
उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में 29 अक्टूबर को हुए नाव हादसे ने वनग्राम को हमेशा के लिए मातम में डुबो दिया. कतर्नियाघाट वाइल्ड लाइफ के रिमोट एरिया में स्थित वनग्राम भरथापुर के पांच बच्चों समेत 9 लोगों की मौत हो गई. यह दुर्घटना तब हुई जब नाव कौड़ियाला नदी की तेज लहरों में एक सूखे पेड़ से टकराकर पलट गई. ग्रामीणों ने सात लोगों को बचा लिया, लेकिन नौ लोगों को नहीं बचाया जा सका.
सरकारी लापरवाही ने ली जान, विस्थापन की फाइल में धूल
इस हादसे की वजह एक बड़ी सरकारी लापरवाही बताई जा रही है. भरथापुर, जिसकी आबादी लगभग 300 है, तीन तरफ से खूंखार वन्य जीवों वाले जंगल से घिरा है और एक ओर से नेपाली कौड़ियाला नदी की कटान से सिमटता जा रहा है. इस गांव को जंगल से दूर विस्थापित कर बसाने की प्रक्रिया वर्षों से सरकारी फाइलों में धूल फांक रही थी. विस्थापन को अब मंजूरी मिली है, लेकिन तब जब इतनी बड़ी घटना हो गई. घायल सोनापती ने गुस्से में कहा, "अरे साहब लोग पहले ही विस्थापित कर दूसरी जगह बसा देते, हमारा गांव भरथापुर तो क्यों नदी में डूब जाते हमारे बच्चे."

जान का जोखिम लेकर बाजार जाते थे ग्रामीण
भरथापुर गांव में सरकारी संसाधन लगभग न के बराबर हैं. जंगली जानवरों, विशेषकर टस्कर हाथी और टाइगर का खौफ इतना है कि ग्रामीण 15 किलोमीटर दूर बिछिया बाजार न जाकर, 7 किलोमीटर दूर लखीमपुर की खैरटिया साप्ताहिक हाट जाते थे. वहां पहुंचने का एकमात्र जरिया कौड़ियाला नदी में चलने वाली नाव थी. 29 अक्टूबर को इसी बड़ी नाव पर सवार होकर 22 लोग लौट रहे थे. नाविक ने छह लोगों को रास्ते में उतार दिया, लेकिन बाकी 16 लोगों को लेकर भरथापुर आ रही नाव घाट से महज 30 मीटर पहले सूखे पेड़ से टकराकर पलट गई.
एक ही परिवार के 5 लोगों की मौत, मां के शव का इंतजार
इस हादसे में जान गंवाने वाले नौ लोगों में से पांच लोग भरथापुर की महिला सोनापती के परिवार के थे. सोनापती की बहन रमजइया छठ पूजा में शामिल होने अपने बेटे घनश्याम और उसके दो बच्चों ऋतु और ओमप्रकाश के साथ आई थी. सोनापती की बेटी शांति भी अपनी चार वर्षीय बेटी दुर्गा के साथ मायके आई थी. नाव पलटने से सोनापती की बहन रमजइया, उसका पोता-पोती, बेटी शांति की बेटी दुर्गा, सोनापती का पोता शिवम, नाव चालक और एक अन्य परिवार की पत्नी और बेटी समेत नौ लोग कौड़ियाला की लहरों में समा गए.

दो दिन तक रुका रहा रमजइया का अंतिम संस्कार
हादसे के बाद रमजइया का शव बरामद हो गया था, जिसे पोस्टमार्टम के बाद उसकी ससुराल श्रावस्ती के मसढी भिखारीपुर गांव भेज दिया गया. लेकिन उसका अंतिम संस्कार दो दिन तक रुका रहा. रमजइया का बेटा घनश्याम, जो अपनी मां और दोनों बच्चों की मौत से पूरी तरह बदहवास था, 140 किलोमीटर दूर नदी किनारे अपने बच्चों के शव मिलने का इंतजार कर रहा था.
31 अक्टूबर की शाम तक जब किसी का शव बरामद नहीं हुआ, तो वह थक-हार कर 1 नवंबर को अपने गांव लौटा, तब रमजइया का अंतिम संस्कार हो सका. घनश्याम अब पूरी तरह अकेला हो चुका है, क्योंकि दो महीने पहले उसकी पत्नी की भी मौत हो चुकी थी.
विस्थापन की मंजूरी पर गुस्सा
नाव हादसे में घायल सोनापती ने घटना के बाद विस्थापन की मंजूरी मिलने पर गुस्सा जाहिर किया. उसने शासन-प्रशासन को दोषी बताते हुए कहा, "अब क्या करेंगे विस्थापन का लाभ लेकर जब उसकी पूरी दुनिया ही उजड़ गई. अगर गांव को पहले ही विस्थापित कर दिया जाता तो शायद इतने लोगों को जान न गंवानी पड़ती."

सरकारी मदद
बहराइच नाव दुर्घटना के बाद, सीएम योगी आदित्यनाथ ने मोतीपुर तहसील पहुंचकर मृतकों के परिजनों से मुलाकात की और उन्हें चार-चार लाख रुपये की सहायता राशि दी. उन्होंने वर्षों से लंबित पड़े वनग्राम भरथापुर के विस्थापन की बड़ी घोषणा भी की. सीएम ने ₹21 करोड़ 55 लाख की धनराशि जारी करते हुए, इन ग्रामवासियों को एक नई कॉलोनी में बसाने का निर्देश दिया. इस कॉलोनी का नाम भरथापुर ही रखा जाएगा और यहां मुख्यमंत्री आवास, स्कूल और आंगनवाड़ी केंद्र बनेंगे. सीएम योगी ने हवाई सर्वेक्षण भी किया और कहा कि लापता आठ लोगों के जीवित बचने की संभावना बहुत कम है.