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ताइवान का वो द्वीप जिस पर कब्जे के लिए 3 बार हमला कर चुका है चीन, हर बार मिली है मात

नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे के बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर ताइवान के खिलाफ कार्रवाई का दबाव बढ़ गया है. चीन और ताइवान के बीच युद्ध की आशंका से दुनिया सहमी हुई है. ऐसा कहा जा रहा है कि अगर चीन ने ताइवान पर हमला किया तो सबसे पहले उस द्वीप को निशाना बनाया जाएगा, जिसे तीन बार हमला करने के बावजूद चीन कभी जीत नहीं सका.

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किनमेन में कभी जीत नहीं सका चीन (फाइल फोटो)
किनमेन में कभी जीत नहीं सका चीन (फाइल फोटो)

अमेरिका नेता नैंसी पेलोसी ने पिछले दिनों ताइवान का दौरा किया था. चीन ने नैंसी पेलोसी के दौरे के बाद से ताइवान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. हालात युद्ध जैसे बन गए हैं. सारी दुनिया चीन और ताइवान के बीच युद्ध की दस्तक से डरी हुई है. इस टेंशन के बीच आजतक की टीम ताइवान के एक ऐसे द्वीप पर पहुंची जहां कब्जा करने के लिए चीन ने तीन बार कोशिश की लेकिन हर बार उसे असफलता मिली.

चीन तीन-तीन बार कोशिश करने के बावजूद इस द्वीप पर कब्जा करने में नाकाम रहा. यही ऐसा द्वीप है जिसने ताइवान को चीन के कब्जे में जाने से बचाया. चीन के सबसे बड़े नेता माओ ने इस द्वीप को लेकर कहा था कि इसने उनकी सेना को सबसे बड़ा आघात दिया. चीन और ताइवान के बीच जो तनाव है वह किनमेन आइलैंड पर साफ नजर आता है. किनमेन, जिनमिन या फिर क्यूमोय, ये उस द्वीप के ही अलग-अलग नाम हैं जो पिछले 73 साल से चीन के घमंड को चूर-चूर कर रहा है.

किनमेन द्वीप एक ऐसा द्वीप है जो चीन की नाकामी की जीती जागती मिसाल है. बहुत कम लोग जानते हैं कि किनमेन द्वीप की वजह से ही चीन ताइवान पर कब्जा नहीं कर सका. 73 साल पहले अगर कम्युनिस्ट सेना किनमेन हथिया लेती तो आज ताइवान, चीन का हिस्सा होता. ये किनमेन द्वीप ही था, जिसकी वजह से दुनिया में दो-दो चीन हैं.

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एक कम्युनिस्ट चीन, जिसे मेनलैंड चाइना भी कहा जाता है. दूसरा चीनी ताइपे या ताइवान जो खुद को भविष्य के एक आजाद और लोकतांत्रिक देश के तौर पर देखता है. अब सवाल ये है कि कम्युनिस्ट पार्टी की सेना किनमेन पर कब्जा क्यों नहीं कर पाई? ताइवान के कब्जे वाला ये छोटा सा द्वीप चीन से इतने करीब होने पर भी उसके कब्जे में क्यों नहीं है? क्या इसकी वजह नुकीली और बड़ी कीलें हैं जिनका मुंह चीन की तरफ है ?

ताइवान के इस द्वीप के इस बीच पर इतनी बड़ी कीलें किस मकसद से लगाई गई हैं? शायद ये जानकर हैरानी होगी कि किनमेन पर कब्जा करने के लिए चीन ने एक दो नहीं, बल्कि 3-3 बार कोशिश की लेकिन हर बार उसे ताइवान के इस द्वीप से भागना पड़ा, ताइवानी सेना से शिकस्त खानी पड़ी. अपनी इस हार से चीन एक बार तो इतना बौखला गया था कि उसने 44 दिन तक इस द्वीप पर लगातार बमबारी की और करीब 5 लाख बम बरसाए लेकिन डेढ़ लाख से भी कम आबादी वाला ये द्वीप झुका नहीं, सवाल है कैसे?

ताइवान से दूर, चीन से करीब है द्वीप

किनमेन द्वीप भौगोलिक लिहाज से देखें तो ये द्वीप ताइवान से दूर और चीन की सीमा से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. किनमेन आइलैंड चीन के फूजियन राज्य से करीब-करीब सटा हुआ है. जानकारों को लगता है कि ताइवान पर चीन की तरफ से पहला वार इस छोटे से द्वीप पर ही होगा. इसकी वजह ताइवान के इस छोटे से द्वीप की चीन से करीबी है.

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कम्युनिस्ट से हार के बाद आए थे नेशनलिस्ट

साल 1949 में चीन की नेशनलिस्ट पार्टी के लोग कम्युनिस्ट पार्टी से हार के बाद यहां आ गए थे. माओ ने नेशनलिस्ट पार्टी के लोगों को यहां से खदेड़ने के लिए अपनी सेना भेजी भी, लेकिन नेशनलिस्ट पार्टी के सैनिकों ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को यहां से खदेड़ दिया. इसके बाद साल 1954-1955 में चीन की सेना
ने इस द्वीप पर गोलीबारी की.

इसके 3 साल बाद ही चीन की तरफ से किनमेन द्वीप पर तीसरा हमला हुआ. 23 अगस्त 1958 को PLA ने किनमैन पर बमबारी शुरू कर दी. इस युदध को 823 आर्टिलरी बैटल के नाम से जाना गया. जिसमें 44 दिनों तक किनमेन द्वीप पर बम बरसाए, जिनकी संख्या करीब 4.70 लाख तक थी. फिर भी इस द्वीप पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी कब्जा करने में नाकाम रही और ये बड़ी वजह रहा ताइवान की आजादी का. यही बात इस द्वीप को चीन का टारगेट नंबर वन बनाती है.

समंदर किनारे गड़ी है कील

ताइवान के किनमेन द्वीप पर समंदर के किनारे कील गड़ी हैं. ये नुकीले कील 1949-1950 में लगाए गए थे जिससे बड़ी तादाद में चीने सैनिकों को आने से रोका जा सके. आज भले ही चीन अपनी ताकत पर इतरा रहा हो और ताइवान उसके मुकाबले में कुछ भी न हो, लेकिन इतिहास में मिली शिकस्त चीनी सेना को हमेशा याद रहेगी.

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चीन जब किनमेन पर कब्जा नहीं कर सका था तब उसने इस द्वीप पर करीब 5 लाख बम बरसाए लेकिन उसकी ये कोशिश बेकार गई.  ताइवान ने जमीन के अंदर सुरंग और बंकरों का ऐसा जाल बिछा लिया जिसमें सेना की गाड़ी और बोट्स तक ले जाई जा सकती थीं. आजतक की टीम ने इन सुरंगों में जाकर भी
चीन की हार के सबूत इकट्ठा किए.

आज चीन की नौसेना अमेरिका से भी ज्यादा ताकतवर है. शी जिनपिंग अतीत के जख्मों के बावजूद ताइवान पर हमले की हिम्मत करते हैं तो फिर किनमेन ही उनका पहला निशाना हो सकता है. ताइवान की सेना के डिप्टी कमांडर रह चुके और 8वीं कोर के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल ल्यू का भी यही मानना है. गौरतलब है कि चीन इस वक्त बौखलाया हुआ है. नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे के बाद शी जिनपिंग पर कार्रवाई का दबाव है. इसी साल उनकी तीसरी बार राष्ट्रपति पद पर ताजपोशी होनी है. ऐसे में ताइवान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई उनकी राजनीतिक मजबूरी भी है.

(आजतक ब्यूरो)

 

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