सिकटा, बिहार के पश्चिम चंपारण जिले का एक प्रखंड है, जो वाल्मीकिनगर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. यह विधानसभा क्षेत्र सिकटा और मैना टांड़ प्रखंडों के साथ नरकटियागंज प्रखंड के बरवा बरौली, सोमगढ़ और भभता पंचायतों को मिलाकर बना है. यह पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्र है, जहां शहरी मतदाता नहीं हैं. नेपाल सीमा से सटा यह इलाका जिला मुख्यालय बेतिया से लगभग
45 किमी उत्तर-पश्चिम और राज्य की राजधानी पटना से करीब 275 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है. नजदीकी कस्बों में नरकटियागंज (15 किमी दक्षिण-पूर्व), रामनगर (10 किमी उत्तर-पूर्व), बेतिया (45 किमी दक्षिण-पूर्व) और रक्सौल (65 किमी उत्तर-पूर्व) शामिल हैं. यहां सड़क संपर्क मध्यम है, जबकि रेलवे की सुविधा नरकटियागंज और सिकटा स्टेशन से उपलब्ध है.
1951 में स्थापित सिकटा विधानसभा क्षेत्र अब तक 18 बार चुनाव देख चुका है, जिनमें 1991 का उपचुनाव भी शामिल है. यहां के मतदाताओं ने लगभग सभी प्रमुख दलों को मौका दिया है, सिवाय राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के, जिसने केवल वर्ष 2000 में चुनाव लड़ा और तीसरे स्थान पर रहा. अब तक कांग्रेस ने छह बार, निर्दलीयों ने तीन बार और जनता दल ने दो बार जीत दर्ज की है. वहीं स्वतंत्र पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI), चंपारण विकास पार्टी, भाजपा, समाजवादी पार्टी, जदयू और भाकपा (माले) ने एक-एक बार जीत हासिल की है.
यहां के चुनावी इतिहास में दल बदलू नेताओं का दबदबा रहा है. रईफुल आजम ने 1962 और 1967 में अलग-अलग दलों (स्वतंत्र पार्टी और कांग्रेस) से जीत हासिल की. फैयाजुल आजम ने कांग्रेस के टिकट पर दो बार (1972 और 1977) और 1990 में निर्दलीय के रूप में जीत दर्ज की. 1991 के उपचुनाव में दिलीप वर्मा विजयी रहे और इसके बाद उन्होंने पांच बार अलग-अलग दलों (निर्दलीय, चंपारण विकास पार्टी, भाजपा, समाजवादी पार्टी) से चुनाव जीता. 2015 में जदयू के फिरोज अहमद ने उन्हें 2,835 वोटों से हराया, जबकि 2020 में भाकपा (माले) के बिरेंद्र प्रसाद गुप्ता ने वर्मा को 2,302 वोटों से मात दी.
सिकटा सीट पर जदयू और भाजपा के बीच खींचतान देखी जा सकती है. भाजपा समर्थक गुट दिलीप वर्मा की दो करीबी हार का हवाला देते हुए उन्हें फिर से उम्मीदवार बनाने का दबाव बना सकता है. दूसरी ओर, जदयू अपनी पकड़ इस आधार पर मजबूत मानता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उसे सिकटा से 8,549 वोटों की बढ़त मिली थी.
साल 2020 में यहां 2,74,502 मतदाता पंजीकृत थे, जिनमें 82,899 मुस्लिम (30.20%), 37,689 अनुसूचित जाति (13.73%) और 3,306 अनुसूचित जनजाति (3.39%) शामिल थे. 2024 तक यह संख्या बढ़कर 2,89,162 हो गई. 2020 में यहां 62.03% मतदान हुआ, जो हाल के वर्षों में सबसे कम था लेकिन अन्य क्षेत्रों की तुलना में फिर भी अधिक माना जाता है.
आर्थिक दृष्टि से यह इलाका पूरी तरह कृषि पर आधारित है. धान यहां की मुख्य फसल है. इसके अलावा गेहूं, मक्का, दलहन, सरसों और जूट की भी खेती होती है. सब्जियों में बैंगन, भिंडी, टमाटर और लौकी जैसी फसलें उगाई जाती हैं. औद्योगिक गतिविधियां लगभग न के बराबर हैं, जिसके कारण रोजगार के अवसर सीमित हैं और युवाओं का पलायन आम है.
वर्तमान में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया, जिसके तहत फर्जी दस्तावेजों से बने मतदाताओं की पहचान की जा रही है, सिकटा की चुनावी तस्वीर बदल सकती है. इसका असर खासकर मुस्लिम वोटरों पर पड़ सकता है. यदि उनका वोट प्रतिशत घटता है, तो एनडीए को फायदा मिल सकता है, वहीं सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हिंदू वोटों को भी प्रभावित कर सकता है. इसके साथ ही जन सुराज पार्टी की मौजूदगी चुनाव को और अनिश्चित बना रही है.
कुल मिलाकर, 2025 के विधानसभा चुनाव में सिकटा एनडीए के लिए एक बेहद अहम और चुनौतीपूर्ण सीट बनी हुई है.
(अजय झा)