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स्वामी प्रसाद मौर्य 'घर वापसी' को बेताब, क्या फिर हाथी पर करेंगे सवारी?

स्वामी प्रसाद मौर्य इन दिनों अलग ही तेवर में दिख रहे हैं. सपा और बीजेपी को लेकर स्वामी प्रसाद गरम हैं, लेकिन बसपा को लेकर नरम रुख अपना रखा है. मायावती के साथ हाथ मिलाने के भी संकेत दे रहे हैं, जिसके चलते सवाल उठने लगा है कि क्या वे घर वापसी करने के फिराक में तो नहीं हैं?

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सियासी संघर्ष कर रहे स्वामी प्रसाद मौर्य (Photo-PTI)
सियासी संघर्ष कर रहे स्वामी प्रसाद मौर्य (Photo-PTI)

उत्तर प्रदेश की सियासत में स्वामी प्रसाद मौर्य अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की जंग लड़ रहे हैं. बसपा छोड़ने के बाद से बीजेपी और सपा होते हुए इन दिनों स्वामी प्रसाद अपनी पार्टी बनाकर सियासी संघर्ष कर रहे हैं. सपा और बीजेपी पर सख्त तेवर अपना रखे हैं, लेकिन बसपा को लेकर नरम हैं.

बसपा प्रमुख मायावती को लेकर भी स्वामी प्रसाद मौर्य के तेवर अब ढीले पड़ गए हैं, जिसके चलते ही सवाल उठने लगा है कि क्या फिर से बसपा के हाथी पर सवार होने की फ़िराक़ में हैं.

स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि अगर मायावती बाबासाहेब आंबेडकर के मिशन और रास्ते पर चलती हैं, तो उन्हें बसपा के साथ हाथ मिलाने में कोई गुरेज नहीं. स्वामी प्रसाद का यह बयान और तेवर साफ़ दिखा रहे हैं कि वह बसपा में वापसी के लिए बेताब हैं.

बीजेपी-सपा पर गरम, बसपा पर नरम

सपा छोड़ने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी जनता पार्टी बनाकर सियासी राह तलाश रहे हैं. स्वामी प्रसाद ने गुरुवार को ग़ाज़ीपुर में सपा और बीजेपी पर जमकर निशाना साधा और कहा कि दोनों एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं. बीजेपी और सपा गुंडाराज और जंगलराज के पोषक हैं. उन्होंने कहा कि सप सरकार में भी ग़रीबों की बड़े पैमाने पर ज़मीन और घर पर क़ब्ज़े किए जाते थे, लूट होती थी, मार-पिटाई होती थी, वही हाल आज बीजेपी सरकार में भी है. जंगल राज चरम पर है.

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स्वामी प्रसाद मौर्य ने यह बात पहली बार नहीं कही बल्कि पिछले तीन महीने से कई बार कह चुके हैं. बीजेपी के साथ सपा को भी निशाने पर लेकर साफ़ संकेत दे रहे हैं कि दोनों ही एक हैं, लेकिन बसपा पर पूरी तरह से खामोशी अख्तियार कर रखी है. पिछले दिनों स्वामी प्रसाद ने बसपा प्रमुख मायावती की तारीफ़ करते हुए उन्हें अब तक का सबसे बेहतर मुख्यमंत्री तक बता दिया था. स्वामी प्रसाद के तेवर से माना जा रहा है कि वह बसपा में वापसी के संकेत दे रहे हैं.

स्वामी प्रसाद मौर्य करेंगे 'घर वापसी'?

पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद ने अस्सी के दशक में अपनी सियासी पारी का आग़ाज़ किया था, लेकिन राजनीतिक बुलंदी उनको नब्बे के दशक में बसपा का दामन थामने के बाद मिली. 2017 के चुनाव से ठीक पहले स्वामी प्रसाद ने बसपा छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे और 2022 के चुनावी तपिश के बीच सपा की साइकिल पर सवार हो गए थे, लेकिन 2023 में उन्होंने सपा को अलविदा कह दिया था.

सपा से इस्तीफ़ा देने के बाद से स्वामी प्रसाद कोई सियासी प्रभाव नहीं जमा सके, जिसके चलते एक बार फिर बसपा में वापसी के संकेत दे रहे हैं. बसपा छोड़ते समय उन्होंने मायावती पर जमकर हमले किए थे. मायावती को बाबासाहेब के सिद्धांतों और कांशीराम के मिशन से भटक जाने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे, लेकिन अब उसी मायावती के साथ हाथ मिलाने के संकेत दे रहे हैं.

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स्वामी प्रसाद मौर्य की बेचैनी की वजह यह भी है कि सपा अब उनके ख़िलाफ़ बाबू सिंह कुशवाहा पर दाँव लगा रही है. बाबू सिंह कुशवाहा ने हाल ही में स्वामी प्रसाद मौर्य की परंपरागत सीट रही ऊँचाहार में एक बड़ी जनसभा करके उनके ख़िलाफ़ जमकर हमले किए थे. इस कार्यक्रम के बाद मौर्य समाज ऊँचाहार में दो हिस्सों में बँट गया है. एक तबका स्वामी प्रसाद के साथ तो दूसरा तबका बाबू सिंह कुशवाहा के साथ खड़ा नज़र आ रहा है. इसीलिए भी स्वामी प्रसाद मौर्य अपने लिए मज़बूत ठिकाना तलाश रहे हैं.

बसपा में वापसी के दिए स्वामी ने संकेत

स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि अगर मायावती बाबासाहेब आंबेडकर के मिशन पर लौटती हैं, तो स्वामी प्रसाद मौर्य को उनसे हाथ मिलाने में कोई गुरेज़ नहीं होगा. उनका यह बयान सीधे तौर पर बसपा में वापसी को दिखा रहा है, क्योंकि उनके पास सिर्फ़ बसपा ही राजनीतिक विकल्प है. इसके अलावा 2022 का विधानसभा और 2024 का लोकसभा चुनाव हारने के चलते उनकी अपने मौर्य समाज पर भी पकड़ कमज़ोर पड़ी है.

यूपी की सियासत में एक समय स्वामी प्रसाद मौर्य की तूती बोला करती थी और वह ओबीसी समाज के बड़े नेता हुआ करते थे, लेकिन पिछले आठ सालों में तीन बार दलबदल कर चुके हैं और अपनी सियासी पार्टी भी बना ली है. इसके बाद भी स्वामी प्रसाद अपना पुराना सियासी मुक़ाम हासिल नहीं कर सके, जो उनका बसपा में हुआ करता था.

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बसपा में रहते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य विधायक से लेकर मंत्री तक बने. 2007 के विधानसभा चुनाव में अपनी सीट हारने के बाद भी स्वामी प्रसाद को मायावती ने अपनी कैबिनेट का हिस्सा बनाया था. बसपा के विपक्ष में रहते हुए नेता प्रतिपक्ष के पद पर स्वामी प्रसाद विराजमान रहे. प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय महासचिव तक रहे, लेकिन बसपा छोड़ने के बाद बीजेपी और सपा में रहकर भी अपना पुराना रुतबा हासिल नहीं कर सके. यही वजह है कि बसपा में वापसी के कयास लगाए जा रहे हैं.

क्या मायावती स्वामी प्रसाद को लेंगी?

स्वामी प्रसाद मौर्य भले ही बसपा में वापसी के लिए बेताब नज़र आ रहे हों, लेकिन क्या मायावती उन्हें लेने के लिए तैयार होंगी? बसपा के सूत्रों की मानें तो स्वामी प्रसाद मौर्य ने जिस तरह से पार्टी छोड़ने के बाद मायावती पर आक्रामक रुख अपनाया है. इसके अलावा, सनातन धर्म और हिंदू देवी-देवताओं को लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य जिस तरह से बयान दे रहे हैं, उसे लेकर भी मायावती उनसे खुश नहीं हैं.

बसपा के एक बड़े नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि स्वामी प्रसाद अगर खामोश रहते तो उनकी वापसी हो सकती थी, लेकिन फिलहाल जिस तरह की राजनीति है, उसके चलते मायावती उन्हें लेने के लिए रज़ामंद नहीं हैं. सूत्रों ने बताया कि स्वामी प्रसाद की बेटी पूर्व सांसद संघमित्रा मौर्य की दिल्ली में मायावती से मुलाक़ात हुई थी.

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संघमित्रा का बीजेपी ने 2024 में टिकट काट दिया था. संघमित्रा अपने सियासी भविष्य की राह तलाश रही हैं, लेकिन अभी उन्हें बसपा से हरी झंडी नहीं मिली है. ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा प्रमुख मायावती पर नरम तेवर अपनाकर उनका विश्वास जीतना चाहते हैं. ऐसे में, मायावती के प्रति नरमी और धार्मिक नेताओं पर हमला दलित समाज में आंबेडकरवादी छवि मज़बूत करने का प्रयास माना जा रहा है.

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