उत्तर प्रदेश की पांच विधान परिषद (एमएलसी) सीटों के लिए बीजेपी और सपा के बीच सीधा मुकाबला है. दो शिक्षक व तीन स्नातक कोटे की एमएलसी सीटों पर हो रहा चुनाव बीजेपी से कहीं ज्यादा सपा के लिए अहम बन गया है. विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी को वापस पाने का सपा के लिए एक मौका है, क्योंकि पांच में से एक सीट अगर वह जीतने में सफल रहती है तो दोबारा से पद हासिल कर लेगी. इसी के चलते सपा ने पूरी ताकत झोंक रखी है, लेकिन उसकी राह में सत्ताधारी बीजेपी एक बड़ी चुनौती बन गई है.
बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही सपा की सियासी ताकत विधान परिषद में घटती गई और बीजेपी का कद बढ़ता गया. पिछले साल जुलाई में सपा ने विधान परिषद से नेता प्रतिपक्ष का पद भी गवां दिया, क्योंकि विधान परिषद के कुल 100 सदस्यों में से सपा के पास सिर्फ 9 सदस्य हैं जबकि नेता प्रतिपक्ष के लिए कम से कम 10 फीसदी सदस्यों का होना जरूरी है.
विधान परिषद में सपा के कितने सदस्य?
विधान परिषद में फिलहाल सपा के पास 9 सदस्य हैं. ऐसे में 12 फरवरी को पांच एमएलसी सीटें रिक्त हो रही हैं, जिनमें तीन बीजेपी, एक शिक्षक गुट और एक निर्दलीय सदस्य हैं. इन पांचों एमएलसी सीटों के लिए 30 जनवरी को मतदान हैं, जिसके लिए बीजेपी, सपा, शिक्षक गुट और निर्दलीय चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. बीजेपी अपने तीनों मौजूदा एमएलसी को एक बार फिर से चुनावी मैदान में उतारा है तो सपा भी पूरी मुस्तैदी के साथ चुनाव लड़ रही है.
एमएलसी की पांच सीटों पर हो रहे चुनाव में सपा कितनी गंभीरता से लड़ रही है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पार्टी ने करीब चार महीने पहले ही अपने कैंडिडेट उतार दिए थे. स्नातक कोटे की गोरखपुर-फैजाबाद सीट से करुणा कांत मौर्य, मुरादाबाद-बरेली सीट से शिव प्रताप सिंह और कानपुर-उन्नाव सीट से कमलेश यादव मैदान में हैं. शिक्षक कोटे की इलाहाबाद-झांसी सीट से डॉ. एसपी सिंह और कानपुर-उन्नाव सीट से प्रियंका किस्मत आजमा रही हैं. सपा ने हर जिले में दो नेताओं को पार्टी उम्मीदवारों को जिताने का जिम्मा सौंपा है.
बीजेपी से कौन-कौन उम्मीदवार?
वहीं, बीजेपी के टिकट पर स्नातक एमएलसी कोटे की बरेली-मुरादाबाद सीट से जय पाल सिंह व्यस्त, कानपुर-उन्नाव सीट से अरुण पाठक, गोरखपुर-फैजाबाद सीट से देवेंद्र प्रताप सिंह मैदान में हैं. इस तरह शिक्षक कोटे की कानपुर-उन्नाव सीट के लिए वेणु रंजन भदौरिया और झांसी-प्रयागराज क्षेत्र से डॉ बाबू लाल तिवारी किस्मत आजमा रहे हैं. इसके अलावा शिक्षक गुट और निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनाव लड़ रहे हैं.
बीजेपी पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में है तो सपा भी किसी तरह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ रही. सपा ने पांचों सीटों के लिए जिलेवार प्रभारी नियुक्त कर कर रखे हैं. सपा ने अपने कई पूर्व मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं को प्रभारी बनाकर अपना-अपना जिला जिताने की जिम्मेदारी सौंप रखी है. सपा ने अंबिका चौधरी को गोरखपुर, राम गोविंद चौधरी को देवरिया, स्वामी प्रसाद मौर्य को महराजगंज व कुशीनगर और लालजी वर्मा को फैजाबाद जिले का प्रभारी बनाया है.
राममूर्ति वर्मा को अंबेडकरनगर, माता प्रसाद पांडेय, राजेंद्र प्रसाद चौधरी और लक्ष्मीकान्त को सिद्धार्थनगर का प्रभार दिया गया है. बलराम यादव, दुर्गा प्रसाद यादव और राम आसरे विश्वकर्मा जैसे दिग्गज नेताओं को आजमगढ़ की कमान सौंपी गई है. पार्टी हर हाल में एक सीट जीतने की जुगत में लगी हुई है. विधान परिषद (एमएलसी) की पांच सीटों पर चुनाव प्रदेश के 39 जिलों में होने हैं, जिसके चलते सपा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने भी कमान संभाल ली है.
विधान परिषद चुनाव में सपा हरसंभव कोशिश में है कि पांच में से कम से दो से तीन सीटों पर जीत दर्ज हो. इसके लिए सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल आज गुरुवार को चुनाव वाले जिलों में जाकर प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं की बैठक कर पार्टी प्रत्याशियों की जीत के लिए रणनीति बनाएंगे. पहले दिन 19 जनवरी को कानपुर नगर, 20 को कानपुर देहात, 21 को उरई (जालौन) व हमीरपुर, 23 को उन्नाव, 24 को शाहजहांपुर, 25 को बरेली व 26 को मुरादाबाद में बैठक करेंगे. इसके अलावा सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी एक-एक सीट पर नजर गढ़ाए हुए हैं और जिला प्रभारियों से सीधे संपर्क कर रिपोर्ट ले रहे हैं.
विधान परिषद में स्थिति
विधान परिषद (एमएलसी) में बीजेपी 73 सदस्य हैं, जो सबसे ज्यादा है. इसके बाद सपा के 9, बसपा के 1, शिक्षक गुट के 2, निर्दलीय के कोटे से 4, अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस), संजय निषाद की निषाद पार्टी, रघुराज प्रताप सिंह की जनसत्ता दल के एक-एक सदस्य हैं तो पांच सीटें रिक्त हैं. ऐसे में पांच विधान परिषद सीटों के चुनाव को समझा जा सकता है कि कितना अहम है, क्योंकि सपा के लिए नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी हासिल करनी है तो हर हाल में कम से कम एक एमएलसी सीट जीतनी होगी. इसीलिए सपा के लिए बीजेपी से ज्यादा चुनाव अहम हो गया है.