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ट्रंप टैरिफ की मार से बेहाल भारत की 'कालीन सिटी' भदोही, 13 लाख लोगों की रोजी-रोटी पर संकट!

भारत के कालीन दुनियाभर में अपनी अलग पहचान रखते हैं और उत्तर प्रदेश का भदोही 'कालीन सिटी' के तौर पर मशहूर है. यहां से एक्सपोर्ट होने वाले कालीनों का 60 फीसदी हिस्सा सिर्फ अमेरिका को जाता है. ऐसे में 50 फीसदी अमेरिकी टैरिफ के बाद इस उद्योग पर गंभीर संकट मंडरा रहा है.

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खेती-किसानी से जुड़े लोग बने कालीन के कारीगर  (Photo: ITG)
खेती-किसानी से जुड़े लोग बने कालीन के कारीगर (Photo: ITG)

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से भारत पर लगाए गए टैरिफ से भारतीय कालीन उद्योग पर संकट के बादल छा गए हैं. पहले 25 फिर 50 फीसदी अमेरिकी टैरिफ के कारण अमेरिका को कालीन निर्यात करने वाले एक्सपोर्टर का काम लगभग ठप होने की कगार पर है. यही हाल रहा तो एक तरफ हजारों करोड़ का माल कंपनियों में डंप रहेगा, तो दूसरी ओर कालीन बनाने वाले लाखों कामगारों के सामने बेरोजगारी की समस्या खड़ी हो जाएगी. इसे लेकर कालीन निर्यातक सरकार से तमाम रियायतों की उम्मीद कर रहे हैं जिससे भारतीय हस्तनिर्मित कालीन उद्योग को कुछ राहत मिल सके.

अमेरिका जाता है 60 फीसदी माल

हस्तनिर्मित कालीन के क्षेत्र में विदेशों में भारतीय कालीनों की अपनी एक अलग पहचान है. भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय की कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के आंकड़ों के मुताबिक भारत से 17 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के कालीन विदेशों में निर्यात किए जाते हैं. इसमें अकेले 60 फीसदी हिस्सा अमेरिका में निर्यात किया जाता है. कालीन उद्योग एक कुटीर उद्योग है इसलिए इससे लाखों ग्रामीण कामगार जुड़े हुए हैं.

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भारत के कश्मीर, जयपुर, पानीपत, आगरा, वाराणसी, मिर्जापुर और भदोही में बने कालीन विदेशों में निर्यात किए जाते हैं. दावा है कि कुल निर्यात में अकेले 60 फीसदी हिस्सा भदोही कालीन उद्योग का है. ऐसे में अमेरिका के टैरिफ वॉर से भारतीय कालीन की कीमत अमेरिकी बाजारों अचानक बढ़ गई है. कालीन निर्यातकों का मानना है कि ट्रंप ने पहले 25 फीसदी टैरिफ लगाया जिससे अमेरिकी आयातकों के लिए भारतीय कालीन अचानक महंगे हो गए, और इसके कारण वे कालीनों के इंपोर्ट से कतराने लगे हैं.

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भारतीय निर्यातकों से नुकसान की भरपाई

अमेरिकी आयातक जो कालीन उद्योग में थोड़ी-बहुत रुचि दिखा रहे हैं, वे अपनी नुकसान की भरपाई भारतीय निर्यातकों से करना चाहते हैं. इसकी वजह से यह अब घाटे का सौदा साबित हो रहा है. इससे बड़े पैमाने पर तैयार माल कंपनियों में डंप हो रहा है. वहीं 27 अगस्त से यह टैरिफ 50 फीसदी हो गया है, जिससे कालीन उद्योग को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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दुनिया के कई देशों में एक्सपोर्ट होते हैं भदोही के कालीन

कालीन निर्यात संवधर्न परिषद के प्रशासनिक सदस्य और निर्यातक असलम महबूब ने बताया कि अमेरिकी टैरिफ से निर्यातकों और कामगारों का नुकसान होगा. वहीं भारत के प्रतिस्पर्धी देश पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हस्तनिर्मित कालीन और चीन और तुर्की के मशीनमेड कालीनों को भारत की अपेक्षा कम टैरिफ पर अमेरिका में आयात किया जाएगा. इससे हमारे प्रतिस्पर्धी देशों को फायदा होगा, जो हमारे देश के लिए ठीक नहीं है. 

सरकार से बेलआउट पैकेज की मांग

उन्होंने मांग की है कि सरकार टैरिफ पर 50 फीसदी का बेलआउट पैकेज दे और बंद पड़ी इंसेंटिव स्कीम को दोबारा शुरू किया जाए, जिससे उद्योग को बर्बाद होने से पहले ही बचाया जा सके.

वहीं कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के सदस्य और निर्यातक संजय गुप्ता ने कहा कि अमेरिका को करीब दस हजार करोड़ का कालीन निर्यात भारत से हो रहा है. लेकिन यह उद्योग दूसरे उद्योग से अलग है, जिसमें ग्रामीण स्तर पर लोग काम कर अपनी आजीविका चला रहे हैं. तमाम लोग ऐसे हैं जो अपनी खेती-किसानी के साथ इस काम को कर रहे हैं. इसलिए कालीन उद्योग से जुड़े कामगारों के सामने आर्थिक संकट न आए, इसके लिए सरकार को कुछ पहल करना चाहिए, जिससे कालीन उद्योग को बचाया जा सके.

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ग्रामीण भारत की तस्वीर कालीन उद्योग

संजय गुप्ता ने कहा कि अमेरिका ने जो भारत में ड्यूटी लगाई है, यह बहुत ही गलत है और न्यायसंगत नहीं है. यह सीधा-सीधा कालीन उद्योग और बुनकरों पर प्रहार है. यह ऐसा सेक्टर है, जहां ग्रामीण भारत के 25-30 लाख लोग काम करते हैं. एक्सपोर्ट का 60 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका में होता है, जिसमें 13 लाख लोग सीधे तौर पर अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं.

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उन्होंने कहा कि सरकार की निगाह में करीब 17 हजार करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट एक छोटी रकम हो सकता है, लेकिन यह उद्योग लाखों लोगों को रोजगार देता है. इस हिसाब से उनके लिए यह बहुत महत्वपूर्ण उद्योग है. यहां जो रोजगार मिलता है, वह ग्रामीण इलाकों के लोगों को मिलता है. वाराणसी, भदोही, मिर्जापुर और आगरा के गांवों के लोग इसमें काम कर रहे हैं.

बेरोजगार होने पर पलायन करने की मजबूरी 

देश के कालीन उद्योग पर अमेरिकी टैरिफ आर्थिक रूप से बहुत बड़ी चोट होगी और सामाजिक व्यवस्था को भी नुकसान पहुंचेगा. अगर 13 लाख लोग बेरोजगार होंगे, तो वे किसी न किसी तरीके से अपनी जीविका के लिए मुंबई और दिल्ली पलायन करेंगे. वहां इनकी क्या स्थिति रहती है, मजदूर किस हालत में रहते हैं, यह सभी को पता है.

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भारत पर ज्यादा टैरिफ से चीन, तुर्की के कालीन उद्योग को फायदा

कारोबारियों ने सरकार से अपील है कि इस मुद्दे पर विचार करे और जल्द से जल्द इस उद्योग को कुछ सहायता प्रदान करे, जिससे 13 लाख लोगों की जीविका बनी रहे और कालीन उद्योग की समस्याओं को कुछ समय के लिए कम किया जा सके.

जहां तक अमेरिका की बात है, आने वाले दो-तीन महीनों में किसी राहत की उम्मीद नहीं है. अगर राहत मिल भी गई, तो सिर्फ 25 प्रतिशत टैरिफ तक ही मिल सकती है. उसके नीचे की संभावना नहीं है. यही कारण है कि सभी का मानना है कि सरकार को पहल करनी चाहिए और इन 13 लाख लोगों की जीविका बचाने के लिए बड़े कदम उठाना चाहिए.

गोदाम में डंप हुआ माल, ऑर्डर भी कैंसिल

पिछले महीने की स्थिति यह थी कि तीन महीने के लिए जो समय मिला था, उससे उम्मीद थी कि कुछ रास्ता निकलेगा. लेकिन हालात और खराब हो गए. अब 25 प्रतिशत की जगह 50 प्रतिशत ड्यूटी हो चुकी है. निर्यातकों का जो माल तैयार होकर पड़ा था, उसे लेकर उम्मीद अब छोड़ दी है. अब कारोबारी सोच रहे हैं कि किसी भी तरह माल यहां से निकल जाए, भले ही नुकसान में क्यों न बेचना पड़े.

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कालीन उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि अमेरिकी आयातक जो सामान पहले सौ रुपये में बेचते थे, उसे अचानक 150 रुपये में कैसे बेच सकते हैं. माल यहां डंप है और हमें बैंक की ब्याज भी चुकानी है, मजदूर की मजदूरी देनी है, सप्लायर का पैसा देना है.

असलम महबूब ने कहा कि यह इंडस्ट्री बहुत ही बड़े संकट में है. पिछले साल 17,640 करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट हुआ था, जिसमें 60 प्रतिशत कालीन अमेरिका को भेजा गया. लगभग 25 से 30 लाख लोग इस उद्योग से जुड़े हैं, जिनमें से 13 से 14 लाख लोग अमेरिकी काम पर निर्भर हैं. आज की स्थिति यह है कि सब कुछ रुक सा गया है. खरीदार ऑर्डर कैंसिल कर रहे हैं. अधिकतर ऑर्डर होल्ड पर हैं. नया प्रोडक्शन शुरू नहीं हो रहा है और न ही नई बुकिंग हो रही है. सब कुछ बंद-सा हो गया है.

देश में 500 साल पुराना कालीन उद्योग

उन्होंने कहा कि सरकार से हमारी एक ही मांग है कि जो भी टैरिफ है, उसका 50 प्रतिशत बेलआउट पैकेज दिया जाए. बाकी 50 प्रतिशत का भार निर्यातक और व्यापारी मिलकर वहन करेंगे. इस तरह व्यापार चलता रहेगा. पहले जो इंसेंटिव मिलता था, उसे चालू किया जाए. इंटरेस्ट सबवेंशन 5 प्रतिशत मिलता था, उसे भी वापस किया जाए. जब तक सरकार इस पर पहल नहीं करती, तब तक यह इंडस्ट्री बच नहीं पाएगी.

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असलम महबूब ने कहा कि भारत में जब सुई भी नहीं बनती थी, तब भी कालीन बनते थे. इसका इतिहास 400–500 साल पुराना है. यह भारत की हैरिटेज है, प्राइड है, जो अब खतरे में आ गया है. इसे आगे बढ़ाने का काम सरकार का है.

कालीन कुटीर उद्योग गांव में बसने वाला उद्योग है. कालीन व्यापार भदोही, मिर्जापुर, जौनपुर, सोनभद्र, प्रयागराज, बनारस से होते हुए बिहार और बंगाल तक फैला हुआ है. यह गांव में बसने वाला उद्योग है, जिसमें 90 प्रतिशत काम आर्टिजन और किसान करते हैं और जब इनका माइग्रेशन होगा, तो दोबारा ये इंडस्ट्री में खड़े नहीं हो पाएंगे. अधिकतर पार्ट-टाइम किसान जो इस उद्योग से जुड़े हैं, वे बेरोजगारी की ओर जा रहे हैं.

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