पूर्वी चंपारण जिले की कल्याणपुर विधानसभा सीट को समस्तीपुर जिले की कल्याणपुर सीट से भ्रमित नहीं करना चाहिए, क्योंकि समस्तीपुर की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. पूर्वी चंपारण की कल्याणपुर सीट का गठन 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद हुआ था. इसमें कोटवा प्रखंड पूरा और कल्याणपुर प्रखंड के 18 ग्राम पंचायत शामिल हैं. इसके गठन के बाद अब
तक तीन विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और हर चुनाव में मतदाताओं ने अलग-अलग दल को चुनकर इसे अस्थिर राजनीतिक क्षेत्र बना दिया है.
2010 के पहले चुनाव में जनता दल (यूनाइटेड) की उम्मीदवार रजिया खातून ने राजद प्रत्याशी मनोज कुमार यादव को 15,402 वोटों से हराया. 2015 में जदयू ने एनडीए से अलग होकर राजद के साथ चुनाव लड़ा, और भाजपा प्रत्याशी सचिन्द्र प्रसाद सिंह ने रजिया खातून को 11,488 वोटों से शिकस्त दी. 2020 में जदयू दोबारा एनडीए में लौट आई और भाजपा ने सीट पर चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार राजद के मनोज कुमार यादव ने सचिन्द्र प्रसाद सिंह को केवल 1,193 वोटों से हराकर सीट अपने नाम की.
2020 की हार के बावजूद एनडीए ने 2024 लोकसभा चुनाव में फिर से मजबूती दिखाई. भाजपा को कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र में 14,014 वोटों की बढ़त मिली. हालांकि यह आंकड़ा 2019 की 36,261 और 2014 की 25,775 वोटों की बढ़त से काफी कम था. 2009 में भाजपा की बढ़त 11,955 वोट थी.
2020 विधानसभा चुनाव में कल्याणपुर सीट पर कुल 2,56,790 पंजीकृत मतदाता थे, जिनमें 41,318 अनुसूचित जाति (16.09%) और 36,977 मुस्लिम मतदाता (14.40%) शामिल थे. यह पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्र है, जहां शहरी मतदाता नहीं हैं. 2020 में मतदान प्रतिशत 62.54% रहा. 2024 लोकसभा चुनाव तक मतदाता संख्या बढ़कर 2,63,186 हो गई, जो स्थिर जनसांख्यिकी और कम पलायन को दर्शाता है.
ऐतिहासिक रूप से यह क्षेत्र चंपारण आंदोलन की पृष्ठभूमि से जुड़ा है, जहां महात्मा गांधी ने 1917 में नील आंदोलन के जरिए स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी थी. भौगोलिक रूप से यह इलाका उपजाऊ मैदानी क्षेत्र है. गंडक नदी पश्चिम से बहती है, जो खेती में सहायक होने के साथ-साथ बाढ़ का खतरा भी पैदा करती है. यहां धान, गेहूं और दलहन की खेती प्रमुख है, लेकिन सिंचाई और बुनियादी ढांचे की कमी बड़ी चुनौती बनी हुई है.
रोजगार के अवसर कम होने के कारण यहां से लोग दिल्ली, सूरत और कोलकाता जैसे शहरों में पलायन करते हैं. क्षेत्र में कोई बड़ी उद्योग-धंधा नहीं है और स्वास्थ्य व शिक्षा सुविधाएं भी अपर्याप्त हैं.
संविधानिक दृष्टि से कल्याणपुर, मोतिहारी (25 किमी), रक्सौल (60 किमी), मुजफ्फरपुर (80 किमी) और राज्य की राजधानी पटना (160 किमी) से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है.
भाजपा की लोकसभा चुनावों में लगातार मजबूत स्थिति के बावजूद विधानसभा चुनाव का समीकरण अलग होता है. 2020 में भाजपा की करीबी हार और अब तक किसी भी विधायक का दोबारा जीतकर न आना इस सीट को बेहद रोचक और अनिश्चित बना देता है. 2025 का चुनाव कल्याणपुर में किसके पक्ष में जाएगा, यह कहना अभी मुश्किल है.
(अजय झा)