
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों में चुनावी शोर अब नेपथ्य की ओर है और सबका ध्यान सेमीफाइनल माने जा रहे इस सियासी महासमर के बाद महामुकाबले पर है. केंद्र की सत्ता पर काबिज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की अगुवा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी अब पूरी तरह से चुनावी मोड में नजर आ रही है. राज्यों के चुनाव में बगैर सीएम फेस घोषित किए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने का दांव हो या मोदी की गारंटी का कार्ड, लोकसभा चुनाव से पहले विनिंग कॉम्बिनेशन की तलाश से जोड़कर ही देखे गए.
अब बीजेपी की नजर माइक्रो रणनीति के तहत एक-एक राज्य, एक-एक क्षेत्र, एक-एक जाति और समुदाय को लेकर खास समीकरण गढ़ने पर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजस्थान चुनाव प्रचार के अंतिम दिन मथुरा पहुंचे और रानी लक्ष्मीबाई के 525वें जन्मोत्सव पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए. पीएम मोदी ने भक्त मीरा की स्मृति में डाक टिकट और 525 रुपये के सिक्के जारी किए तो साथ श्रीकृष्ण जन्मभूमि भी पहुंचे और दर्शन-पूजन किया.
नरेंद्र मोदी श्रीकृष्ण जन्मभूमि जाने वाले पहले प्रधानमंत्री भी बन गए हैं. पीएम मोदी के मथुरा पहुंच मारवाड़ के सिसोदिया राजवंश से नाता रखने वाली भक्त मीरा जन्मोत्सव में शामिल होने को राजस्थान चुनाव में मारवाड़ साधने की रणनीति, ब्रज पॉलिटिक्स से जोड़कर देखा जा रहा था. पीएम मोदी ने उससे भी एक कदम आगे निकल श्रीकृष्ण जन्मभूमि का दौरा कर एक बड़ी लकीर खींच दी है. एक ऐसी लकीर जिसके बीजेपी और विपक्षी पार्टियां, दोनों के लिए ही अपने संदेश हैं.

पीएम मोदी के मथुरा दौरे, श्रीकृष्ण जन्मभूमि जाने और मीरा जन्मोत्सव में घंटों समय देने के सियासी निहितार्थ भी तलाशे जा रहे हैं. सियासत के जानकार पीएम के चार घंटे के मथुरा कार्यक्रम में बीजेपी की सियासत का लार्जर प्लान देख रहे हैं तो वहीं बीजेपी के कार्यकर्ता लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी की माइक्रो लेवल वाली रणनीति. टेंशन सपा की भी बढ़ गई है तभी तो अखिलेश यादव कह रहे हैं कि पहली बार जा रहे हैं तो ये कौन सी उपलब्धि है.
बीजेपी का लार्जर प्लान क्या
अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि पीएम के मथुरा दौरे में आखिर बीजेपी का लार्जर प्लान क्या है? इसे समझने के लिए समय चक्र में थोड़ा पीछे चलते हैं. बीजेपी की स्थापना के बाद से ही पार्टी की सियासत का मुख्य आधार राम मंदिर और अयोध्या रहे. मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद राम का नाम और तब बीजेपी अध्यक्ष रहे लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा ही थी जिसने आरक्षण विरोधी आंदोलन की आग पर पानी डालने का काम किया था. उस दौर में एक नारे का शोर खूब सुनाई दे रहा था- 'अयोध्या तो बस झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है'.
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अयोध्या में अब रामलला को मंदिर में विराजमान किए जाने की तारीख भी आ चुकी है. 22 जनवरी को राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो जाएगी. काशी का ज्ञानवापी केस भी कोर्ट में है. एडवोकेट सर्वे हो चुका है और सुनवाई जारी है. मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मामला भी कोर्ट में है और हिंदू पक्ष एडवोकेट सर्वे कराने की मांग कर रहा है. ऐसे में क्या पीएम मोदी का श्रीकृष्ण जन्मभूमि जाना बीजेपी के फोकस शिफ्ट का संकेत तो नहीं? राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि पीएम मोदी के एक-एक स्टेप में बीजेपी की रणनीति झलकती है. राम मंदिर के बाद क्या? ये चर्चा चल रही थी और पीएम मोदी का श्रीकृष्ण जन्मभूमि जाना इसी सवाल का जवाब है.

उन्होंने ये भी कहा कि जातिगत जनगणना के विपक्षी व्यूह को भेदने के लिए हिंदुत्व की धार जरूरी है और राम मंदिर में 22 जनवरी को रामलला विराजमान होंगे ही, बीजेपी अब इसके लिए कृष्ण की ओर मुड़ गई है तो इसके भी अपने मायने हैं. बीजेपी राम तो सपा श्रीकृष्ण के नाम पर सियासत करती रही है. ऐसे में बीजेपी का ये मूव सपा के लिए भी टेंशन बढ़ाने वाला साबित हो सकता है. जातिगत जनगणना का दांव कितना सफल रहता है, कितना विफल, ये बाद की बात है. इसने बीजेपी को अपनी रणनीति पर फिर से सोचने के लिए मजबूर जरूर कर दिया है.
पश्चिमी यूपी साधने की तैयारी
श्रीकृष्ण के सहारे धार्मिक आस्था है ही, जातीय गणित भी है. दरअसल, भगवान श्रीकृष्ण का कनेक्शन यदुवंश से है और यादव सपा के वोटर हैं. पीएम मोदी के श्रीकृष्ण जन्मभूमि जाने को यादव वोट में सेंध लगाने की रणनीति से भी जोड़कर देखा जा रहा है. मथुरा में जाट भी अच्छी तादाद में हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाट वोटर का रोल अहम है. जाट अधिकतर कृषि से जुड़े हैं और किसान नए कृषि कानूनों को लेकर बीजेपी से नाराज बताए जा रहे हैं. यूपी के विधानसभा चुनाव में इस नाराजगी का सीटों पर अधिक प्रभाव नजर नहीं आया लेकिन बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में यूपी की सभी 80 सीटें जीतकर क्लीन स्वीप का लक्ष्य रखा है ऐसे में थोड़ी नाराजगी भी कुछ सीटों पर भारी पड़ सकती हैं.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद काशी यानी वाराणसी से सांसद हैं जहां से पार्टी पूर्वांचल की सियासत साध रही है. राम मंदिर के बाद पार्टी अवध को लेकर भी आश्वस्त है लेकिन मामला पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फंसता माना जा रहा था. ऐसा इसलिए भी था क्योंकि जाट वोट बेस वाली राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) और यादव वोट बेस वाली सपा, दोनों ही दल साथ हैं. अब तक की जो तस्वीर है, उसमें कांग्रेस भी इस गठबंधन के फ्रेम में है. ऐसे में, पीएम मोदी का श्रीकृष्ण जन्मभूमि जाना हिंदुत्व के सहारे यूनिवर्सल हिंदू वोट बैंक के पुराने फॉर्मूले पर चलकर पश्चिमी यूपी में भी वोटों का नया समीकरण गढ़ने की कोशिश बताया जा रहा है.