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सीरिया में 13 सालों से चल रही जंग अंजाम तक पहुंची, 2011 से 24 के बीच किन-किन मोड़ से होकर गुजरा ये सुन्नी बहुल देश

सीरिया में 24 सालों तक चले बशर अल-असद के शासन और 13 सालों से चल रहे गृह युद्ध का अंत हो गया. विद्रोही समूह हयात अल-शाम ने दमिश्क पर कब्जा जमाने के बाद शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण की इच्छा जताई है. उलटफेर की इस अहम घटना ने न सिर्फ सीरिया की राजनीतिक हालात में बड़े बदलाव लाए हैं, बल्कि देश के भविष्य के लिए अनिश्चितताएं भी पैदा की हैं. जानें इस दरमियान इस सुन्नी बहुल देश में वैश्विक पावर, स्थानीय विद्रोह और असद-शासन के बीच टकराव की 13 साल की कहानी.

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बशर अल-असद की सत्ता का अंत
बशर अल-असद की सत्ता का अंत

सीरिया में बशर अल-असद के 24 साल के शासन और 13 साल से चल रहे गृह युद्ध का अंत हो गया है. देश की राजधानी पर अब हयात अल-शाम का कब्जा है. विद्रोही समूह के लड़ाकों ने महज 10 दिनों में ही दमिश्क फतह कर लिया. विद्रोही ने इसके बाद ऐलान किया कि वे शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता का हस्तांतरण चाहते हैं, और तब तक प्रधानमंत्री को कुर्सी पर बने रहने के लिए कहा है. इस रिपोर्ट में जानते हैं कि आखिर इस दरमियान क्या घटनाक्रम हुए.

बात साल 2011 की है, जब सीरिया के दक्षिणी शहर डेरा में राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासन के खिलाफ शुरू हुए बड़े प्रदर्शन ने पूरे देश में विरोध को जन्म दिया, जिसने आखिरकार उनकी सत्ता का अंत कर दिया. इस घटनाक्रम ने सीरियाई शासन के लिए अब तक की सबसे बड़ी चुनौती पेश की. अब आलम ये है कि राष्ट्रपति बशर अल-असद रविवार को राजधानी दमिश्क छोड़कर अनजान जगह पर भाग गए, और उनका कुछ पता नहीं है.

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सेना के दमिश्क छोड़ते ही, हयात फोर्स ने राजधानी में प्रवेश किया और सेना ने शांतिपूर्ण तरीके से शहर खाली कर दिया. इसके बाद होम्स से लेकर कब्जे वाले इलाकों में जश्न का माहौल है. होम्स के हजारों लोग सड़क पर उतरकर जीत के जश्न मनाए और आजादी-आजादी के नारे लगाए. वे यह भी नारे लगाते सुने गए "असद चला गया, होम्स आजाद है" और "सीरिया की जय हो" जैसे नारे लगाए गए. "अल्लाहु अकबर" के नारे मस्जिदों से गूंजने लगे.

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बशर अल-असद की सत्ता के खिलाफ संघर्ष

मार्च 2011, वो महीना जब बशर अल-असद शासन के खिलाफ दक्षिणी शहर डेरा में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए. सुरक्षा बलों ने इसका जवाब गोलियों से दिया. आलोचना में ग्राफिटी लिखने वाले लड़कों को गिरफ्तार कर लिया गया, और असद शासन ने खूब जुल्म ढाए.

जून 2012 में, वैश्विक ताकतों ने सीरिया में हालात खराब होता देख जिनेवा में बैठकें कीं और देश में पॉलिटिकल ट्रांजिशन की जरूरतों पर जोड़ दिया. इस बीच हालात खराब होते गए और इसी साल जुलाई महीने में असद शासन ने विद्रोह को दबाने के लिए शहरों और कस्बों में हवाई हमले शुरू कर दिए. असद शासन के इस आक्रामक रवैये की वजह से हजारों लोगों की जानें गईं. अगस्त 2011 तक यूनाइटेड नेशन के आंकड़ों के मुताबिक, 2200 से ज्यादा लोग मारे जा चुके थे, जिसमें रासायनिक हथियारों से हमले भी शामिल थे.

अगस्त 2013 में अमेरिका ने रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल को रेड लाइन तो घोषित कर दिया, लेकिन दमिश्क के बाहरी इलाके में विद्रोही नियंत्रित पूर्वी घूटा पर हुई गैस हमले के बावजूद अमेरिका ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जिसमें सैकड़ों नागरिक मारे गए थे.

बात जनवरी 2014 की है जब अल-कायदा के एक गुट ने रक्का पर कब्जा कर लिया, और फिर सीरिया और इराक में शहरों पर कब्जा करते हुए इस्लामिक स्टेट का गठन कर लिया. इसके बाद सितंबर तक अमेरिका ने इस्लामिक स्टेट के साथ मिलकर एक गठबंधन समूह बनाया और फिर सीरिया शहरों में असद शासन के खिलाफ हवाई हमले शुरू कर दिए.

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सीरिया में मार्च 2015 से मार्च 2020 तक हालात बिगड़ते रहे, देश के अलग-अलग हिस्से में हिंसा बढ़ती गई और अलग-अलग हिस्सों में अलग समूहों का कब्जा होने लगा. मसलन, असद शासन के सामने कई विद्रोही समूह खड़े हो गए. इन्हीं पांच सालों के दरमियान रूस ने असद शासन का समर्थन किया, सैन्य सहायता दी और असद की सेना के साथ मिलकर विद्रोहियों के खिलाफ हमले किए, जिससे युद्ध की दिशा ही बदल गई. रूसी सपोर्ट से असद की सेना ने अलेप्पो शहर को वापस से कब्जा लिया और दिसंबर 2016 में शहर पर जीत घोषित की.

Syrian opposition fighters ride along the streets in the aftermath of the opposition's takeover of Hama, Syria, Friday, Dec. 6, 2024. (AP Photo/Ghaith Alsayed)

2017 में इजरायल ने सीरिया में हवाई हमले किए और असद शासन के समर्थक हिज्बुल्लाह और ईरान के प्रभाव को कम करने की कोशिश की. मार्च 2017 में अमेरिका ने सीरियाई एयरबेस पर हमले किए. नवंबर 2017 में अमेरिकी समर्थित फोर्सेज ने इस्लामिक स्टेट को भी रक्का से बाहर कर दिया.

अप्रैल 2018 में रूस के समर्थन से असद की सेना ने पूर्वी घौटा को भी आजाद करा लिया. इसके बाद विद्रोही कब्जे वाले सेंट्रल सीरिया को सेना ने अपने कब्जे में ले लिया. सितंबर 2018 में रूस और तुर्की ने इदलिब को लेकर डील की, जिससे बमबारी भी कम हुई. बाद में मार्च 2019 में अमेरिका ने भी फैसला किया कि उसकी सेना सीरिया में ही रहेगी. 

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अप्रैल से दिसंबर 2019 के बीच रूसी सपोर्ट से असद सेना ने खान शेखुन को भी अपने नियंत्रण में ले लिया. दिसंबर 2019 से मार्च 2020 के बीच रूस समर्थित असद सेना ने उत्तर पश्चिम में हवाई हमले शुरू किए और इन हमलों की वजह से लाखों सीरियाई नागरिक विस्थापित हुए. इस बीच तुर्की ने भी सीमाई इलाकों में अपनी सेना तैनात कर दी. फरवरी 2020 में तुर्की ने सीरियाई शरणार्थियों के लिए अपनी सीमा खोल दी, जिससे कि बड़ी संख्या में सीरियाई ग्रीस और अन्य देशों में जा बसे.

मई 2020 में राष्ट्रपति अल-असद की सत्ता पर और खतरा तब बन आया, जब भाई रामी मखलौफ से उनका विवाद हो गया. इस दरार के बाद मखलौफ ने भाई के शासन पर कई बड़े आरोप लगाए, और सेना पर जुल्म ढाने का आरोप लगाया. जून 2020 तक अमेरिका ने सीजर एक्ट के तहत प्रतिबंधों का ऐलान किया. फरवरी 2021 में अमेरिका ने पूर्वी सीरिया में हवाई हमले किए और मई 2021 में 95 फीसदी से ज्यादा वोटों के साथ चौथी बार असद ने सीरिया की सत्ता हासिल की. अक्टूबर 2024 में अमेरिका ने इस्लामिक स्टेट के खिलाफ कई हवाई हमलों को अंजाम दिए.

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हयात तहरीर अल-शाम की आखिरी जंग

दिसंबर 2024 के पहले सप्ताह में ही सीरिया के 13 साल के गृह युद्ध के खिलाफ हयात तहरीर अल-शाम ने आखिरी जंग शुरू की. विद्रोहियों ने एक बड़े शहर अलेप्पो पर कब्जा कर लिया. इस लड़ाई में समूह ने शहर के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर कब्जा जमा लिया. इसके बाद वे दक्षिणी शहर हामा को 5 दिसंबर को अपने नियंत्रण में लिया, जो कि रूस समर्थित असद शासन के लिए बड़ा झटका साबित हुआ.

6 दिसंबर तक हजारों की संख्या में लोग सेंट्रल सीरियाई शहर होम्स में शरण के लिए पहुंच गए. 6 दिसंबर की सुबह तक विद्रोहियों ने सेना को शहर खाली करने पर मजबूर कर दिया. इसके बाद 7 दिसंबर तक विद्रोही समूह ने खोई अपनी डेरा सिटी को कब्जे में ले लिया. 8 दिसंबर तक खबर आई कि राष्ट्रपति बशर अल-असद ने देश छोड़ दिया, लेकिन अभी कुछ स्पष्ट नहीं है कि वह कहां गए हैं.

इसके बाद विद्रोही समूह हयात तहरीर अल-शाम ने दमिश्क को अपने नियंत्रण में ले लिया और 50 साल के बाथ पार्टी (असद के पिता हाफिज अल-असद द्वार गठित पार्टी) के शासन और 13 साल के गृह युद्ध के खात्मे का ऐलान कर दिया. खबर सामने आई कि विद्रोही शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता का हस्तांतरण चाहते हैं, और तब तक प्रधानमंत्री मोहम्मद गाजी जलाली को सत्ता में बने रहने पर सहमति दी. अब देखने वाली बात होगी कि आखिर विद्रोहियों के कब्जे के बाद सीरिया का भविष्य क्या होता है.

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