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भूकंप से हिले तुर्किए ने भारत को कहा था 'दोस्त', अब पाक का साथ दे निभा रहा दुश्मनी

भारत और पाकिस्तान में तनाव के बीच तुर्किए ने जिस तरीके का रुख अपनाया है, उससे वो वक्त याद आ रहा है जब फरवरी 2023 में तुर्की विनाशकारी भूकंप से तबाह हुआ था. उस दौरान भारत उन देशों में शामिल था जिन्होंने सबसे पहले तुर्किए को मदद भेजी थी. भारत की रेस्क्यू टीमों ने दिन-रात एक कर तुर्की के भूकंप प्रभावितों की मदद की थी.

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भारत-पाकिस्तान संघर्ष में तुर्किए खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़ा है (File Photo- AFP)
भारत-पाकिस्तान संघर्ष में तुर्किए खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़ा है (File Photo- AFP)

'दोस्त तुर्किए और हिंदी में एक कॉमन शब्द है...हमारे यहां तुर्किए में एक कहावत है कि जो जरूरत के समय मदद करे, वही सच्चा दोस्त होता है'- ये शब्द भारत में तुर्किए के राजदूत फिरात सुनेल के हैं जो उन्होंने फरवरी 2023 में भारत के लिए कहे थे. 6 फरवरी 2023 को तुर्किए में विनाशकारी भूकंप आए जिसमें 55,000 से ज्यादा लोगों का जान चली गई. तुर्किए के भूकंप पर दुख जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत के 140 करोड़ लोग तुर्किए के भूकंप पीड़ितों के साथ हैं. पीएम मोदी ने भूकंप के बाद तुरंत तुर्किए को मानवीय मदद भेजने का ऐलान किया था. 

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भारत ने तुर्किए की मदद के लिए 'ऑपरेशन दोस्त' शुरू किया जिसके तहत तुर्किए को मेडिकल सहायता भेजी गई. इस ऑपरेशन के तहत एनडीआरएफ की दो टीमें तुर्किए भेजी गई जिसमें एक डॉग स्क्वॉड भी शामिल था.

भारत की रेस्क्यू टीमों ने मलबे में दबे लोगों को खोजने, उन्हें बाहर निकालने में मदद की. ऑपरेशन दोस्त के तहत भारत ने 6 विमानों से राहत सामग्री, 30 बिस्तरों वाला मोबाइल अस्पताल, मेडिकल सामग्री सहित सभी जरूरी सामान भिजवाए. तुर्किए में भारत का ऑपरेशन दोस्त 10 दिनों तक चला और भारत ने दिखा दिया कि चाहे वो दोस्त हो या दुश्मन, जब कोई मदद की गुहार लगाता है तो भारत मदद के लिए सबसे पहले पहुंचता है.

लेकिन तुर्किए ने इस मदद के जवाब में अब जो किया है, उससे भारत और उसके 140 करोड़ लोगों को काफी दुख पहुंचा है. भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे संघर्ष में तुर्किए खुलकर पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा है.

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पहले आतंकी हमले की निंदा, फिर पाकिस्तान का नाम आते ही बदल गए सुर

22 अप्रैल को जब जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में आतंकियों ने धर्म पूछ-पूछकर 26 लोगों को मौत के घाट उतार दिया तब बाकी देशों की तरह ही तुर्किए ने भी हमले की निंदा की और इसे एक आतंकी हमला माना. लेकिन जब हमले में शामिल दो आतंकियों के तार पाकिस्तान से जुड़े तब तुर्किए के सुर बदल गए.

पहलगाम हमले के जवाब में भारत ने बुधवार को 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर (POK) में 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया जिसमें कम से कम 100 आतंकी मारे गए. भारतीय एयरस्ट्राइक में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर के परिवार के 10 लोग मारे गए.

आतंकियों के मारे जाने पर पाकिस्तान की सरकार को तो दुख हुआ ही, साथ ही तुर्किए को चोट लगी.

तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने आतंकियों को श्रद्धांजलि देते हुए सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, 'हम इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव मिसाइल हमलों के कारण व्यापक संघर्ष में बदल सकता है, जिसके कारण बड़ी संख्या में नागरिक शहीद हो सकते हैं. मैं हमलों में अपनी जान गंवाने वाले हमारे भाइयों के लिए अल्लाह से रहम की प्रार्थना करता हूं, और मैं एक बार फिर पाकिस्तान के भाई जैसे लोगों और पाकिस्तान के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं.'

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एर्दोगन ने बताया कि इस तनाव के बीच उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से फोन पर बात की है.

तुर्किए के राष्ट्रपति ने पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाते हुए अपनी पोस्ट में आगे कहा, 'हम जम्मू-कश्मीर में हुए जघन्य आतंकवादी हमले के संबंध में अंतरराष्ट्रीय जांच कराने के पाकिस्तान के प्रस्ताव को सही मानते हैं. कुछ लोग आग में घी डालने का काम कर रहे हैं लेकिन तुर्किए तनाव कम करने और बातचीत के रास्ते खोलने का पक्षधर है. इससे पहले कि मामला हाथ से निकल जाए, हम बातचीत शुरू कराने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं.'

तुर्किए में बने ड्रोन्स से भारत पर हमला कर रहा पाकिस्तान

भारत सरकार ने शुक्रवार को कहा कि गुरुवार रात पाकिस्तान ने जिन ड्रोन्स से भारत के उत्तरी और पश्चिमी मोर्चों पर हमला करने की कोशिश की, उनके मलबे की शुरुआती जांच से पता चलता है ड्रोन तुर्किए मूल के सोंगर सशस्त्र ड्रोन सिस्टम के हैं.

विंग कमांडर व्योमिका सिंह और कर्नल सोफिया कुरैशी ने पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर सियाचिन से सर क्रीक तक 36 जगहों पर लगभग 300-400 ड्रोनों के साथ हमले की कोशिश की गई. फिलहाल ड्रोन के मलबे की फोरेंसिक जांच की जा रही है और प्रारंभिक रिपोर्टों से पता चलता है कि ड्रोन्स तुर्किए से आए एसिसगार्ड कंपनी के सोंगर ड्रोन हैं.

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भारत-पाकिस्तान के बीच सीधी लड़ाई शुरू होने से पहले तुर्किए नौसेना का एक युद्धपोत TCC BUKUKADA कराची बंदरगाह पर पहुंचा था. युद्धपोत के कराची पहुंचने से पहले तुर्किए के C-130 एयरक्राफ्ट ने कराची में लैंड किया था. पाकिस्तान की मीडिया में दावा किया गया कि एयरक्राफ्ट में लड़ाकू हथियार हैं. लेकिन तुर्किए के रक्षा मंत्रालय ने उन दावों को खारिज करते हुए कहा कि एयरक्राफ्ट ईंधन भरने के लिए कराची में उतरा था न कि उससे पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई की गई. 

हथियारों और ड्रोन्स से पाकिस्तान की मदद और फिर लड़ाई शुरू होने के बाद भारत के खिलाफ खुलकर पाकिस्तान का समर्थन करना दिखाता है कि तुर्किए कितना मौकापरस्त मुल्क है जो अपने 'जरूरत के समय के दोस्त' को भूल गया.

पाकिस्तान की तरफ से भारत पर हमले के लिए छोड़े गए ड्रोन जिन्हें एयर डिफेंस सिस्टम ने तबाह किया (Photo- Reuters)

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के सीनियर फेलो सुशांत सरीन ने इसे लेकर हाल ही में कहा कि हालिया घटनाओं को देखते हुए भारत का तुर्किए के साथ सहयोग देखकर वो निराश हैं.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में वो कहते हैं, 'भारत गंभीर देश नहीं है. हम पहले सांप को दूध पिलाते हैं, फिर सोचते हैं कि सांप ने हमें डस क्यों लिया. हम अपने दुश्मनों को फायदा पहुंचाते हैं और दोस्तों के साथ बुरा बर्ताव करते हैं. हम खुद को यह भ्रम देते हैं कि तुर्किए जैसे देश अपनी दुश्मनी छोड़ देंगे. वे हमसे फायदा उठाते हैं और फिर खुलेआम हमें चाकू मार देते हैं.'

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भारत-तुर्किए के रिश्तों का इतिहास

1947 में अंग्रेजों से आजादी के बाद से भारत ने तुर्किए से साथ अपने रिश्तों को प्राथमिकता दी. दोनों देशों के राजनयिक रिश्तों की शुरुआत 1948 में हुई. भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तुर्किए के साथ अच्छे संबंधों के हक में थे क्योंकि तुर्किए मुस्लिम बहुल देश होने के बावजूद भी एक मजबूत धर्मनिरपेक्ष देश बनकर उभर रहा था.

लेकिन जब दुनिया में शीतयुद्ध का दौर शुरू हुआ तब तुर्किए ने अमेरिका और यूरोपीय देशों के रक्षा संगठन नेटो को ज्वॉइन कर लिया. पाकिस्तान भी रूस के खिलाफ अमेरिकी खेमे में चला गया लेकिन भारत ने अपनी गुटनिरपेक्षता की नीति नहीं छोड़ी और किसी पाले में शामिल नहीं हुआ.

शीत युद्ध के दौर से ही भारत और तुर्किए में दूरियां बढ़ती चली गईं और पाकिस्तान तुर्किए के करीब आता गया.

भारत और तुर्किए के रिश्तों में खटास तब गहरी हो गई जब 1974 में तुर्किए ने साइप्रस पर हमला कर दिया और उसका एक हिस्सा कब्जा लिया. साइप्रस के तत्कालीन राष्ट्रपति आर्कबिशप मकारियोज गुटनिरपेक्ष आंदोलन से जुड़े हुए थे. इस वजह से तुर्किए के साइप्रस पर हमले से भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बेहद नाराज हुईं और उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अन्य नेताओं के साथ मिलकर तुर्किए के खिलाफ कई कदम उठाए.

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भारत-तुर्किए संबंधों में नया मोड़

ऐसा नहीं कि भारत ने तुर्किए के साथ अपने संबंधों को सुधारने की कोशिश नहीं की. राजीव गांधी ने तुर्किए से संबंध बेहतर करने की कोशिश की और उनके बाद के प्रधानमंत्रियों नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी संबंध सुधारने के मकसद से तुर्किए दौरे पर भी गए.

तुर्किए में जब बुलांत एजेवेत प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने भारत के साथ संबंध बेहतर करने की कोशिश की थी. उन्होंने पाकिस्तान जाने का न्योता ठुकराकर अप्रैल 2000 में भारत का दौरा भी किया था.

एजेवेत कई मामलों में अन्य टर्किश प्रधानमंत्रियों से बिल्कुल अलग थे जैसे कश्मीर पर उनका रुख. एजेवेत से पहले के जितने भी प्रधानमंत्री हुए, वो कश्मीर मुद्दे को लेकर कहते रहे कि मुद्दे का समाधान संयुक्त राष्ट्र के प्रावधानों के तहत होना चाहिए जबकि एजेवेत का कहना था कि यह भारत-पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है.

एर्दोगन के आते ही बदल गया खेल

तुर्किए में 2002 में एके पार्टी सत्ता में आई जिसके नेता रेचेप तैय्यप एर्दोगन को लेकर माना गया कि वो भारत के साथ रिश्ते सुधारने पर काम करेंगे. एर्दोगन ने ऐसा किया भी. उन्होंने भारत के साथ व्यापार बढ़ाने पर जोर दिया और दोनों देशों के बीच पीपुल टू पीपुल कनेक्शन भी बढ़ा. भारत से हर साल बड़ी संख्या में लोग तुर्किए घूमने के लिए जाते हैं.

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2009 में तुर्किए ने अपना पहला नैनो सैटेलाइट लॉन्च किया जिसे भारत ने अपने सैटेलाइट लॉन्चर PSLV C-14 से स्पेस में भेजा.

साल 2000 में जहां तुर्किए और भारत का व्यापार 50.5 करोड़ डॉलर का था वो 2024 में बढ़कर 10.4 अरब डॉलर का हो गया. 2024 में भारत ने 6.66 अरब डॉलर के सामान तुर्किए को बेचे थे जबकि 3.78 अरब डॉलर के सामान तुर्किए से खरीदे थे.  

भारत-तुर्किए संबंधों में आड़े आ रहा एर्दोगन का कश्मीर प्रेम

भारत और तुर्किए के बीच संबंध तो आगे बढ़े लेकिन कश्मीर मुद्दे पर एर्दोगन के रुख को लेकर द्विपक्षीय रिश्तों में हमेशा थोड़ी कड़वाहट रही. एर्दोगन ने सत्ता में आते ही खुद को मुस्लिम दुनिया के नेता के रूप में स्थापित करने पर काम करना शुरू कर दिया. इसके लिए उन्होंने कश्मीर और फिलिस्तीन का मुद्दा उठाया और हर मंच पर इसकी वकालत करने लगे.

एर्दोगन हर फोरम पर कश्मीर का मुद्दा उठाने लगे जिस पर भारत ने लगातार नाराजगी जताई. पहलगाम में जिस दिन हमला हुआ, उस दिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ तुर्किए पहुंचकर कश्मीर का राग अलाप रहे थे. तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोगन के साथ एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में पाकिस्तानी पीएम ने कश्मीर मुद्दे पर तुर्किए के समर्थन के लिए उन्हें धन्यवाद दिया.

इससे पहले फरवरी में तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोगन पाकिस्तान पहुंचे थे जहां उन्होंने कहा कि कश्मीर का मुद्दा सुलझाने के लिए वो पाकिस्तान के प्रयासों का समर्थन करते हैं.

उन्होंने आगे कहा था कि कश्मीर का मुद्दा ऐसी बातचीत के जरिए हल हो सकता है जो संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और कश्मीरी लोगों की इच्छा के अनुरूप हो. एर्दोगन ने कहा कि तुर्किए लगातार कश्मीरी भाइयों के साथ एकजुटता रखेगा. 

2019 में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में एर्दोगन ने कश्मीर का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय पिछले 72 सालों से कश्मीर के मुद्दे को सुलझाने में नाकाम रहा है.

साल 2020 में राष्ट्रपति एर्दोगन ने पाकिस्तान की संसद में भाषण देते हुए कश्मीर पर पाकिस्तान का साथ दिया था. एर्दोगन ने कहा था कि कश्मीर पाकिस्तान के लिए जितना अहम है, तुर्किए के लिए भी यह मुद्दा उतना ही अहम है.

भारत ने हर बार कश्मीर पर एर्दोगन के बयानों की निंदा करते हुए कहा है कि कश्मीर भारत का घरेलू मामला है और इसमें तुर्किए का हस्तक्षेप पूरी तरह से अस्वीकार्य है.

अब एक बार फिर एर्दोगन पाकिस्तान का समर्थन कर रहे हैं और भारत के खिलाफ अपने ड्रोन्स के इस्तेमाल की इजाजत दे रहे हैं जिससे साफ है कि तुर्की भारत को 'दोस्त' तो नहीं मानता.

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