
2024 के लोकसभा चुनाव करीब हैं. विपक्षी इंडिया गठबंधन के नेता सीट शेयरिंग से लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को रोकने की रणनीति तक, मंथन में जुटे हैं. वहीं, सीटों के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में गठबंधन के नेतृत्व की दावेदारी कर रही समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए उसके ही नेता का बयान गले की हड्डी बनता नजर आ रहा है. सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने पहले रामचरितमानस को लेकर विवादित बयान दिया, फिर अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को धोखा बता दिया. हाल ही में दिवाली के समय भी स्वामी प्रसाद के माता लक्ष्मी को लेकर दिए बयान पर भी सियासी बखेड़ा खड़ा हो गया था और अब उन्होंने कहा है कि हिंदू धर्म नहीं, एक धोखा है.
स्वामी प्रसाद के बयान से सपा पल्ला झाड़ रही है तो वहीं अब इंडिया गठबंधन की उसकी सहयोगी कांग्रेस ने भी इसे लेकर मोर्चा खोल दिया है. यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने मांग की है कि सपा स्वामी के खिलाफ कार्रवाई करे. सपा भी बैकफुट पर आ गई है. सपा सांसद डिंपल यादव ने स्वामी प्रसाद के इस बयान को उनकी निजी राय बताते हुए कहा है कि पार्टी उनके इस बयान का किसी भी सूरत में उनके इस बयान का समर्थन नहीं करती. वहीं, सपा विधायक पवन पाण्डेय ने सफाई देते हुए कहा है कि सपा हिंदू विरोधी नहीं है. अखिलेश यादव कई मौकों पर यह कह चुके हैं कि सपा सभी धर्मों का सम्मान करती है.

स्वामी के इस बयान से एक दिन पहले ही लखनऊ में सपा का ब्राह्मण सम्मेलन हुआ था. इस सम्मेलन में भी सपा नेताओं ने अखिलेश के सामने इस तरह के बयानों का मुद्दा उठाया था और नाराजगी जताई थी. अखिलेश यादव ने इस तरह के बयानों पर अंकुश लगाने की बात कही थी. लेकिन इसके अगले ही दिन स्वामी प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लेकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र करते हुए नया बयान दे दिया जिससे नया बखेड़ा खड़ा हो गया है. अब सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या स्वामी प्रसाद ने ये बयान ऐसे ही दिया या इसके पीछे कोई सियासी रणनीति है? इसकी चर्चा से पहले ये जान लेना भी जरूरी है कि स्वामी प्रसाद मौर्या ने क्या बयान दिया.
स्वामी प्रसाद मौर्य ने क्या कहा
स्वामी प्रसाद मौर्य ने दिल्ली में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हिंदू धर्म नहीं, एक धोखा है. मैं जब भी ये बात कहता हूं, लोगों की भावनाएं आहत हो जाती हैं लेकिन जब मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा कहते हैं, तब किसी को कुछ नहीं होता. उन्होंने ये भी कहा कि साल 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि हिंदू कोई धर्म नहीं, जीवनशैली है. मोहन भागवत ने भी एक नहीं, दो-दो बार कहा कि हिंदू कोई धर्म नहीं बल्कि जीवनशैली है. पीएम मोदी भी कह चुके हैं कि हिंदू धर्म, धर्म नहीं है.
यूं ही बेकाबू नहीं स्वामी के बोल
दरअसल, हिंदू धर्म पर स्वामी के बोल यूं ही बेकाबू नहीं हैं. इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा. रामचरितमानस को लेकर स्वामी प्रसाद के बयान पर जब यूपी की सियासत सुलग रही थी, तब अखिलेश ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया जरूर था लेकिन वजह थी जातिगत जनगणना को लेकर आंदोलन की रूपरेखा पर बातचीत. सपा के भीतर उठ रहे विरोध के स्वर भी अनसुना कर अखिलेश यादव ने स्वामी को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया था. ऐसे में ये सवाल और गहरा हो जाता है कि क्या स्वामी के ऐसे बयान महज संयोग हैं या सियासी प्रयोग? ऐसे बयान सपा की रणनीति का हिस्सा तो नहीं?
स्वामी की बयानबाजियों के पीछे क्या है वोटों का गणित
करीब 80 फीसदी हिंदू आबादी वाले प्रदेश की सियासत में स्वामी प्रसाद इस तरह के बयान दे रहे हैं और पार्टी एक्शन की जगह पुरस्कार दे रही है तो उसके अपने निहितार्थ भी होंगे. स्वामी के बयानों के निहितार्थ भी तलाशे जा रहे हैं, मीन-मेख निकाले जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि स्वामी के बयानी तीर से सपा एकसाथ कई शिकार करना चाह रही है. यादव पहले से ही सपा के कोर वोटर रहे हैं, अब नजर ओबीसी वर्ग की बाकी जातियों को अपने साथ लामबंद करने और तेजी से बढ़ते बौद्ध धर्म से जुड़े लोगों का एक नया वोट बैंक खड़ा करने की है.
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बौद्ध धर्म मानने वालों की तादाद पिछले 12 साल में तेजी से बढ़ी है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक यूपी में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या 2 लाख 6 हजार 285 थी. वहीं, ताजा अनुमानों के मुताबिक पिछले 12 साल में बौद्ध धर्म मानने वालों की संख्या बढ़कर करीब 25 लाख तक पहुंच चुकी है. इसमें बड़ा हिस्सा नवबौद्ध का है. नवबौद्ध यानी ऐसे लोग जिन्होंने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया है. नवबौद्ध में दलित के साथ ही कोईरी और पाल जैसी पिछड़ी जातियों के लोग अधिक बताए जाते हैं.

पूर्वी से लेकर पश्चिमी यूपी तक, कई जिलों में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की आबादी अच्छी खासी है. पूर्वांचल की बात करें तो सोनभद्र के साथ ही कुशीनगर, देवरिया, संतकबीरनगर में बौद्ध धर्म मानने वालों की तादाद अच्छी खासी है तो वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश मेरठ, गौतमबुद्धनगर और सहारनपुर जैसे जिलों में भी बौद्ध आबादी ठीक-ठाक है.
बीजेपी और बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाने का प्लान
यूपी की आबादी में कोईरी आबादी की भागीदारी अनुमानों के मुताबिक करीब 9 फीसदी है. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के चेहरे पर इस वर्ग की बड़ी आबादी का समर्थन पिछले चुनावों में बीजेपी को मिलता रहा है. कुशीनगर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट के साथ ही गया और सारनाथ जैसे बौद्ध तीर्थस्थलों को जोड़ने से लेकर सम्राट अशोक की जयंती तक, बीजेपी भी बौद्ध पॉलिटिक्स में खुलकर मैदान में नजर आई है. पाल भी बीजेपी के वोटर माने जाते हैं. दलित वोटर मायावती की पार्टी बसपा के साथ रहा है. कहा जा रहा है कि स्वामी के ऐसे बयानों से बौद्ध अस्मिता को धार देकर सपा की रणनीति एक नया वोट बैंक खड़ा करने, बीजेपी और बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की है.
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गौरतलब है कि यूपी में करीब 20 फीसदी दलित आबादी है इसके बावजूद मायावती की बसपा 2022 चुनाव में महज 13 फीसदी वोट शेयर पर सिमट गई थी. अनुमानों के मुताबिक ही यूपी में यादवों की आबादी करीब 11 फीसदी और मुस्लिम करीब 19 फीसदी हैं. यानी सपा के पास पहले से ही करीब 30 फीसदी का वोट बेस है. अब अगर कोईरी और दलित वोट हिंदू-बौद्ध में बंटता है तो सपा को इसका लाभ मिल सकता है. अब स्वामी के बयानों से सपा नया वोट बैंक खड़ा करने में सफल होती है या ये बयान बैकफायर कर जाएंगे? ये लोकसभा चुनाव के नतीजे बताएंगे.