एक बच्चे को पालने में हर साल खर्च होते हैं 13 लाख! मुंबई के शख्स की सोशल मीडिया पर पोस्ट पर छ‍िड़ी बहस

पोस्ट में ल‍िखा कि अगर आप अपनी कमाई का 30 फीसदी बच्चे पर खर्च करते हैं तो आपकी नेट सैलरी 43-44 लाख रुपये सालाना होनी चाहिए. टैक्स जोड़ने के बाद एक बच्चे को अच्छे से पालने के लिए ग्रॉस सैलरी 55 से 60 लाख रुपये तक चाहिए और ये सिर्फ एक बच्चे का हिसाब है! दूसरा बच्चा हुआ तो ये खर्च और बढ़ जाता है.

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Mumbai man says raising a child costs Rs 13 lakh annually (Photo: Pexels) Mumbai man says raising a child costs Rs 13 lakh annually (Photo: Pexels)

aajtak.in

  • मुंबई,
  • 13 जून 2025,
  • अपडेटेड 6:18 PM IST

बच्चों को पालना और उन्हें अच्छी शिक्षा देना आज के समय में किसी जंग लड़ने से कम नहीं. मुंबई के अंकुर झवेरी ने जब इसकी हकीकत को लिंक्डइन पर बयां किया तो सोशल मीडिया पर तहलका मच गया. उनकी पोस्ट में बताया गया कि भारत के बड़े शहरों में खासकर प्रीमियम स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने का खर्च आसमान छू रहा है. 

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अंकुर ने अपनी पोस्ट में लिखा कि मुझे कभी नहीं पता था कि भारत में बच्चे पालना इतना महंगा है. पिछले हफ्ते अपनी कजिन से मिला, जो एक इंटरनेशनल स्कूल में टीचर है तब जाकर आंखें खुलीं. उनके हिसाब से एक इंटरनेशनल स्कूल की फीस हर साल 7 से 9 लाख रुपये तक होती है. लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती. किताबें, यूनिफॉर्म, प्राइवेट ट्यूशन जैसी जरूरतों के लिए 2 से 4 लाख रुपये और खर्च होते हैं. फिर बच्चों की एक्टिविटीज, कपड़े और बर्थडे पार्टी जैसे खर्च जोड़ लो तो एक बच्चे पर सालाना खर्च 13 लाख रुपये तक पहुंच जाता है. 

60 लाख की सैलरी चाहिए!
अंकुर का कहना है कि अगर आप अपनी कमाई का 30 फीसदी बच्चे पर खर्च करते हैं तो आपकी नेट सैलरी 43-44 लाख रुपये सालाना होनी चाहिए. टैक्स जोड़ने के बाद एक बच्चे को अच्छे से पालने के लिए ग्रॉस सैलरी 55 से 60 लाख रुपये तक चाहिए और ये सिर्फ एक बच्चे का हिसाब है! दूसरा बच्चा हुआ तो ये खर्च और बढ़ जाता है. अंकुर ने हल्के अंदाज में लिखा कि अब समझ आया कि आजकल लोग बच्चे क्यों नहीं चाहते. 

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सोशल मीडिया पर छिड़ी जंग
अंकुर की पोस्ट ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी. कई यूजर्स ने भी उनकी पोस्ट पर अपने अनुभव साझा किए. एक यूजर ने लिखा कि स्कूलों की फीस हर साल महंगाई से दोगुनी रफ्तार से बढ़ रही है. भारतीय माता-पिता बच्चों की पढ़ाई के लिए कर्ज तक ले लेते हैं. एक अन्य यूजर ने सवाल उठाया कि अगर 7-9 लाख फीस देने के बाद भी बच्चे को ट्यूशन चाहिए तो ऐसे स्कूल का क्या मतलब? इससे बच्चे पर बोझ ही बढ़ता है. 

कुछ यूजर्स ने भविष्य की चिंता जताई. एक ने लिखा, 'ये तो अभी का खर्च है, विदेश में प्रोफेशनल डिग्री का खर्च और बड़ा है. अगले 10 साल तक हर साल इतना बचाना होगा और सिंगल इनकम वालों के लिए तो रिटायरमेंट की बचत का सवाल ही नहीं उठता. 

सस्ते स्कूलों पर भी जवाब
कई लोगों ने कहा कि ICSE या CBSE स्कूलों में फीस कम होती है. इस पर अंकुर ने जवाब दिया कि आज के माता-पिता अपने बच्चों को 'बेस्ट' देने की होड़ में हैं. FOMO (फियर ऑफ मिसिंग आउट) की वजह से लोग प्रीमियम स्कूलों की तरफ भाग रहे हैं. अच्छे ICSE स्कूलों में भी एडमिशन आसान नहीं.

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