अमेरिका जापान के साथ मिलकर 10 जुलाई से ही विशाल सैन्य अभ्यास कर रहा है और इसे वो एशिया-पैसिफिक क्षेत्र का सबसे बड़ा युद्ध अभ्यास बता रहा है. 8 अगस्त तक चलने वाले इस युद्ध अभ्यास में 400 से अधिक एयरक्राफ्ट्स और 12,000 सैनिक शामिल हैं. अमेरिका के इस युद्ध अभ्यास के बीच चीन ने भी घोषणा कर दी है कि वो रूस के साथ मिलकर नौसैनिक अभ्यास करने जा रहा है.
चीन के राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय ने बुधवार को कहा कि चीन और रूस अगस्त में अपना 'Joint Sea 2025' संयुक्त नौसैनिक अभ्यास करेंगे. इस युद्ध अभ्यास के बाद प्रशांत क्षेत्र में छठा संयुक्त समुद्री पेट्रोलिंग की जाएगी.
चीन और रूस के बीच यह युद्ध अभ्यास जापान सागर पर स्थित रूस के सुदूर पूर्वी बंदरगाह शहर व्लादिवोस्तोक के नजदीक समुद्र और हवाई क्षेत्र में होगा. चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता झांग शियाओगांग का कहना है कि अभ्यास में शामिल कुछ सेनाएं इसके बाद समुद्री क्षेत्रों में संयुक्त पेट्रोलिंग में भाग लेंगी.
झांग ने बीजिंग में अपनी मासिक प्रेस वार्ता में कहा, 'यह चीनी और रूसी सेनाओं के बीच वार्षिक सहयोग योजना के तहत एक व्यवस्था है. इसका मकसद किसी तीसरे पक्ष को टार्गेट करना नहीं है और न ही ये वर्तमान अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्थिति से संबंधित है.'
झांग ने मीडिया से बात करते हुए हालांकि, अमेरिका की आलोचना की और कहा कि क्षेत्र में अमेरिका की दादागिरी नहीं चलेगी.
उन्होंने कहा, 'अमेरिका अपनी शीत युद्ध मानसिकता से चिपका हुआ है और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में लगातार ताकत दिखा रहा है. अमेरिका सैन्य अभ्यास की आड़ में एकजुट होने, दूसरे देशों को डराने-धमकाने और क्षेत्र में शांति और स्थिरता को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है.'
हाल के सालों में चीन और रूस ने अपनी साझेदारी को बढ़ाया है और संयुक्त नौसैनिक अभ्यास के जरिए अपने सैन्य संबंधों को भी मजबूत किया है. रूस और चीन के बीच का हालिया अभ्यास जाइंट सी सीरीज का 11वां सैन्य अभ्यास होने वाला है जिसे 'Maritime Cooperation' के नाम से भी जाना जाता है.
दोनों देशों के बीच यह वार्षिक सैन्य अभ्यास 2012 में शुरू हुआ था और 2018, 2020, 2023 को छोड़कर हर साल आयोजित किया जाता रहा है.
पिछले अधिकांश सैन्य अभ्यास जापान सागर, पीला सागर और पूर्वी चीन सागर सहित उत्तर-पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र के साथ-साथ बाल्टिक और भूमध्य सागर में भी आयोजित किए गए हैं.
इस अभ्यास में दोनों देशों के युद्धपोत, विमान और सपोर्ट यूनिट्स शामिल होती हैं जो संरचना युद्धाभ्यास, खोज और बचाव अभ्यास, वायु रक्षा अभ्यास, पनडुब्बी रोधी अभियान और लाइव-फायर गोलीबारी जैसे ऑपरेशन करती हैं.
रूस लंबे समय से चीन का प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता रहा है. चीन ने रूस के साथ लाइसेंसिंग को लेकर कई समझौते किए हैं जिनके तहत उसे रूस की सैन्य तकनीक तक पहुंच भी मिली है. लेकिन हाल के सालों में चीन ने रूसी तकनीक पर अपनी निर्भरता घटाई है. 2020 में जहां चीन के कुल हथियार आयात में रूस की हिस्सेदारी लगभग 70 प्रतिशत थी, वहीं, 2024 में यह घटकर लगभग 40 प्रतिशत रह गई.
द डिप्लोमैट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में, चीन ने रूस से इंजन, विमान और नौसैनिक हथियार खरीदे थे जबकि 2024 में, उसने केवल इंजन आयात किए. इसकी वजह ये थी कि चीन ने रक्षा हथियारों को आयात करने के बजाए सारे उपकरण खुद से बनाने शुरू कर दिए हैं. एक वजह ये भी है कि 2022 में यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू करने के कारण रूस पर लगे प्रतिबंधों की वजह से भी चीन उससे कम रक्षा आयात कर रहा है.
हालांकि, रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से चीन ने रूस को दोहरे इस्तेमाल वाली वस्तुओं की खूब आपूर्ति की है जिससे उसे युद्ध में भी फायदा हुआ है. रूस पहले पश्चिमी देशों और यूक्रेन से दोहरे इस्तेमाल वाली वस्तुएं लेता था लेकिन युद्ध के बाद से उसकी आपूर्ति रुक गई है.
ऐसी स्थिति में चीन रूस की मदद कर रहा है. दोहरे इस्तेमाल वाली वस्तुओं में सेना के इस्तेमाल वाली संवेदनशील वस्तुएं भी होती हैं जिसमें टैंक बनाने के लिए बॉल बेयरिंग और हथियार सिस्टम के लिए सेमीकंडक्टर शामिल हैं. यूक्रेन संघर्ष के शुरुआत के बाद से चीन ने रूस को दोहरे इस्तेमाल वाली वस्तुओं का निर्यात बढ़ा दिया है.
अमेरिका रूस और चीन के इस सहयोग पर आपत्ति जताता रहा है लेकिन चीन का कहना है कि वो किसी भी तरह से यूक्रेन युद्ध को जारी रखने में रूस की मदद नहीं कर रहा है.