
पाकिस्तान इस वक्त अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. एक तरफ पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत उसके घर में घुसकर तबाही मचा दी, दूसरी तरफ बलूचिस्तान ने पाकिस्तान से आजाद होने का ऐलान कर दिया है. महंगाई, कंगाली और विदेशों से लोन तो पाकिस्तान के लिए पहले से ही चुनौती बने हुए हैं. लेकिन मौजूदा आफत बहुत बड़ी है और इससे 1971 के बाद एक बार फिर मुल्क टूटने की कगार पर आ गया है.
बलूच लीडर मीर यार बलोच ने बुधवार को पाकिस्तान से बलूचिस्तान की आजादी का औपचारिक ऐलान कर दिया. उन्होंने दशकों से चली आ रही हिंसा, बलूचों का अपहरण और मानवाधिकार उल्लंघनों को इसकी वजह बताया है. एक्स पर एक पोस्ट में मीर बलोच ने कहा कि बलूचिस्तान के लोगों ने अपना राष्ट्रीय फैसला ले लिया है और दुनिया को अब चुप नहीं रहना चाहिए. लिहाजा उन्होंने भारत समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन की अपील की है.
कौन हैं मीर यार बलोच
बलूचिस्तान की आजादी का ऐलान करने वाले बलूच राष्ट्रवादी नेता मीर यार बलोच का नाम हर किसी की जुबान पर है. मीर यार बलोच एक लेखक, स्वतंत्र पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता और आजाद बलूचिस्तान आंदोलन का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. उन्होंने न सिर्फ पाकिस्तान से आजादी का ऐलान किया है बल्कि संयुक्त राष्ट्र से बलूचिस्तान को अलग मुल्क के तौर पर पहचान देने के लिए बैठक बुलाने की अपील की है. साथ ही भारत सरकार से नई दिल्ली में बलूचिस्तान दूतावास को मंजूरी देने की गुहार लगाई है.
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मीर बलोच ने संयुक्त राष्ट्र से बलूचिस्तान की मुद्रा और पासपोर्ट के लिए अरबों रुपये का फंड भी मांगा है. इसके अलावा शांति सेना भेजने की अपील की है ताकि बलूच जनता को पाकिस्तान के जुल्म से मुक्त कराया जा सके. उन्होंने मांग करते हुए कहा कि पाकिस्तान को अब बलूचिस्तान पर अपना कब्जा छोड़ देना चाहिए और स्थानीय स्वतंत्र सरकार को बागडोर सौंपनी चाहिए. हालांकि यह सिर्फ सोशल मीडिया पर किए गए दावे हैं, अब भी बलूचिस्तान पाकिस्तान का ही हिस्सा है.
आजादी की मांग करने वाले प्रमुख संगठन
बलूचिस्तान की आजादी के लिए आवाज उठाने वाले प्रमुख संगठन बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने पाकिस्तानी सेना की नाक में दम कर रखा है. इसी आर्मी ने 11 मार्च को क्वेटा से पेशावर जा रही ट्रेन जाफर एक्सप्रेस को हाइजैक कर लिया था. इस ट्रेन में 440 लोग सवार थे. इसके बाद बलूच लिबरेशन आर्मी के ख़िलाफ़ पाकिस्तान की सेना की कार्रवाई हुई. दोनों तरफ से कई लोग मारे गए. बलूच आर्मी के पास करीब 5 हजार से ज्यादा लड़ाके हैं, जो पाकिस्तान आर्मी को कई बार निशाना बना चुके हैं, इसी वजह से वहां की सरकार ने 2006 मे बीएलए को आतंकी संगठन घोषित कर दिया है.

बलूच लिबरेशन आर्मी का नेतृत्व बशीर जेब कर रहे हैं, जिन्हें संगठन में कमांडर इन चीफ का पद हासिल है. इससे पहले वह आर्मी की कोर कमेटी का हिस्सा थे. लेकिन पाकिस्तानी सेना द्वारा काबुल में असलम बलोच की हत्या के बाद 2018 में बशीर जेब को इस आर्मी का कमांडर बनाया गया था. उनके पद संभालने के बाद बलूच आंदोलन की आवाज बुलंद हो गई है.
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इसके अलावा बलूचों की लड़ाई लड़ने वाली दूसरी प्रमुख संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF) है, जिसका गठन 1964 में जुम्मा ख़ान ने किया था. एक दौर में BLF बलूच आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा था, लेकिन इसके कई लड़ाके BLA में शामिल हो गए. 60 के दशक में बना संगठन पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुरिल्ला हमलों के लिए जाना जाता रहा. वो पाकिस्तान की गैस पाइपलाइन और रेलवे ट्रैक पर हमले करता है. इसके साथ ही फ्री बलूचिस्तान मूवमेंट, बलूच नेशनल मूवमेंट और बलूच रिपब्लिकन पार्टी भी ऐसे संगठन हैं जो बलूचिस्तान की आजादी के लिए पाकिस्तान से लड़ रहे हैं.
आंदोलन के बड़े चेहरे कौन हैं
मीर यार बलोच के अलावा यकजेहती कमेटी की सदस्य और पेशे से डॉक्टर महरंग बलोच भी आंदोलन का प्रमुख चेहरा हैं. उन्होंने पाकिस्तान के जुल्म के खिलाफ शांति से अपनी बात रखी और दुनियाभर में चर्चित चेहरा बन गई हैं. साल 2009 में महरंग के सामाजिक कार्यकर्ता रहे पिता को अगवा किया गया था और फिर दो साल बाद उनका शव मिला था. इसी तरह 2017 में महरंग के भाई को भी अगवा किया गया था. लेकिन विरोध के बाद उनकी सकुशल वापसी मुमकिन हो पाई थी. महरंग को पाकिस्तान सरकार ने मार्च में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था.

मानवाधिकार कार्यकर्ता नाएला कादरी बलोच भी बलूचिस्तान आंदोलन की सिपाही हैं. वह लंबे समय से बलूचिस्तान की आजादी के लिए संघर्ष कर रही हैं. उनका दावा है कि बलूचिस्तान, जो कभी एक स्वतंत्र देश था, अब पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है. वह पाकिस्तान सरकार पर बलोच लोगों के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन, संसाधनों की लूट और नरसंहार के आरोप लगाती हैं. आजाद बलूचिस्तान के सपने को साकार करने के लिए नायला कादरी बलोच ने निर्वासित बलोच सरकार की स्थापना की है. वे खुद निर्वासित बलोच सरकार की प्रधानमंत्री हैं. जिसकी स्थापना 21 मार्च 2022 को यूरोप में कहीं हुई थी, वह फिलहाल वे कनाडा में रहती हैं.
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बलूचिस्तान नेशनल पार्टी (बीएनपी) के अध्यक्ष अख्तर मेंगल ने भी पाकिस्तान सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की है. पिछले दिनों उन्होंने संघीय सरकार में मंत्री पद लेने से इनकार कर दिया था और बलूच लोगों से अपने हक की लड़ाई लड़ने का आह्वान किया था. वह पाकिस्तान नेशनल असेंबली के सदस्य रह चुके हैं और अपने हालिया बयान में उन्होंने पाकिस्तान को 1971 की जंग की याद दिलाई थी. इसके अलावा फ्री बलूचिस्तान मूवमेंट के अध्यक्ष हरबयार मर्री जैसे नेता भी वैश्विक मंचों से बलूचिस्तान की आजादी के लिए आवाज उठा रहे हैं.
आजादी क्यों चाहते हैं बलूच लोग
बलूचिस्तान में पाकिस्तान का 40 फीसदी से ज्यादा गैस प्रोडक्शन होता है और यह सबसे बड़ा प्रांत है. ये सूबा कॉपर, गोल्ड से भी समृद्ध है. पाकिस्तान इसका फायदा तो लेता है, लेकिन वहां की इकनॉमी फिर भी पटरी पर नहीं आ रही है. इसके अलावा बलूच लोगों की भाषा और कल्चर बाकी पाकिस्तान से अलग है. वे बलूची भाषा बोलते हैं, जबकि पाकिस्तान में उर्दू और उर्दू मिली पंजाबी बोली जाती है. बलूच लोगों को को डर है कि पाकिस्तान उनकी भाषा भी खत्म कर देगा, जैसी कोशिश वो बांग्लादेश के साथ कर चुका है. इतना समृद्ध होने के बावजूद इस्लामाबाद की राजनीति और मिलिट्री में बलूच लोगों के लिए जगह नहीं है. पाकिस्तान पर इनके मानव अधिकारों के हनन और उत्पीड़न के आरोप लगते रहे हैं. बलूचिस्तान समर्थकों का आरोप है कि यहां से अक्सर लोग गायब हो जाते हैं, जिन्हें या तो जेल में डाल दिया जाता है, या फिर उनकी हत्या हो जाती है.