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मोदी ने धर्मपुत्र को उसके परिवार से मिलाया, कौन है जीत बहादुर?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल दौरे पर हैं. उनके साथ यहां जीत बहादुर भी आया है. ये वही नौजवान है, जो 12 साल पहले अपने बचपन में घर वालों से बिछड़कर अहमदाबाद जा पहुंचा था. किस्मत से इसकी मुलाकात मोदी से हो गई थी. मोदी देश के प्रधानमंत्री बने और बतौर प्रधानमंत्री अपनी पहली नेपाल यात्रा में इस नौजवान को भी ले आए और उसके परिवार वालों से मिलाया.

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12 साल पहले बचपन में अपने घर वालों से बिछड़कर अहमदाबाद पहुंच गया था जीत बहादुर
12 साल पहले बचपन में अपने घर वालों से बिछड़कर अहमदाबाद पहुंच गया था जीत बहादुर

एक मां, जो बरसों से अपने खोए हुए बेटे की राह देख रही हो, उसके लिए सबसे बड़ा तोहफा आखिर क्या हो सकता है. कहने की जरूरत नहीं कि मां अगर अपने बच्चे की एक झलक पा जाए तो वो कुछ और नहीं चाहेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल में जाकर ऐसी ही एक मां को अनमोल तोहफा दिया. उसके बिछड़े बेटे से मिलवा दिया. उस बेटे से, जिसे जन्म तो उसकी मां ने दिया, लेकिन पाला नरेंद्र मोदी ने.

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिनों के नेपाल दौरे पर हैं. प्रधानमंत्री के साथ ही एक नौजवान भी आया है, जिसका नाम है जीत बहादुर. जीत अहमदाबाद से बीबीए की पढ़ाई कर रहा है. ये वही नौजवान है, जो 12 साल पहले अपने बचपन में घर वालों से बिछड़कर अहमदाबाद जा पहुंचा था. किस्मत से इसकी मुलाकात नरेंद्र मोदी से हो गई थी, जो उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे. नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने और बतौर प्रधानमंत्री अपनी पहली नेपाल यात्रा में इस नौजवान को भी ले आए. यही नहीं किसी मसीहा की तरह मोदी ने इस नौजवान को उसके परिवार वालों से मिलाया. परिवार को उसका बेटा सौंपा तो ढेर सारा उपहार भी.

नरेंद्र मोदी अपने पड़ोसी देश नेपाल में बहुत कुछ लेकर पहुंचे हैं. नेपाल सरकार के लिए कई तोहफे ले गए हैं, लेकिन सबसे बड़ा तोहफा तो ये जीता जागता जीत बहादुर है, जिसे उसकी मां को सौंप कर मोदी ने न जाने कितनी मां की दुआएं पाई होंगी.

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मोदी के धर्म पुत्र जीत बहादुर
जीत बहादुर बचपन में परिवार को छोड़कर रोजी रोटी की तलाश में भारत आ गया था, लेकिन किस्मत ने उसे नरेंद्र मोदी से मिला दिया. नरेंद्र मोदी ने जीत बहादुर को अपने धर्म पुत्र, अपने छोटे भाई की तरह रखा. एक आदर्श अभिभावक की तरह उसकी पढ़ाई लिखाई, उसकी हर सुख सुविधा का ख्याल रखा. नरेंद्र मोदी को जीत बहादुर बड़ा भाई कहता है, साथ ही वो महसूस भी करता है कि नरेंद्र मोदी उसके लिए बड़े भाई ही नहीं जिंदगी में सब कुछ हैं.

नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा से पहले उसके घर वालों को उम्मीद जगी थी कि मोदी जीत बहादुर के साथ नेपाल आएंगे और मां को उसका बेटा सौंपेंगे. जीत बहादुर का जो परिवार कुछ वक्त पहले तक रोजी रोटी के लिए परेशान था, दो जून की रोटी जिसके लिए मुहाल थी, वो देखते ही देखते सुर्खियों में छा गया था. नेपाली टेलीविजन चैनलों पर पूरा परिवार लाइव हो रहा था.

जो बात नेपाल के दिल में थी, वही यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिल में भी उमड़ घुमड़ रही थी. उन्होंने पहले ही तय कर लिया था कि नेपाल से वो सिर्फ दिल ही नहीं मिलाएंगे, हाथ ही नहीं मिलाएंगे. बल्कि अपनी जड़ों से बिछड़े एक बेटे को उसकी मां से भी मिलवाएंगे.

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मोदी ने शुक्रवार को कई ट्वीट किए

 

 

 

 

जीत बहादुर की कहानी
नरेंद्र मोदी से जीत बहादुर की मुलाकात और उसके बाद जीत की किस्मत संवरने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. जिस अंदाज में नरेंद्र मोदी ने जीत बहादुर के घर वालों को खोजा था, वो तो और भी अनोखा था. दरअसल ये पूरी कहानी ही किसी फिल्म की पटकथा जैसी है. फर्क बस ये है कि ये कहानी पूरी तरह सच्ची है.

दिलों के बीच बहते इस अनोखे रिश्ते की कहानी सबसे पहले आपको आजतक ने ही दिखाई थी. आजतक ने ही पहली बार 31 जुलाई को नरेंद्र मोदी के इस धर्मपुत्र की दास्तान आपको दिखाई थी. पहली बार लोगों ने देखा था नेपाल के इस जीत बहादुर को, जिसको नरेंद्र मोदी ने वैसी परवरिश दी, जैसी कोई अपने सगे को भी नहीं देता. हमने पहले ही कहा था कि जीत बहादुर की जिंदगी दास्तान किसी फिल्म की पटकथा जैसी है. उसकी पूरी दास्तान दिखाने के लिए हमें आपको फ्लैश बैक में ले जाना होगा.

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नेपाल के नवलपरासी जिले का लौकहा गांव. इस गांव में गरीबी का दामन कुछ ज्यादा ही फैला हुआ है. इसी गांव में जीत बहादुर ने आंखें खोली थी. 1998 में सिर्फ दस साल की उम्र में जीत बहादुर काम की तलाश में घर से निकल गया. साथ में उसका बड़ा भाई दशरथ भी था. कुछ दिन उसने दिल्ली में काम किया और फिर राजस्थान चला गया. राजस्थान में उसका मन नहीं लगा और वो वहां से भागकर अपने घर पहुंचना चाहता था लेकिन जीत बहादुर की किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था. वो राजस्थान से वापस अपने गांव जाना चाहता था. गोरखपुर के लिए उसे ट्रेन पकड़नी थी, लेकिन गलती से वो गोरखपुर की बजाय अहमदाबाद की ट्रेन में बैठ गया. उसे जाना था गोरखपुर और पहुंच गया अहमदाबाद.

अहमदाबाद जीत बहादुर के लिए एक नई दुनिया थी. किस्मत अच्छी थी कि उसकी मुलाकात नरेंद्र मोदी से हो गई. नरेंद्र मोदी उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे. ये बात 2002 की है, तब जीत बहादुर की उम्र 14 साल हो गई थी, नरेंद्र मोदी ने उसके भविष्य को देखते हुए उसके रहने-खाने, पढ़ने लिखने का इंतजाम करवा दिया. जीत बहादुर की किस्मत बदल गई. उसके सिर पर नरेंद्र मोदी जैसी शख्सियत का साया था. लेकिन नेपाल के उसके गांव में लोगों ने आस खो दी थी कि कभी अब जीत बहादुर से भेंट होगी.

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मोदी ने पूरा किया अपना वादा
वो साल था 2011 का. उस वक्त नेपाल के उद्योगपति विनोद चौधरी फिक्की के निमंत्रण पर एक कार्यक्रम में अहमदाबाद गए थे. उस कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी भी पहुंचे थे. विनोद चौधरी ने मुलाकात के दौरान नरेंद्र मोदी से नेपाल आने का न्योता दे दिया. तब नरेंद्र मोदी ने उनसे नेपाल आने की शर्त रख दी. कहा कि अगर वो उनके घर रह रहे जीत बहादुर नाम के नेपाली लड़के के परिवार का पता लगा दें तो वो नेपाल जरूर आएंगे.

विनोद चौधरी ने अहमदाबाद से लौटने के बाद 30 घंटे के भीतर ही न सिर्फ जीत बहादुर के परिवार का पता लगा लिया, बल्कि परिवार वालों की बातचीत भी जीत बहादुर से करवाई. आखिरकार 12 बरस बाद 2011 में जीत बहादुर अपने घर पहुंचा. उसके साथ वो तस्वीर भी थी, जिसमें नरेंद्र मोदी उससे हाथ मिला रहे थे. पूरे परिवार से जब उन्होंने (मोदी ने) जीत बहादुर को मिलवाया तो वहां जैसे खुशियों का मेला लग गया. मां से बिछड़ा बेटा मिला. बहन और भाई से बिछड़ा भाई मिला. इस मिलन में संगम था खून और दिल के रिश्तों का. जीत बहादुर की कहानी नेपाली मीडिया में पहुंची तो वो वहां हीरो की तरह छा गया.

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प्रधानमंत्री बनने के बाद यह मोदी की पहली नेपाल यात्रा है और मोदी वहां पहुंचे तो उनके साथ नेपाल का बेटा और उनका धर्मपुत्र जीत बहादुर साथ था. दो बरस बाद जीत बहादुर एक बार फिर पहुंचा तो वो नेपाल के लिए किसी वीआईपी से कम नहीं था. आखिरकार जीत बहादुर नेपाल का वो बेटा है, जिसके अभिभावक भारत के प्रधानमंत्री हैं.

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