सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान विश्व पटल पर भले ही अपने इस्लामिक देश की सुधारवादी छवि पेश कर रहे हों, लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं. मानवाधिकारों के लिए सऊदी अरब पहले भी निशाने पर था और अब नए आंकड़े भी कुछ ऐसी ही गवाही दे रहे हैं. समाचार एजेंसी एएफपी की गिनती के अनुसार, सऊदी अरब ने एक साल में दी गई फांसी के अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ दिया है. इस साल अब तक 340 लोगों को फांसी दी जा चुकी है.
यह नया आंकड़ा तब सामने आया है जब सऊदी अधिकारियों ने बताया कि सोमवार को तीन लोगों को मौत की सजा दी गई है. सऊदी अरब के गृह मंत्रालय के अनुसार, हत्या के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद मक्का में तीन व्यक्तियों को फांसी दी गई.
साल 2024 में सऊदी अरब में 338 लोगों को फांसी दी गई थी जो कि उस समय का रिकॉर्ड था लेकिन अब नए आंकड़े ने इसे भी पीछे छोड़ दिया है.
हालांकि, एमनेस्टी के पिछले साल के आंकड़े अन्य मानवाधिकार संगठनों अलक्स्ट (Alqst), एमनेस्टी इंटरनेशनल और रिप्रीव (Reprieve) से थोड़ा कम है जिनके मुताबिक, पिछले साल सऊदी में 345 लोगों को फांसी दी गई थी.
ब्रिटेन स्थित संगठन अलक्स्ट (Alqst) की एक्टिविस्ट नादीन अब्दुलअजीज ने न्यूज वेबसाइट 'मिडिल ईस्ट आई' से बात करते हुए कहा, 'यह तथ्य कि सऊदी अधिकारी पिछले साल की रिकॉर्ड स्तर की फांसी संख्या को पार करने की तैयारी में हैं. यह दिखाता है कि सऊदी अरब जीवन के अधिकार की भयावह उपेक्षा करता है. और यह संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों व नागरिक समाज की बार-बार की गई अपीलों की अनदेखी है.'
उन्होंने कहा, 'सऊदी अरब में फांसी की सजाएं बिना सही से मुकदमा चलाए ही जल्दबाजी में दे दी गईं, लोगों को यातना दी गई और उनसे कबूलनामे करवाए गए. फांसी दिए गए लोगों में ऐसे लोग भी शामिल हैं जो कथित अपराधों के समय नाबालिग थे.'
इस साल दी गई फांसियों में से अधिकांश (232) ड्रग्स से जुड़े मामलों में थीं. कई अन्य लोगों को आतंकवाद के आरोपों में फांसी दी गई, जिनमें से कुछ सऊदी अरब की आतंकवाद की परिभाषा के तहत लगाए गए थे. सऊदी अरब की आतंकवाद की परिभाषा व्यापक और अस्पष्ट है.
सऊदी अरब में मृत्युदंड के कई मामले अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हो सकते हैं, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय कानून केवल 'सबसे गंभीर अपराधों', यानी जानबूझकर की गई हत्याओं से जुड़े मामलों में ही फांसी की इजाजत देता है.
ड्रग्स मामलों में दोषी लोगों को फांसी देने को लेकर सऊदी अरब की काफी आलोचना हुई थी जिसके बाद इस तरह के मामलों में फांसी की सजा पर रोक लगा दी गई थी. लेकिन फिर 2022 में अंत में, सऊदी अरब ने लगभग तीन सालों तक निलंबन के बाद ड्रग्स से जुड़े मामलों में फिर से मृत्युदंड देना शुरू किया. ड्रग्स मामलों में फांसी पाने वाले लोगों में बड़ी संख्या विदेशी नागरिकों की होती है.
हाल के महीनों में, सऊदी अरब ने दो ऐसे लड़कों को फांसी दी है जो कथित अपराधों के समय नाबालिग थे. अपराध के समय 18 साल से कम उम्र के व्यक्तियों को मृत्युदंड देना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत प्रतिबंधित है. इस कानून में संयुक्त राष्ट्र का बाल अधिकार सम्मेलन भी शामिल है और सऊदी अरब ने इस पर हस्ताक्षर भी किए हैं.
2020 में, वैश्विक निगरानी के बीच, सऊदी अधिकारियों ने वादा किया था कि नाबालिग दोषियों को मृत्युदंड देने के मामले में न्यायाधीशों के विवेकाधिकार को समाप्त किया जाएगा.
राज्य के मानवाधिकार आयोग ने कहा था कि नाबालिग दोषियों के लिए मृत्युदंड रोकने के उद्देश्य से एक शाही आदेश जारी किया गया है. हालांकि, उस बयान के बाद भी ऐसे कई मामलों में फांसी दी गई है, जिनमें लोगों ने नाबालिग अवस्था में अपराध किए थे.
अलक्स्ट ने ऐसे पांच और नाबालिग अपराधियों की पहचान की है, जिन पर फांसी का खतरा मंडरा रहा है. एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार, 2022, 2023 और 2024 में सऊदी अरब वैश्विक स्तर पर फांसी देने वाले देशों में तीसरे स्थान पर रहा. पहले स्थान पर चीन और उसके बाद ईरान है.