अमेरिका की भारतीय-अमेरिकी राजनयिक महविश सिद्दीकी ने H-1B वीजा सिस्टम में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी होने का दावा किया है. उनका कहना है कि भारतीयों को मिलने वाले बहुत से H-1B वीजा फर्जी डिग्रियों, झूठे कागज़ों या गैर-योग्य उम्मीदवारों के आधार पर दिए जाते हैं.
सिद्दीकी 2005-2007 के बीच चेन्नई स्थित अमेरिकी वाणिज्य दूतावास में काम करती थीं. उन्होंने एक पॉडकास्ट में कहा कि चेन्नई दुनिया के सबसे बड़े H-1B वीजा केंद्रों में से एक है. उन्होंने बताया कि 2024 में यहां 2.2 लाख H-1B वीजा और 1.4 लाख H-4 वीजा (परिवारजनों के लिए) जारी किए गए.
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि वह ये सब अपनी व्यक्तिगत क्षमता में कह रही हैं, किसी सरकारी पद या नीति का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहीं. साथ ही उन्होंने यह भी चुनौती दी कि अमेरिका में STEM क्षेत्र में प्रतिभा की कमी है और इसलिए भारत से बड़े पैमाने पर भर्ती की आवश्यकता है, यह धारणा सही नहीं है.
80-90% वीजा फर्जी: सिद्दीकी का दावा
सिद्दीकी ने आरोप लगाया कि 80-90 प्रतिशत भारतीय आवेदकों को जारी वीजा (जिनमें ज्यादातर H-1B हैं) धोखाधड़ी पर आधारित होते है, या तो फर्जी डिग्रियों से, या नकली दस्तावेजों से, या ऐसे उम्मीदवारों से जो वास्तव में हाई-स्किल्ड नहीं होते.
उनके मुताबिक उन्होंने और उनके साथियों ने चेन्नई में रहते हुए इस धोखाधड़ी का पता लगाया और इसकी रिपोर्ट विदेश सचिव तक भेजी, लेकिन राजनीतिक दबाव की वजह से इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. उन्होंने दावा करते हुए कहा, “हमने तेजी से समझ लिया कि बड़े स्तर पर फर्जीवाड़ा चल रहा है. हमने सचिव को डिटेल भेजकर हर विवरण बताया, लेकिन ऊपर से राजनीतिक दबाव इतना था कि इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.”
एंटी-फ्रॉड ड्राइव को कहा गया ‘रोग ऑपरेशन': सिद्दीकी
सिद्दीकी ने यह भी आरोप लगाया कि उनकी जांच को रोग ऑपरेशन कहकर दबाने की कोशिश की गई. उनका कहना है कि कई राजनेता इस पूरे नेटवर्क में शामिल थे और उन पर जांच रोकने के लिए बहुत दबाव बनाया गया, ताकि भारतीय नेताओं को खुश रखा जा सके. सिद्दीकी के अनुसार उन्होंने दो वर्षों में 51,000 से ज्यादा नॉन-इमिग्रेंट वीजा इंटरव्यू किए, जिनमें सबसे बड़ी संख्या H-1B की थी.
चेन्नई कॉन्सुलेट के तहत चार बड़े क्षेत्रों- हैदराबाद, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु से आवेदक आते थे. सिद्दीकी ने दावा किया कि इनमें हैदराबाद से आने वाले आवेदन सबसे ज्यादा संदिग्ध थे. उन्होंने कहा, “भारतीय-अमेरिकी होने के नाते यह कहना मुझे अच्छा नहीं लगता, लेकिन भारत में धोखाधड़ी और रिश्वतखोरी सामान्य बात की तरह देखी जाती है.”
उनका दावा है कि कई आवेदक तब इंटरव्यू देने ही नहीं आते थे, जब पता चलता कि अधिकारी अमेरिकी है.
कई मामलों में असली उम्मीदवार की बजाय ‘प्रॉक्सी’ इंटरव्यू देने पहुंच जाते थे. भारतीय मैनेजर कथित रूप से पैसे लेकर भारतीयों को नौकरी देते थे.
H-1B वीजा पर बढ़ी बहस
बता दें कि H-1B वीजा अमेरिकी कंपनियों को विदेशी टैलेंट रखने की सुविधा देता है. 2024 में 70% H-1B वीज़ा भारतीयों को मिले. अब सिद्दीकी के आरोपों ने इस पूरी प्रक्रिया पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं. खासकर इसलिए क्योंकि H-1B और F-1 स्टूडेंट वीजा अमेरिकी राजनीति में MAGA समूहों के निशाने पर रहे हैं.