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61 साल बाद मिला अपनी जमीन पर मछली पालन का मौका, मिल रहा 40 फीसदी मुनाफा

केन्द्र की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) और झारखंड सरकार के सहयोग से गांवों के महिला-पुरुष एक खास तकनीक के साथ मछली पालन कर रहे हैं. अब बिहार और झारखंड के कारोबारी उनके गांव में मछली खरीदने आते हैं.

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fish farming
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साल 1952-52 में तिलैया डैम निर्माण के दौरान 56 गांव की जमीन ली गई थी. इन गांव की एक पीढ़ी तो इस उम्मीद में इस दुनिया को छोड़ गई कि उनकी जमीन के बदले शायद उन्हें स्थायी रोजगार या नौकरी मिलेगी. दूसरी पीढ़ी भी जवान होते ही रोजी-रोटी की तलाश में एक शहर से दूसरे शहर और राज्यों में भटकने लगी. लेकिन दूसरी पीढ़ी को राहत तो मिली लेकिन पूरे 61 साल बाद. छह दशक से भी ज्यादा वक्त के बाद अब गांव के लोगों को अपनी ही जमीन पर मछली पालन करने का मौका मिला है.

PMMSY से बदली किस्मत

केन्द्र की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) और झारखंड सरकार के सहयोग से गांवों के महिला-पुरुष एक खास तकनीक के साथ मछली पालन कर रहे हैं. अब बिहार और झारखंड के कारोबारी उनके गांव में मछली खरीदने आते हैं. डिमांड इतनी है कि पहले से मोबाइल पर ही मछली की बुकिंग हो जाती है.

ट्रक चालक बना मछली पालक

हजारीबाग में बुंडू गांव का रहने वाला 31 साल का पिंटू यादव राजस्थान में ट्रक चलाता था. इस दौरान कई बार ट्रक से वो मछली भी यहां से वहां ले गया. तभी उसे पता चला कि मछली पालन में खासा मुनाफा है. पिंटू यादव ने बताया, ‘मछली पालन के बारे में जब ये पता चला कि इसमें बहुत मुनाफा है तो मैंने 2017 में गांव आकर तालाब में मछली पालन शुरू कर दिया. पांच हजार रुपये का मछली का बीज लेकर आया और जब वो बड़ी और वजनदार हो गईं तो बाजार में बेच दीं. जिसके बदले हाथ में 50 हजार रुपये आए.'

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मिल रहा 40 फीसद मुनाफा

'इसी दौरान मछली पालन को और अच्छे से करने के लिए रांची में मछली पालन विभाग से ट्रेनिंग ली. जब विभाग के संपर्क में आया तो सरकारी योजनाओं के तहत मदद मिलना शुरू हो गई. साल 2017-18 में झारखंड सरकार से दो केज मिले, उसके बाद 2021 में PMMSY योजना के तहत आठ केज मिले. एक केज में एक बार में चार टन तक मछली उत्पादन हो जाता है. हम पंगेशि‍यस और मोनोसेस तिलापिया मछली पालन करते हैं. ये एक साल में दो बार बाजार में बेचने के लिए तैयार हो जाती हैं. 100 से 120 रुपये किलो के हिसाब से मछली बाजार में बिक जाती हैं. जिसमें से 40 फीसद मुनाफा हमें मिल जाता है.’

केज कल्चर तकनीक से मिल रहा फायदा

हजारीबाग के जिला मत्स्य अधि‍कारी (डीएफओ) प्रदीप कुमार ने बताया, ‘साल 1952-52 में तिलैया डैम निर्माण के दौरान 56 गांव की जमीन ली गई थी. तभी से इस गांव के लोग दूसरे कामों में लगे हुए थे. लेकिन 2017-18 से गांव के लोगों को मछली पालन से जोड़ा गया. जिस तिलैया डैम में गांव के लोगों की जमीन गई थी उसी में उन्हें केज दिए गए. आज साल 2012-13 से गांव के लोग डैम के पानी में केज की मदद से मछली पालन कर रहे हैं. सरकारी योजनाओं का फायदा देते हुए उन्हें केज कल्चर तकनीक से जोड़ा जा रहा है. गांव के लोगों ने एक सोसाइटी बनाई हुई है. इसी सोसाइटी के मदद से तैयार मछली बेची जाती है. तिलैया डैम में आज 2265 केज हैं. एक केज की लागत डेढ़ लाख रुपये आती है. पांच सोसाइटी यहां काम कर रही हैं. सोसाइटी के सदस्यों की संख्या 958 है.’

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कोल पिट्स को बनाया तालाब

कुछ ऐसी ही कहानी आरा बस्ती गांव, रामगढ़, झारखंड के शशि‍कांत महतो की भी है. शशि‍कांत उस परिवार का हिस्सा हैं जिनकी जमीन कोयला खदान के लिए ले ली गई थी. परिवार सालों-साल जमीन के एवज में एक अदद नौकरी के लिए लड़ता रहा. कोयला खदान शुरू हुई और 1998 में बंद भी हो गई, लेकिन जमीन से विस्थापित परिवारों को नौकरी नहीं मिली. शशि‍कांत जैसे करीब चार दर्जन परिवारों की जमीन इस कोयला खदान के लिए ली गई थी. खदान बंद होने के बाद उम्मीद जागी कि अब ली गई जमीन वापस मिल जाएगी. लेकिन खदान चलाने वाली कंपनी ने नियमनुसार 150 से 200 फीट गहरी खाली खदान (कोल पिट्स) को भरा नहीं और 50 के करीब परिवार 12 साल तक आस लगाए रहे. लेकिन उसके बाद इन्हीं परिवारों ने उस कोल पिट्स को तालाब के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया.

15 किलो की मछली से बदली किस्मत

शशि‍कांत ने अपने जैसे और युवाओं को जोड़कर कोल पिट्स में मछली पालन शुरू कर दिया. लेकिन शशि‍कांत और उनकी टीम इसी पर नहीं रुकी और उन्होंने 15 किलो की मछली का उत्पादन कर रांची के फिशरीज डिपार्टमेंट को भी चौंका दिया. शशि‍कांत महतो ने बताया कि जब खदान बंद होने के बाद भी हमें जमीन वापस नहीं मिली तो हमने खदान में भरे पानी में मछली पालन शुरू कर दिया. हम सब दोस्तों ने तीन-तीन हजार रुपये मिलाकर साल 2010 शुरूआत कर दी. लेकिन खुले और गहरे तालाब में मछली पालन करने की अपनी कुछ परेशानियां भी हैं. हमारे पास रोजी-रोटी का कोई और साधन नहीं था इसलिए कम मुनाफे के बावजूद हम खुले तालाब में मछली पालन करते रहे.

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इनाम में मिली केज तकनीक

फिर एक दिन हमारे जाल में 15 किलो की कतला मछली फंस गई. उसी दौरान फिशरीज डिपार्टमेंट, रांची में प्रदर्शनी लगी हुई थी. हमने भी वहां स्टॉल लेकर अपनी 15 किलो की मछली रख दी. जिसे खूब पसंद किया गया. विभाग ने हमारी मछली को पहला इनाम दिया. इनाम के तौर पर विभाग ने पांच हजार रुपये का चेक और केज तकनीक दी. छह वाई चार मीटर के एक केज में चार टन तक मछली का उत्पादन होता है. साल 2015 से केज की शुरुआत की थी. एक केज से हमे ऐसी कामयाबी मिली कि आज हम चार करोड़ की लागत से 126 केज में मछली पालन कर रहे हैं.

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