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सनफ्लावर सीड्स, टर्की सैंडविच और एक बेड... लगातार 40 घंटे B-2 बॉम्बर कैसे उड़ाते हैं पायलट

B-2 के कॉकपिट में सीटों के पीछे एक छोटा-सा एरिया होता है जहां पायलट थोड़ी देर आराम कर सकते हैं. लंबे मिशनों के दौरान कुछ पायलट अलर्ट रहने के लिए सूरजमुखी के बीज चबाते हैं. B-2 का डिजाइन तो अत्याधुनिक है लेकिन उसकी सफलता इंसान की क्षमता पर ही निर्भर है. पुराने बॉम्बर्स जैसे B-1B और B-52 में बड़ी टीमें होती थीं, लेकिन B-2 में सिर्फ दो ही लोग पूरी जिम्मेदारी संभालते हैं.

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US बी-2 बॉम्बर के भीतर कैसे रहते हैं पायलट
US बी-2 बॉम्बर के भीतर कैसे रहते हैं पायलट

ईरान के परमाणु ठिकानों पर रविवार सुबह किए गए हमलों में अमेरिका के B-2 स्पिरिट स्टील्थ बॉम्बर ने अहम भूमिका निभाई. 2 अरब डॉलर कीमत वाले इस फाइटर जेट को नॉर्थ्रॉप ग्रुमैन ने बनाया है. इसकी उड़ानें 40 घंटे से भी ज्यादा लंबी हो सकती हैं. ऐसे मिशन पर जाने से पहले पायलटों को सिर्फ उड़ान की योजना ही नहीं, बल्कि खाने-पीने तक की तैयारी कई हफ्तों पहले से करनी पड़ती है.

B-2 के दो सदस्यीय क्रू से असाधारण सहनशीलता की उम्मीद की जाती है. तैयारी के दौरान पायलटों को नींद से जुड़ी स्टडी करवाई जाती है और यह सिखाया जाता है कि किस तरह का खाना नींद और सतर्कता पर क्या असर डालता है.

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खाने को लेकर दी जाती है खास ट्रेनिंग

B-2 के पूर्व पायलट और 2024 में अमेरिकी यूरोपीय कमान के डिप्टी कमांडर के पद से रिटायर हुए लेफ्टिनेंट जनरल स्टीव बैशम बताते हैं, 'हमें यह सिखाया जाता है कि कौन सा खाना शरीर में ऊर्जा बनाए रखता है और कौन सा पचने में भारी होता है.' विमान में एक छोटा-सा केमिकल टॉयलेट होता है, इसलिए पायलट आमतौर पर हल्का और सादा खाना खाते हैं. बैशम का पसंदीदा फूड था- बिना चीज वाला टर्की सैंडविच. जितना फीका हो सके, उतना अच्छा.'

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B-2 की खासियत इसकी 172 फीट चौड़ी विंग और अदृश्यता है. यह बिना रीफ्यूलिंग के 6,000 नॉटिकल मील (11,112 किमी) उड़ सकता है, लेकिन अधिकतर मिशन में इसे हवा में कई बार ईंधन भरवाना पड़ता है. यह प्रक्रिया बेहद कठिन हो जाती है जब पायलट थकान से जूझ रहे होते हैं.

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बेहद जोखिम भरी होती है रीफ्यूलिंग की प्रक्रिया

रीफ्यूलिंग की प्रक्रिया लगभग अंधेरे में ही होती है- पायलट उस बूम (पाइप) को नहीं देख सकते जो टैंकर विमान से निकलकर B-2 बॉम्बर से जुड़ता है, क्योंकि वह उनके सिर के पीछे 16 फीट की दूरी पर होता है. इसके बजाय पायलट सिर्फ टैंकर विमान की लाइट्स और याद किए गए रिफरेंस पॉइंट्स पर निर्भर रहते हैं. खासकर रात में, जब आसमान में चांद भी न हो, यह काम बेहद खतरनाक हो जाता है. बैशम ने इसे 'स्वभाव से ही खतरनाक' बताया.

बैशम ने कहा, 'जब आप दुश्मन के इलाके में घुसने वाले होते हैं, तो एड्रेनालिन आपको आगे बढ़ाता है. लेकिन एक वक्त ऐसा आता है जब वह जोश भी खत्म होने लगता है. आप कोशिश करते हैं कि थोड़ा आराम कर लें, लेकिन फिर भी आखिरी रीफ्यूलिंग तो करनी ही पड़ती है.'

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अलर्ट रहने के लिए पायलट चबाते हैं सूरजमुखी के बीज

B-2 के कॉकपिट में सीटों के पीछे एक छोटा-सा एरिया होता है जहां पायलट थोड़ी देर आराम कर सकते हैं. लंबे मिशनों के दौरान कुछ पायलट अलर्ट रहने के लिए सूरजमुखी के बीज चबाते हैं. B-2 का डिजाइन तो अत्याधुनिक है लेकिन उसकी सफलता इंसान की क्षमता पर ही निर्भर है. पुराने बॉम्बर्स जैसे B-1B और B-52 में बड़ी टीमें होती थीं, लेकिन B-2 में सिर्फ दो ही लोग पूरी जिम्मेदारी संभालते हैं.

यह भी पढ़ें: क्या खत्म हो गया ईरान से एटमी खतरा? इस जंग से इजरायल और अमेरिका ने क्या-क्या हासिल किया

इराक में गिरा चुका है 15 लाख पाउंड बम

1999 में कोसोवो युद्ध (ऑपरेशन एलाइड फोर्स) के दौरान B-2 ने अमेरिका से उड़ान भरकर 31 घंटे में मिशन पूरे किए और पहले आठ हफ्तों में 33% टारगेट्स पर हमले किए. इराक युद्ध में B-2 ने 49 मिशनों में 15 लाख पाउंड बम गिराए. भविष्य में अमेरिकी वायुसेना B-2 और B-1 बॉम्बर्स को नए B-21 रेडर विमानों से बदलने की योजना बना रही है. 

B-2 को उड़ाने में करीब 65,000 डॉलर प्रति घंटे का खर्च आता है, जबकि B-1 पर यह खर्च 60,000 डॉलर है. बैशम ने कहा, 'हमारे पायलट इसे आसान दिखाते हैं, लेकिन यह आसान नहीं है. इन मिशनों के पीछे दुनिया भर में मौजूद बड़ी टीम होती है- प्लानर, मेंटेनेंस स्टाफ और टेक्नीशियन - जो सुनिश्चित करते हैं कि विमान हर मिशन में तैयार रहे.'

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