देशभर में किसानों के बीच हाइब्रिड बीजों के इस्तेमाल की लोकप्रियता बढ़ी है. विशेषज्ञों का मानना है कि पारंपरिक किस्मों की तुलना में हाइब्रिड किस्में फसल के लिए जल्दी तैयार हो जाती हैं. साथ ही इन किस्मों से उपज भी ज्यादा हासिल होती है. हालांकि, उपज की क्वालिटी पारंपरिक किस्मों के तुलना में कम होती है. इसके अलावा हाइब्रिड बीजों के उपयोग से देश की फसल विविधता और स्थानीय जलवायु के लिए अधिक अनुकूल पारंपरिक किस्मों के लिए खतरा पैदा होता है.
देसी बीजों के मुकाबले पोषण और स्वाद कम
हाइब्रिड बीज यानी संकर बीजों को कृत्रिम रूप में डिजाइन किया जाता है. ये बीज दो या दो से अधिक पौधों के क्रॉस पॉलिनेशन से बनाए जाते हैं, जिससे दो वैरायटी के गुण एक ही बीज में आ जाते हैं, वैज्ञानिकों ने इन बीजों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है. जिसमें पहली पीढ़ी के बीज F1, दूसरी पीढ़ी के बीज F2 और तीसरी पीढ़ी के बीजों को F3 कहा जाता है. ये बीज देसी बीजों के मुकाबले ज्यादा मजबूत और अधिक पैदावार देते हैं. हाइब्रिड बीजों में दो से अधिक बीजों के गुण आ जाते हैं, जिसके चलते ये महंगे भी होते हैं. हाइब्रिड बीज से फसलों को उगाकर खाद्य उत्पादन के संकट से निपटा जा सकता है. लेकिन इससे हासिल उपज में देसी किस्मों के मुकाबले पोषण कम होता है. साथ ही स्वाद भी देसी किस्मों के मुकाबले काफी निम्न स्तर का रहता है.
निजी कंपनियों की हिस्सेदारी बढ़ी
हाइब्रिड बीज के इस्तेमाल से भारत के बीज बाजारों में स्थानीय बीज निर्माता और किसानों की हिस्सेदारी घटी है. डाउन टू अर्थ वेबसाइट के मुताबिक, सरकार ने 2021 में लोकसभा में पेश कृषि संबंधी स्थायी समिति की 25वीं रिपोर्ट में बताया है कि हाइब्रिड बीज ज्यादातर राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय निजी क्षेत्र की फर्मों द्वारा विकसित किए और बेचे जाते हैं. भारत के बीज बाजार में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 2017-18 में 57.3 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में 64.5 प्रतिशत हो गई है.
भारतीय खाद्य और कृषि परिषद की 2019 की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश का बीज बाजार 2018 में 4.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया. 2011-18 में 15.7 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई और 2019 में 13.6 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है -24, 2024 तक मूल्य 9.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा.
कम बारिश वाले क्षेत्रों में हाइब्रिड किस्मों का जीवित रहना मुश्किल
किसानों का कहना है कि हाइब्रिड किस्म भले ही ज्यादा उत्पादन के लिए जाने जाते हैं, लेकिन ये बारिश के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं. धान की हाइब्रिड किस्म को बुआई के 15-20 दिनों के भीतर बारिश या फिर सिंचाई की आवश्यकता होती है. पारंपरिक किस्मों के मामले में ऐसा नहीं है. वह पानी के कमी वाले क्षेत्रों में भी लंबे वक्त तक जीवित रह सकते हैं, हाइब्रिड किस्मों के मामले में ऐसा नहीं है. इसके अलावा हाइब्रिड बीजों के विफलता के मामले भी अधिक दर्ज किए गए हैं, लेकिन इस मामले में अभी तक कोई जवाबदेही तय नहीं हो पाई है.
किसानों की लागत में हो रहा इजाफा
बाजार में पारंपरिक किस्मों के बीजों के दाम हाइब्रिड के किस्मों से कम होते हैं. मांग बढ़ने पर हाइब्रिड बीजों के निर्माता भी कीमतें बढ़ा देते हैं. हाइब्रिड बीजों का रेट पिछले एक दशक में 650 रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ा दी गई है. सरसों का हाइब्रिड बीज बाजार में 1,000 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रहा है. वहीं, पारंपरिक किस्म की कीमत 80 रुपये प्रति किलोग्राम है. ऐसे में हाइब्रिड बीजों को खरीदने के चलते खेती-किसानी में किसानों को लागत अधिक आ रही है.