इजरायल ने अरब मुसलमानों के पवित्र अल-अक्सा मस्जिद के इमाम शेख एक्रीमा सबरी के खिलाफ मुकदमा शुरू कर दिया है. उनपर अपने भाषणों के जरिए 'उकसावे' के आरोप लगे हैं. इमाम के खिलाफ पहली सुनवाई मंगलवार को हुई.
अगस्त 2024 में दायर किए गए ये आरोप उन दो शोक-संदेश भाषणों से जुड़े हैं, जिनमें से एक भाषण फिलिस्तीनी इमाम ने 2022 में दिया था. एक भाषण 2024 का है जिसमें उन्होंने हमास के पूर्व नेता इस्माइल हनिया की हत्या के बाद उनके प्रति शोक जताया था.
सबरी की बचाव टीम का कहना है कि इजरायली अधिकारी पिछले कुछ सालों से उनके खिलाफ राजनीतिक, धार्मिक और वैचारिक उत्पीड़न का कैंपेन चला रहे हैं और यह मुकदमा उसी का हिस्सा है.
सबरी की कानूनी टीम के प्रमुख खालिद जबार्का ने ब्रिटेन स्थित न्यूज वेबसाइट 'मिडिल ईस्ट आई' से बात करते हुए कहा कि यह मामला नस्ल के आधार पर उत्पीड़न का मामला है.
उन्होंने कहा कि सबरी इजरायली कब्जे के खिलाफ लगातार आवाज उठाते रहे हैं और इजरायल उन्हें चुप कराने की कोशिश में उनके खिलाफ मुकदमा चला रहा है.
जबार्का ने कहा, 'सबरी प्रतिरोध का अहम प्रतीक हैं. वो अल-अक्सा मस्जिद पर इस्लामी दावे को बहुत स्पष्टता से रखते हैं फिलिस्तीनी मुद्दों की रक्षा करते आए हैं.'
86 साल के सबरी यरूशलम के पूर्व ग्रैंड मुफ्ती रह चुके हैं. वो सुप्रीम इस्लामिक काउंसिल के प्रमुख और अल-अक्सा मस्जिद के वरिष्ठ इमामों में से एक हैं.
वे 1970 के दशक की शुरुआत से पूर्वी यरूशलम के कब्जे वाले हिस्से में अल-अक्सा में जुमे के खुतबे देते रहे हैं. जुमे का खुतबा एक इस्लामिक उपदेश है जो शुक्रवार की नमाज से ठीक पहले दिया जाता है.
सबरी को कई बार इजरायली बलों ने गिरफ्तार किया है. उनपर मुकदमा ऐसी स्थिति में चलाया जा रहा है जब मस्जिद में फिलिस्तीनियों पर इजरायल का दमन लगातार बढ़ता जा रहा है.
इसी साल अक्टूबर में इजरायल के धुर-दक्षिणपंथी राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतमार बेन ग्वीर अल-अक्सा मस्जिद परिसर में पहुंचे थे. परिसर में जाकर उन्होंने कहा था कि इजरायल टेंपल माउंट का मालिक है. अल-अक्सा मस्जिद को यहूदी टेंपल माउंट कहते हैं. मुसलमानों की तरह ही यहूदियों के लिए भी मस्जिद परिसर पवित्र स्थल है.
यहूदियों को वहां जाने की इजाजत तो है लेकिन प्रार्थना करने की अनुमति नहीं है. हालांकि, इजरायल के मंत्री कई बार वहां जाकर कथित तौर पर प्रार्थना कर चुके हैं जिसपर काफी विवाद हुआ है.
इजरायली अधिकारियों ने कई इमाम, जिनमें सबरी भी शामिल हैं, को अल-अक्सा मस्जिद तक पहुंचने से प्रतिबंधित कर दिया है. जबार्का के अनुसार, इमामों को सिर्फ इसलिए अल-अक्सा से दूर कर दिया गया क्योंकि उन्होंने अपने खुत्बों में गाजा का जिक्र किया था.
वकील ने कहा, 'इजरायल ने गाजा शब्द तक पर पाबंदी लगा रखा है. यह अल-अक्सा मस्जिद में जुमे के खुत्बों में सीधा हस्तक्षेप है. यह बेहद चिंता की बात है.'
इस्लामिक विद्वानों के वैश्विक समूह 'इंटरनेशनल यूनियन ऑफ मुस्लिम स्कॉलर्स (IUMS)' के महासचिव ने अल-अक्सा मस्जिद के इमाम पर मुकदमे की निंदा की है. उन्होंने इसे 'कानूनी प्रक्रिया' से परे बताया है.
IUMS के महासचिव शेख अली अल-करदागी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर एक पोस्ट में कहा कि इजरायली शासन का यह कदम अल-कुद्स (यरुशलम) में 'अधिकार और स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करने वाली आवाज' के मनोबल को कम करने और उसे शांत कराने की कोशिश है.