराया, लेकिन 2020 में जयसवाल ने बीजेपी प्रत्याशी के रूप में फिर से जीत दर्ज की.
पवन कुमार जयसवाल की राजनीतिक यात्रा उल्लेखनीय है. वे एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और ‘राम रहीम सेना’ के संस्थापक हैं. उन्होंने क्षेत्र में 'सामूहिक विवाह' की परंपरा शुरू की, जिससे उन्हें विभिन्न समुदायों में लोकप्रियता मिली.
2020 विधानसभा चुनाव में ढाका में कुल 3,21,111 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें लगभग 31,951 अनुसूचित जाति (9.95%), 225 अनुसूचित जनजाति (0.07%) और 1,02,755 मुस्लिम मतदाता (32%) थे. 2024 लोकसभा चुनाव तक यह संख्या बढ़कर 3,26,275 हो गई. यह क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण है, जहां 91% से अधिक लोग गांवों में रहते हैं.
2020 के विधानसभा चुनाव में पवन कुमार जयसवाल (बीजेपी) ने 99,792 वोट (48.01%) प्राप्त किए, जबकि फैसल रहमान (आरजेडी) को 89,678 वोट (43.15%) मिले. आरएलएसपी को मात्र 5% वोट प्राप्त हुए.
2024 के लोकसभा चुनावों में आरजेडी ने ढाका विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी पर 12,818 वोटों की बढ़त बनाई थी, जिससे आगामी विधानसभा चुनाव में मुकाबला दिलचस्प हो गया है.
ढाका, अपने आकार में भले ही सीमित हो, लेकिन यहां के नेताओं ने क्षेत्रीय राजनीति से आगे भी पहचान बनाई है. मोतिउर रहमान जैसे नेता राज्यसभा सांसद रह चुके हैं. इसके अलावा, चंपारण सत्याग्रह में भी इस क्षेत्र का योगदान रहा है- स्थानीय स्वतंत्रता सेनानी सियाराम ठाकुर जैसे लोग इस आंदोलन में सक्रिय रहे.
2025 के विधानसभा चुनाव के लिए ढाका एक बार फिर से राजनीतिक चर्चाओं में है. बीजेपी जहां जयसवाल के नेतृत्व और संगठनात्मक ताकत के भरोसे आगे बढ़ रही है, वहीं आरजेडी पारंपरिक समर्थन और संभावित एंटी-इनकम्बेंसी की उम्मीद लगाए बैठी है. लेकिन ढाका के इतिहास से यही निष्कर्ष निकलता है- यहां कोई भी बढ़त सुरक्षित नहीं होती और कोई भी नतीजा पूरी तरह से पूर्वानुमानित नहीं होता.
(अजय झा)