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महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ उबाल... ईरान में सड़कों पर उतरे लोग, केंद्रीय बैंक प्रमुख को देना पड़ा इस्तीफा

ईरान इस समय गंभीर आर्थिक और सामाजिक संकट से जूझ रहा है. देश की मुद्रा रियाल ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सबसे निचला स्तर छू लिया है, जिससे तेहरान और कई अन्य बड़े शहरों में बड़े विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. केंद्रीय बैंक के प्रमुख मोहम्मद रजा फरजीन ने दबाव में इस्तीफा दिया है.

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प्रदर्शनकारियों ने ईरान की राजधानी तेहरान के डाउनटाउन में मार्च किया. (Photo: AP)
प्रदर्शनकारियों ने ईरान की राजधानी तेहरान के डाउनटाउन में मार्च किया. (Photo: AP)

ईरान एक बार फिर गंभीर आर्थिक और सामाजिक संकट के दौर से गुजर रहा है. देश की मुद्रा रियाल ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले एक नया रिकॉर्ड निचला स्तर छू लिया, जिससे राजधानी तेहरान और कई बड़े शहरों में व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. यह आंदोलन पिछले तीन सालों में ईरान का सबसे बड़ा जनाक्रोश माना जा रहा है.

राज्य टीवी के अनुसार, ईरान के केंद्रीय बैंक के प्रमुख मोहम्मद रजा फरजीन ने बढ़ते दबाव के कारण अपने पद से इस्तीफा दे दिया है॥ रियाल की कीमत गिरकर करीब 14 लाख 20 हजार प्रति डॉलर तक पहुंच गई, जिससे बाजारों में अफरा-तफरी मच गई. 

राजधानी के मुख्य बाजार सादी स्ट्रीट और ग्रैंड बाजार के आस-पास व्यापारी और दुकानदार प्रदर्शन कर रहे हैं. कई व्यापारियों ने अपनी दुकानें बंद कर दी हैं और दूसरों से भी कारोबार ठप करने की अपील की है.

सरकारी मीडिया ने पुष्टि की है कि तेहरान के अलावा इस्फहान, शिराज और मशहद जैसे प्रमुख शहरों में भी विरोध प्रदर्शन जारी हैं. पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े हैं.

यह भी पढ़ें: 'मुल्लाओं देश छोड़ो, तानाशाह की कब्र खुदेगी...', ईरान में शुरू हुआ अमेरिका-इजरायल का फाइनल गेम?

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यह प्रदर्शन 2022 में महसा जीना अमिनी की पुलिस हिरासत में मौत के बाद शुरू हुए हफ्तों तक चले बड़े आंदोलन के बाद अब तक का सबसे बड़ा माना जा रहा है. इस बार के आंदोलन के पीछे बढ़ती महंगाई और गिरती मुद्रा की कीमत प्रमुख कारण हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, दिसंबर में महंगाई दर 42 प्रतिशत से ऊपर पहुंच गई, जबकि खाद्य पदार्थों की कीमतें 70 प्रतिशत तक बढ़ीं.

ईरान की आर्थिक संकट की जड़ें अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों में भी हैं. 2015 के परमाणु समझौते के दौरान रियाल की स्थिति मजबूत थी, लेकिन 2018 में अमेरिका के समझौते से बाहर निकलने के बाद आर्थिक दबाव में लगातार वृद्धि हुई है. हाल के क्षेत्रीय तनाव और नए प्रतिबंधों ने संकट को और भी गहरा कर दिया है.

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