लौरिया बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में स्थित एक सामान्य श्रेणी की विधानसभा सीट है, जो वाल्मीकि नगर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. यह क्षेत्र योगापट्टी प्रखंड और लौरिया प्रखंड के 17 ग्राम पंचायतों को मिलाकर बना है. पूरी तरह ग्रामीण इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति भारत-नेपाल सीमा के निकट उत्तर-पश्चिमी बिहार में है. ऐतिहासिक दृष्टि से यह क्षेत्र
महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां सम्राट अशोक का एक पत्थर का स्तंभ स्थित है, जिस पर धर्म और अहिंसा से जुड़े आदेश खुदे हैं. लौरिया नंदनगढ़ स्तूप, जिसे भगवान बुद्ध के अवशेषों से जोड़ा जाता है, इस क्षेत्र की सांस्कृतिक और पुरातात्विक महत्ता को और बढ़ाता है.
लौरिया विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1957 में हुई थी और यह शुरू में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी. लेकिन 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद इसे सामान्य श्रेणी में वर्गीकृत किया गया. अब तक यहां 16 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. 1957 से 2000 के बीच कांग्रेस पार्टी ने सात बार इस सीट पर जीत दर्ज की, जबकि जनता दल और जनता दल (यूनाइटेड) ने दो-दो बार जीत हासिल की. इसके अलावा, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी दो-दो बार सीट जीती है. स्वतंत्र पार्टी ने 1969 में एक बार यह सीट जीती थी.
2020 के विधानसभा चुनाव में लौरिया में कुल 2,56,277 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें से लगभग 13.3% अनुसूचित जाति, 1.43% अनुसूचित जनजाति और 16.80% मुस्लिम मतदाता शामिल थे. मतदान प्रतिशत लगभग 61.60% रहा. 2024 के लोकसभा चुनाव तक मतदाताओं की संख्या बढ़कर 2,62,111 हो गई थी.
हाल के वर्षों में लौरिया की राजनीति में भाजपा का प्रभाव बढ़ा है. 2010 में निर्दलीय उम्मीदवार विनय बिहारी ने 10,881 वोटों के अंतर से जीत हासिल की और बाद में भाजपा में शामिल हो गए. उन्होंने 2015 और 2020 में क्रमशः 17,573 और 29,004 वोटों के अंतर से लगातार जीत दर्ज की, जिससे भाजपा की पकड़ इस क्षेत्र में मजबूत हुई.
वाल्मीकि नगर लोकसभा सीट के गठन (2008) के बाद से लौरिया विधानसभा क्षेत्र में एनडीए को लगातार बढ़त मिलती रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए प्रत्याशी और जदयू नेता सुनील कुमार कुशवाहा ने लौरिया क्षेत्र में 19,379 वोटों की बढ़त हासिल की, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के लिए 2025 के विधानसभा चुनाव में यह सीट चुनौतीपूर्ण बनी हुई है.
लौरिया की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है. धान, गेहूं, मक्का और गन्ना यहां की प्रमुख फसलें हैं. छोटे स्तर के कृषि प्रसंस्करण इकाइयाँ और स्थानीय व्यापार केंद्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सहारा देते हैं, हालांकि औद्योगिक विकास की गति धीमी है. कई परिवार रोजगार की तलाश में शहरी क्षेत्रों या नेपाल की ओर पलायन करते हैं. नेपाल की निकटता के कारण कृषि उत्पादों और उपभोक्ता वस्तुओं का सीमावर्ती व्यापार भी काफी सक्रिय है.
यह क्षेत्र बुढ़ी गंडक नदी के किनारे स्थित है, जो कृषि के लिए जल स्रोत का कार्य करती है. लौरिया जिला मुख्यालय बेतिया से 28 किमी पश्चिम में और नरकटियागंज से 14 किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित है. पूरब में स्थित मोतिहारी (पूर्वी चंपारण) लौरिया से लगभग 65 किमी दूर है, जबकि राज्य की राजधानी पटना 240 किमी दूर स्थित है और एनएच-28 व मुजफ्फरपुर-बेतिया कॉरिडोर के जरिए यहां से जुड़ी हुई है. आसपास के अन्य प्रमुख कस्बों में चनपटिया (22 किमी पूर्व), रामनगर (30 किमी उत्तर), और बगहा (35 किमी उत्तर-पश्चिम) शामिल हैं. नेपाल सीमा पार के शहरों जैसे परवानीपुर (40 किमी), बीरगंज (45 किमी), और कलैया (50 किमी) तक भी लौरिया से आसानी से पहुंचा जा सकता है.
लौरिया के निकटतम रेलवे स्टेशन साठी में है, जो लगभग 10 किमी दूर स्थित है. इसके अलावा नरकटियागंज और बेतिया से भी रेल संपर्क उपलब्ध है. सड़क मार्ग से यह क्षेत्र बेतिया-वाल्मीकि नगर मार्ग से जुड़ा हुआ है, और स्थानीय बसें तथा जीपें आंतरिक गांवों तक आवाजाही की सुविधा देती हैं.
(अजय झा)