Mission Tiger: कुदरत ने इंसानों के लिए बस्तियां दी और जानवरों के लिए जंगल. जब ये दोनों अपनी हदों में रहते हैं, तब तक तो सब ठीक रहता है. लेकिन जैसे ही इनमें से कोई अपनी सीमा लांघता है, चारों तरफ खौफ पसर जाता है. पीलीभीत टाइगर रिजर्व के इर्द-गिर्द बसे हजारों लोग भी इन दिनों ऐसे ही खौफ में जी रहे हैं. पुलिस और प्रशासन भी लाचार नजर आ रहा है. आइए आपको बताते हैं, इसी खौफ की खौफनाक कहानी.
खौफ के साए में जीने को मजबूर हजारों लोग
कभी लोग डर के मारे पेड़ों पर जा चढ़ते हैं. तो कहीं पुलिस और ग्राम प्रधान माइक से लोगों को दूर हटने की हिदायत देते हैं. कहीं ट्रैंकुलाइजर गन यानी नशीली गोली से हालात पर काबू पाने की कोशिश चल रही है. तो कहीं पिंजरानुमा ट्रैक्टर वनकर्मियों का सहारा बने हैं. और कहीं इंसान के पुराने दोस्तों में से एक यानी हाथी इंसानों का सहारा दे रहे हैं. और इन सबके पीछे है, वही शय. जिसके चलते उतर प्रदेश के पीलीभीत जिले के 15 गांवों के करीब 20 हजार लोगों की आबादी बेचैन हो गई है. वहां रहने वाले लोगों की रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो चुका है. जी हां, वो है टाइगर.
काबू नहीं आ रहा टाइगर
पीलीभीत टाइगर रिजर्व के इर्द-गिर्द बसे इन गांवों के लोग इन दिनों ऐसे ही खौफ के साये में जी रहे हैं. लोग ना तो दिन में अपना काम-काज निपटा सकते हैं और ना ही रात को घरों से बाहर निकल सकते हैं. पता नहीं कोई खेत में काम कर रहा हो और पीछे से बाघ उसे उठा ले जाए. हां, वन विभाग के कर्मचारियों को देख कर लोगों का हौसला थोड़ा जरूर बढता है. तमाशबीनों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है. लेकिन फिर जैसे ही ऑपरेशन टाइगर पूरा होता है, पूरे के पूरे इलाके में खामोशी पसर जाती है. पिछले कुछ दिनों से अलग-अलग गावों में लगातार यही खेल चल रहा है, लेकिन टाइगर है कि काबू नहीं आ रहा.
रिहायशी इलाकों में टाइगर की एंट्री
असल में पीलीभीत के ये गांव पीलीभीत टाइगर रिजर्व के बिल्कुल करीब बसे हैं. अब इसे बाघों की बढ़ती आबादी का असर कहें या बाघों के इलाके में इंसानों की दखलअंदाजी का नतीजा. पिछले करीब महीने भर से बाघों ने रिहायशी इलाकों में एंट्री मारने की ऐसी शुरुआत की है कि मवेशियों से लेकर इंसानों तक बाघों का निवाला बनाने लगे हैं. ऐसे में इंसानों की बस्ती में खलबली तो लाजिमी है. लेकिन इससे पहले कि अलग-अलग गांवों में मची खलबली के बीच वन विभाग के इस ऑपरेशन टाइगर का एक एक सच आपको बताएं, आइए जल्दी से आपको उन लोगों के पहचान बता दें, जो बाघों का शिकार बन कर मौत के मुंह में समा गए.
28 जून 2023
लालता प्रसाद, गांव रानीगंज
16 अगस्त 2023
राम मूर्ति, गांव रानीगंज
21 सितंबर 2023
रघुनाथ, गांव माला कॉलोनी
26 सितंबर 2023
तोताराम, गांव जमुनिया
बढ़ गईं बाघों के हमले की घटनाएं
ये तो महज़ चंद नाम हैं, जो पिछले कुछ दिनों में बाघों का शिकार बने. लेकिन पीलीभीत के इस इलाके में साल दर साल बाघों के हमले से ऐसी मौतें होती रही हैं. इस बार फर्क बस इतना है कि बाघों के हमले की फीक्वेंसी यानी बारंबारता कुछ ज्यादा ही बढ गई है. बाघ खेतों में छुप कर बैठे हैं, इंसानों की आंखों में आंखें डाल कर आराम से मवेशियों को चट कर रहे हैं. और डर के मारे लोगों की जान निकल रही है.
टुकड़ों में मिली लालता प्रसाद की लाश
28 जून को रानीगंज गांव के रहनेवाले लालता प्रसाद खेतों में काम करने के लिए गए थे. लेकिन जब देर तक वो घर नहीं लौटे तो लोगों ने उनकी तलाश करनी शुरू की. मगर कुछ घंटों के बाद टुकडों में बंटे लालता प्रसाद की लाश लोगों के हाथ लगी. यही हाल इस गांव के राम मूर्ति का भी हुआ. और फिर रघुनाथ और तोताराम का भी.
परेशान हैं हजारों गांववाले
फिलहाल, हालत ये है कि अपनों को गंवाने के बाद इन परिवारों को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर वो करें तो क्या करें और इन मौतों का दोष दें, तो किसे दें. वन विभाग के लोग अपनी तरफ से कार्रवाई करने की बात तो कह रहे हैं, कार्रवाई करते हुए नजर भी आ रहे हैं, लेकिन हो कुछ नहीं रहा है.
बेहोशी की दवा भी बेअसर
रानीगंज गांव के बाद अब बात बांसखेडा गांव की. ये वो गांव है जहां बाघ जंगल से निकल खेतों में आकर बैठा है. चार दिनों से वन विभाग की टीम उस बाघ को बेहोश कर काबू करने की कोशिश कर रही है, लेकिन नतीजा सिफर है. हालत ये है कि गांव वालों और वन विभाग के लोगों की हिफाजत के उस खेत को चारों ओर से जाल से घेर दिया है, लेकिन बाघ है कि उस पर अपने अलग-बगल चल रही इस हलचल का कोई असर नहीं हो रहा और वो बड़े आराम से खेत में बैठ कर शिकार किए गए मवेशी को खाने में लगा है. ऑपरेशन से पहले वन विभाग के लोग बाकायदा मुनादी कर लोगों को खतरे का अहसास दिलाते हैं और उन्हें पीछे हटने की हिदायत देते हैं. फिर एक मिनी ट्रक के ऊपर से वन विभाग के डॉक्टर ट्रैंकुलाइजर गन से बाघ पर बेहोशी की दवा फायर करते हैं, शॉट बाघ को लगता भी है, लेकिन उस पर नशीली गोली का भी कोई असर नहीं होता. मानों बेहोशी की दवा भी नकली आ गई हो.
क्लोज एनकाउंटर के बाद नतीजा जीरो
एक बार तो हालात कुछ ऐसे पैदा होते हैं कि नशे की गोली लगने के बाद लोगों के शोर से घबरा कर बाघ सीधे झाडियों से निकल दौड़ लगा देता है. डर के मारे वन विभाग के कर्मचारी खुद को पिंजरेनुमा गाड़ी में छुपाने की कोशिश करते हैं, लेकिन बाघ सीधे खेत के बाहर लगे जाल से टकराता है और भाग कर फिर से उसी झाड़ी में घुस जाता है. लेकिन इतने क्लोज एनकाउंटर के बाद भी बाघ बेहोश नहीं होता और उसे पकड़ना संभव नहीं हो पाता.
7 सालों में गई 38 लोगों की जान
पीलीभीत टाइगर रिजर्व में पिछले सात सालों में बाघों ने कुल 38 लोगों की जान ली है. और ये सिलसिला कब, कहां और कैसे रुकेगा, ये कोई नहीं जानता. वन विभाग के आंकडों के मुताबिक इस टाइगर रिजर्व कुल 71 बाघ हैं. और इनमें पांच बाघ ऐसे हैं, जो पिछले कई दिनों से इंसानी आबादी के बीच ही घूम टहल रहे हैं. मवेशियों और इंसानों का शिकार कर रहे हैं, ऐसे में इंसानों का बेचैन हो जाना लाजिमी है. हालत ये है कि यहां डर के मारे लोग बाहर नहीं निकल रहे और वन विभाग है कि रेस्क्यू ऑपरेशन लगातार चला रहा है. ये और बात है कि हाथ कुछ नहीं लग रहा. बाघों के लिए लगाए गए पिंजरों के साथ-साथ उन्हें ले जाने के लिए मंगवाई गई गाड़ियां तक जस की तस खड़ी हैं.
पेड़ पर चढ़कर निगरानी
वहा से आई कुछ तस्वीरों की बात करें तो वहां एक शख्स गांव के बीचों-बीच लगे सबसे ऊंचे पेड़ की सबसे ऊंची डाली पर खड़ा है. और ये इस पेड़ के ऊपर घंटों से सिर्फ इसलिए खड़ा है, ताकि अगर उसे कहीं भी बाघ नजर आए, तो वो पहले ही चिल्ला कर गांव वालों को आगाह कर दे. हालत ये है कि पेड़ के ऊपर चढ कर बाघों की निगरानी करने के लिए अब गांव के हर परिवार के मेंबर की बारी-बारी से ड्यूटी लगने लगी है.
इलाके में तैनात की गई बाघ विशेषज्ञों की टोली
बाघों के खतरे को देखते हुए बाघ विशेषज्ञों की टोली भी इन गांवों में आ पहुंची है, जो लोगों की मदद करने के साथ-साथ वनकर्मियों को बाघों को पकड़ने में उनका साथ दे रही है. बाघ मित्र के नाम से जाने जानेवाले बाघ विशेषज्ञों को बाघों की हर हलचल का पता होता है, वो बाघों के स्वभाव के बारे में भी बेहतर जानते हैं. ऐसे में उनसे कैसे बचा जाए, कैसे बिना डिस्टर्ब किए बाघों को फिर से जंगलों की तरफ मोड़ा जाए, ये रास्ता भी बाघ मित्र ही बता सकते हैं.
वन विभाग के अजीब हालात
लेकिन इन सबके बीच सबसे अजीब हालत खुद वन विभाग की है, जिनके हाथ अब तक कुछ नहीं लगा है. और ऐसे में उन्हें मीडिया के सवालों का जवाब देते भी नहीं बन रहा. हमने वन विभाग के अधिकारियों से बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन वो कन्नी काटते रहे.
कुमार अभिषेक / सौरभ पांडे