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'पैसा जमा करो, तब लाश मिलेगी...' अस्पताल में बेटे की मौत, पिता को मांगनी पड़ी भीख, पीड़ित की आपबीती

बेटे की जान बचाने की उम्मीद में एक पिता ने अपना मकान गिरवी रख दिया, रिश्तेदारों से कर्ज लिया और लोगों से मदद की गुहार लगाई, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद वह अपने बेटे को नहीं बचा सका. आरोप है कि बेटे की मौत के बाद निजी अस्पताल ने शव देने से पहले बिल थमा दिया. मजबूर पिता को बिल चुकाने के लिए सड़क पर भीख मांगनी पड़ी. कहानी में जानिये उस पीड़ित पिता की आपबीती...

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पीड़ित पिता की दर्दनाक आपबीती. (Photo: Screengrab)
पीड़ित पिता की दर्दनाक आपबीती. (Photo: Screengrab)

उत्तर प्रदेश के बदायूं से सामने आया यह मामला झकझोर देने वाला है. एक पिता, जिसने अपने बेटे की जान बचाने के लिए मकान तक गिरवीं रख दिया, कर्ज लिया, रिश्तेदारों और गांव वालों से मदद मांगी... मगर बेटे को नहीं बचा सका. बेटे की मौत के बाद उस पिता को अस्पताल का बिल चुकाने के लिए सड़क पर उतरकर भीख मांगनी पड़ी. इस घटना ने सन्न कर दिया है.

इस मामले में अब पीड़ित पिता राम लाल ने अस्पताल प्रबंधन के दावों को खारिज किया है. उनका कहना है कि बेटे के इलाज के दौरान वे पहले ही करीब तीन लाख रुपये अस्पताल को अलग-अलग किश्तों में दे चुके थे. इसके बावजूद बेटे की मौत के बाद अस्पताल प्रबंधन ने उनसे अतिरिक्त 3 लाख 10 हजार रुपये की मांग शुरू कर दी.

राम लाल कहते हैं कि वे बेहद गरीब परिवार से हैं. बेटे के इलाज के लिए उन्होंने जो कुछ भी था, सब झोंक दिया. हमने गहने बेचे, लोगों से उधार लिया, और आखिर में मकान भी गिरवीं रख दिया. सोचा था बेटा बच जाएगा, लेकिन भगवान को कुछ और ही मंज़ूर था. यह कहते हुए राम लाल की आवाज भर आती है.

अस्पताल पर लगाया लाश रोकने का आरोप

आरोप है कि जब राम लाल अस्पताल के बिल की पूरी रकम नहीं जुटा पाए, तो प्रबंधन ने बेटे का शव देने से इनकार कर दिया. इसी मजबूरी में राम लाल सड़क पर उतरे और उन्हें लोगों से हाथ जोड़कर मदद मांगनी पड़ी. भीख मांगते हुए उनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. राम लाल स्वीकार करते हैं कि उन्हें सड़क पर भीख मांगनी पड़ी. उन्होंने कहा कि एक पिता के लिए इससे बड़ा अपमान और क्या होगा? लेकिन बेटे का शव लेने के लिए मुझे यह करना पड़ा.

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गांव के लोगों ने भी राम लाल को लेकर कई बातें कही हैं. ग्रामीण प्रेमपाल का कहना है कि परिवार बेहद गरीब है. राम लाल के बेटे के इलाज के लिए पूरे गांव ने अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक मदद की. प्रेमपाल कहते हैं कि गांव में शायद ही कोई ऐसा होगा, जिसने इस परिवार की मदद न की हो. एक अन्य ग्रामीण असगर अली का कहना है कि इलाज के दौरान अस्पताल में पैसों का दबाव बनाया जाता रहा और बेटे की मौत के बाद भी बिल को लेकर परिवार को मानसिक रूप से तोड़ा गया. उन्होंने कहा कि मौत के बाद भी चैन नहीं लेने दिया गया.

कैसे घायल हुआ था युवक

24 साल का धर्मवीर बदायूं जिले के दातागंज क्षेत्र के नगरीया गांव का रहने वाला था. वह 1 दिसंबर को सड़क हादसे में घायल हो गया था. पहले उसे बदायूं के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से हालत गंभीर होने पर बरेली के निजी अस्पताल में रेफर किया गया. करीब 13 से 14 दिन तक अस्पताल में उसका इलाज चला. सिर में गंभीर चोट के चलते ऑपरेशन भी किया गया, लेकिन आखिरकार युवक की मौत हो गई.

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अस्पताल प्रबंधन का दावा- बिल माफ किया गया

दूसरी ओर, अस्पताल प्रबंधन इन आरोपों से इनकार कर चुका है. अस्पताल ने कहा था कि मृतक के परिवार का पूरा बिल माफ कर दिया गया था और किसी तरह की भीख मांगने की घटना अस्पताल परिसर में नहीं हुई. अस्पताल के कर्मचारियों का दावा था कि युवक के कुछ रिश्तेदार अस्पताल में ही काम करते हैं. उनका यह भी कहना था कि इलाज के दौरान कई दवाइयां मुफ्त में चलाई गईं और मौत के बाद बिल माफ कर दिया गया. अस्पताल स्टाफ रमेश ने कहा था कि परिवार की ओर से एक रुपया भी जमा नहीं किया गया. इलाज फ्री में चला. बाद में साजिश के तहत अस्पताल को बदनाम किया गया.

सच क्या है- जांच की दरकार

एक तरफ अस्पताल प्रबंधन के दावे, तो दूसरी तरफ पीड़ित पिता और गांव वालों के बयान. दोनों पक्षों की बातों में अंतर है. सवाल यह है कि अगर बिल माफ कर दिया गया था, तो पिता को सड़क पर उतरकर भीख क्यों मांगनी पड़ी? और अगर पैसे पहले ही जमा किए गए थे, तो उनका हिसाब कहां है? फिलहाल पीड़ित परिवार न्याय की मांग कर रहा है.

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