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Q&A: इलेक्टोरल वोट जीतने के बाद भी पॉपुलर वोट पलट देते हैं US चुनाव के नतीजे, 10 सवाल-जवाब से समझें आगे का रास्ता

अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव पॉपुलर वोट से नहीं, बल्कि इलेक्टोरल कॉलेज सिस्टम से होगा. यहां पॉपुलर वोट और इलेक्ट्रोरल वोट दो अलग-अलग चीजें हैं. पॉपुलर वोट का मतलब है कि जनता द्वारा सीधे दिए गए वोट. जबकि इलेक्ट्रोरल वोट, प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों द्वारा दिए जाते हैं और यही राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव इलेक्ट्रोरल वोट से होता है, इसलिए पॉपुलर वोट जीतने के बाद भी कोई उम्मीदवार राष्ट्रपति नहीं बन सकता, यदि उसे जरूी इलेक्ट्रोरल वोट ना मिले हों.

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अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस में सीधा मुकाबला है.
अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस में सीधा मुकाबला है.

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में नतीजे आने शुरू हो गए हैं. रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस के बीच कांटे की टक्कर है. जो भी जीतेगा, वो 47वां राष्ट्रपति बनेगा. अमेरिकी चुनाव में दो तरह की वोटिंग होती है- पॉपुलर वोटिंग और इलेक्टोरल वोटिंग. हालांकि, अंतिम नतीजे इलेक्टोरल वोटिंग से तय होते हैं. जानिए क्या होती है इलेक्टोरल वोटिंग और पॉपुलर वोटिंग? क्या पॉपुलर वोट जीतने के बाद भी इलेक्टोरल वोट नतीजे बदल सकते हैं? समझिए ट्रंप और हैरिस के लिए आगे क्या रास्ता है?

अमेरिकी चुनाव में सबसे पहले हर राज्य में सभी मतदाताओं के पॉपुलर वोट (जनता के सीधे वोट) की गिनती की जाती है. यह गिनती चुनाव के दिन शुरू होती है और प्रत्येक राज्य में यह स्पष्ट हो जाता है कि किस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा पॉपुलर वोट मिले हैं. पॉपुलर वोट का नतीजा दिखाता है कि उस राज्य में किस उम्मीदवार को जनता का समर्थन मिला है. पॉपुलर वोट के नतीजों के आधार पर ही हर राज्य अपने इलेक्ट्रोरल वोटों को उम्मीदवार को आवंटित करता है.

1. अमेरिका में कैसे तय होती है हार-जीत?

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में पॉपुलर वोटिंग में यह देखा जाता है कि जनता ने किस उम्मीदवार का समर्थन किया है और यह वोटिंग ही इलेक्टोरल वोट के निर्धारण में बड़ी भूमिका निभाती है. चूंकि, प्रत्येक राज्य का एक निश्चित संख्या में इलेक्ट्रोरल वोट होता है और अधिकांश राज्यों में विनर-टेक्स-ऑल प्रणाली लागू होती है. यानी जिस उम्मीदवार को पॉपुलर वोट में सबसे ज्यादा वोट मिले, उसे उस राज्य के सभी इलेक्ट्रोरल वोट मिल जाते हैं. दिसंबर के महीने में हर राज्य के चुने हुए इलेक्ट्रर्स अपनी-अपनी राज्य की राजधानी में मिलते हैं और राष्ट्रपति के लिए औपचारिक रूप से वोट डालते हैं. इस प्रक्रिया को इलेक्ट्रोरल कॉलेज की बैठक कहते हैं. हालांकि, पहले ही यह तय हो जाता है कि कौन राष्ट्रपति बनने जा रहा है, क्योंकि पॉपुलर वोट के आधार पर ही प्रत्येक राज्य के इलेक्ट्रोरल वोट निर्धारित हो चुके होते हैं.

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2. स्विंग स्टेट क्या हैं?

दरअसल, अमेरिका में वेटेज वोटिंग सिस्टम के जरिए राष्ट्रपति तय होता है, जिसे इलेक्टोरल कॉलेज के रूप में जाना जाता है. ना कि पॉपुलर वोट द्वारा. इस वजह से स्विंग स्टेट नतीजे तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं. स्विंग स्टेट वो हैं, जो किसी निश्चित ट्रेंड का पालन नहीं करते, बल्कि बार-बार बदलते रहते हैं और आखिरकार जीत में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यहां सात राज्यों का स्विंग स्टेट माना जा रहा है, इनमें नेवादा (6), एरिजोना (11), नॉर्थ कैरोलिना (16), जॉर्जिया (16), विस्कॉन्सिन (10), मिशिगन (15) और पेंसिल्वेनिया (19) का नाम शामिल है. ऐसे में कैंडिडेट्स को इन बड़े स्विंग स्टेट पर ज्यादा फोकस करना पड़ता है.

 

3. इलेक्ट्रोरल कॉलेज क्या है?

इलेक्ट्रोरल कॉलेज एक चुनावी संस्था है जो अमेरिका के राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति को चुनने के लिए गठित की गई है. इसके तहत मतदाताओं के वोट सीधे उम्मीदवार को नहीं जाते, बल्कि प्रत्येक राज्य के लिए चुने गए प्रतिनिधियों को दिए जाते हैं, जिन्हें इलेक्ट्रर्स कहा जाता है. इन इलेक्ट्रर्स के वोट ही राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं. इलेक्ट्रोरल कॉलेज में कुल 538 इलेक्ट्रर्स होते हैं. इनमें 435 प्रतिनिधि सदन (House of Representatives) के सदस्य, 100 सीनेट के सदस्य और 3 इलेक्ट्रर्स वॉशिंगटन डीसी (जो कि राज्य नहीं है) के होते हैं. प्रत्येक राज्य के इलेक्ट्रर्स की संख्या उस राज्य की जनसंख्या पर आधारित होती है और इसे हर 10 साल में जनगणना के अनुसार बदला जा सकता है.

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4. कैसे तय होते हैं इलेक्टोरल कॉलेज वोट?

अमेरिका में 50 राज्य हैं और प्रत्येक को उनकी जनसंख्या के आधार पर एक निश्चित संख्या में इलेक्टोरल कॉलेज वोट दिए जाते हैं. कुल 538 में से जीत के लिए 270 इलेक्टोरल वोट हासिल करना जरूरी है. बुधवार सुबह से इलेक्टोरल कॉलेज के शुरुआती रुझानों में ट्रंप आगे देखे जा रहे हैं, जबकि कमला भी ज्यादा पीछे नहीं हैं. 

5. किसे मिलते हैं सभी इलेक्टोरल कॉलेज वोट?

वोटिंग के दिन अमेरिकी नागरिक बूथ पर पहुंचते हैं और उन इलेक्टर्स को वोट देते हैं, जो उनके राज्य को आबादी के आधार पर दिए गए हैं. वोटर्स यह ध्यान रखते हैं कि वे जिस इलेक्टर को वोट देने जा रहे हैं, वो उनकी पसंद के उम्मीदवार का प्रतिनिधित्व कर रहा है या नहीं. इसे पॉपुलर वोटिंग कहते हैं. 'पॉपुलर वोट' जीतने वाला उम्मीदवार यह तय करता है कि इलेक्टोरल कॉलेज में राष्ट्रपति के लिए रिपब्लिकन, डेमोक्रेट या कोई तीसरी पार्टी के लिए वोट डालेंगे.

6. जीत-हार में कौन नतीजे रखते हैं मायने?

पॉपुलर वोट के नतीजों से राज्यों में साधारण बहुमत मिलने की स्थिति साफ होती है. हालांकि, ये अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली एक अजीब स्थिति भी पैदा करती है. जैसे- किसी उम्मीदवार को भले कम पॉपुलर वोट मिलते हैं, लेकिन अगर वो पर्याप्त इलेक्टोरल वोट हासिल कर लेता है तो वो अमेरिकी राष्ट्रपति बन सकता है. कई बार ऐसा हुआ है कि उम्मीदवार ने पॉपुलर वोट में हारने के बावजूद इलेक्टोरल कॉलेज में जीत हासिल की है और राष्ट्रपति बना है. 

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अमेरिका

ऐसा हाल ही में 2016 के चुनाव में भी हुआ था, जब डोनाल्ड ट्रंप ने हिलेरी क्लिंटन को इलेक्टोरल वोट में हराया, जबकि हिलेरी ने पॉपुलर वोट में ज्यादा वोट हासिल किए थे. इसी तरह, 2000 में भी जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने पॉपुलर वोट में हारने के बावजूद अल गोर को इलेक्टोरल वोट में हराकर चुनाव जीता था.

2016 में ट्रंप की प्रतिद्वंद्वी डेमोक्रेट उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन ने करीब तीन मिलियन ज्यादा पॉपुलर वोट हासिल किए थे, उसके बावजूद ट्रंप 306 इलेक्टोरल कॉलेज वोट जीतने में सफल रहे और उन्होंने सबसे ज्यादा इलेक्टोरल कॉलेज वोट वाले महत्वपूर्ण राज्यों में भी जीत हासिल कर ली. इनमें टेक्सास (38), फ्लोरिडा (29), पेंसिल्वेनिया (20), ओहियो (18), मिशिगन (16), जॉर्जिया (16), नॉर्थ कैरोलिना (15), एरिजोना (16) और विस्कॉन्सिन (10) ने ट्रंप को प्रेसिडेंट बनाने में राह आसान कर दी.

7. भारत की चुनाव प्रक्रिया से कितना अलग है अमेरिकी चुनाव?

अमेरिका अपनी स्थापना के बाद से ही राष्ट्रपति चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज का इस्तेमाल करता आ रहा है. यानी लोग अप्रत्यक्ष रूप से अपने राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं. इसे भारत की चुनाव प्रक्रिया के लिहाज से समझें तो जैसे हमारे यहां वोटर्स विधानसभा या लोकसभा चुनाव के जरिए विधायक या सांसद चुनते हैं और बाद में यही विधायक या सांसद मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री चुन लेते हैं. हालांकि, अमेरिका पूरी प्रक्रिया थोड़ा जटिल है.

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इलेक्टोरल कॉलेज एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें कम पॉपुलर वोट पाने वाला उम्मीदवार भी चुनाव जीत सकता है. अमेरिकी इतिहास में पांच राष्ट्रपति हुए हैं जिन्होंने जनता के 'पॉपुलर वोट' जीते बिना राष्ट्रपति का चुनाव जीता है. 

8. क्या है विनर-टेक्स-ऑल सिस्टम?

जो भी राष्ट्रपति उम्मीदवार किसी किसी राज्य में सबसे ज्यादा पॉपुलर वोट हासिल करता है, उसे आमतौर पर सभी इलेक्टोरल कॉलेज वोट मिलते हैं. अधिकांश राज्यों में विनर-टेक्स-ऑल सिस्टम लागू होता है. इसका मतलब है कि जो भी उम्मीदवार राज्य में सबसे ज्यादा वोट हासिल करता है, वो राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट जीत लेता है. सिर्फ मेन (Maine) और नेब्रास्का (Nebraska) में यह प्रणाली अलग होती है और वहां इलेक्ट्रोरल वोट्स का विभाजन होता है.

उदाहरण के लिए 2020 में जो बाइडेन ने कैलिफोर्निया में जीत दर्ज की और उन्हें सभी 55 इलेक्टोरल कॉलेज वोट उनके खाते में आ गए. इसे उदाहरण से समझें कि 2020 में कैलिफोर्निया में कुल 1.71 करोड़ लोगों ने वोटिंग की थी. इनमें से 1.11 करोड़ वोट बाइडन के खाते में गए और 60 लाख वोट ट्रंप को मिले. अब जब कैलिफोर्निया जैसे अधिकतर राज्यों में विनर-टेक्स-ऑल सिस्टम लागू है तो अधिकतर वोट पाने वाले जो बाइडन को कैलिफोर्निया के सभी 55 इलेक्टोरल वोट मिल गए.

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9. किन राज्यों पर उम्मीदवारों का होता है फोकस?

राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार स्विंग स्टेट्स या बैटलग्राउंड स्टेट्स कहे जाने वाले राज्यों पर ज्यादा फोकस करते हैं. ये ऐसे राज्य हैं जहां बड़ी संख्या में इलेक्टोरल वोट हैं, जो अंत में अमेरिकी राष्ट्रपति का फैसला करते हैं. इस साल के चुनाव में सात राज्यों को स्विंग स्टेट माना जा रहा है, उनमें पेंसिल्वेनिया, नेवादा, नॉर्थ कैरोलिना, जॉर्जिया, एरिजोना, मिशिगन और विस्कॉन्सिन का नाम शामिल है.

10. अब कमला और ट्रंप की आगे की राह क्या होगी?

राष्ट्रपति चुनाव के बाद इलेक्ट्रोरल कॉलेज के सभी इलेक्ट्रर्स एकत्रित 17 दिसंबर को अपने राज्यों की राजधानियों में इकट्ठा होंगे और औपचारिक रूप से अगले अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए वोट डालेंगे. राष्ट्रपति चुनाव के पॉपुलर वोट में जो उम्मीदवार उस राज्य में जीतता है, उस उम्मीदवार के पक्ष में सभी इलेक्ट्रर्स को वोट देने की उम्मीद की जाती है. इलेक्ट्रर्स पहले से ही उस राजनीतिक दल द्वारा चयनित होते हैं, जो चुनाव में अपने उम्मीदवार का समर्थन कर रहे होते हैं. हालांकि, कुछ राज्यों में इलेक्ट्रर्स को कानून द्वारा अपने उम्मीदवार को वोट देने के लिए बाध्य किया गया है और कुछ राज्यों में यह अपेक्षित होता है लेकिन बाध्यकारी नहीं.

कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप

राष्ट्रपति चुनने के लिए इलेक्ट्रर्स मतपत्र भरते हैं. ये मतपत्र औपचारिक रूप से प्रमाणित किए जाते हैं और फिर सुरक्षित तरीके से संघीय सरकार को भेजे जाते हैं. एक बार वोट डाले जाने के बाद ये परिणाम अमेरिकी कांग्रेस को भेज दिए जाते हैं. इसके साथ ही वोटों की एक प्रति राष्ट्रीय अभिलेखागार (National Archives) में भी भेजी जाती है. हर राज्य अपने इलेक्ट्रोरल वोटों को सीलबंद लिफाफों में रखकर एक प्रतिनिधि के माध्यम से कांग्रेस में भेजता है.

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6 जनवरी 2025 को अमेरिकी कांग्रेस की बैठक होगी और वोटों की गिनती की जाएगी. उसके बाद विजेता का नाम घोषित किया जाएगा. उसके बाद 20 जनवरी को नए राष्ट्रपति को शपथ दिलाई जाएगी.

कुछ अपवाद ऐसे हैं, जिनमें इलेक्ट्रर्स उस उम्मीदवार के पक्ष में वोट नहीं डालते जिसके लिए उन्हें चुना गया था. ऐसे इलेक्ट्रर्स को फेथलेस इलेक्ट्रर्स कहा जाता है. कुछ राज्यों में फेथलेस इलेक्ट्रर्स पर जुर्माना लगाए जाते हैं, जबकि कुछ राज्यों में उनके वोट को अस्वीकार भी किया जा सकता है. हालांकि, यह बहुत कम होता है और आम तौर पर इसका चुनाव के परिणाम पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ता.

क्या है चुनाव की पूरी प्रक्रिया... सरल भाषा में समझें

  1. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में सबसे पहले वोटर्स अपने राज्य में मतदान करते हैं. चूंकि अमेरिकी चुनाव प्रणाली इलेक्ट्रोरल कॉलेज पर आधारित है. हर राज्य को उसकी जनसंख्या के आधार पर एक निश्चित संख्या में इलेक्ट्रोरल वोट मिलते हैं. राज्यों में जीतने वाले प्रत्याशी को वो राज्य के सभी इलेक्ट्रोरल वोट मिलते हैं (कुछ अपवाद राज्यों को छोड़कर).
  2. उसके बाद सबसे पहले हर राज्य और क्षेत्र में मतों की गिनती की जाती है. पॉपुलर वोट (मतदाता के सीधे वोट) का निर्धारण होता है कि किस प्रत्याशी को कितने वोट मिले हैं.
  3. आखिरी में प्रत्येक राज्य का विजेता प्रत्याशी उस राज्य के सभी इलेक्ट्रोरल वोट प्राप्त करता है. अधिकांश राज्यों में विनर-टेक्स-ऑल प्रणाली लागू है, जिसमें राज्य के सभी इलेक्ट्रोरल वोट एक ही उम्मीदवार को दिए जाते हैं.
  4. चुनाव के बाद प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधि (जो कि पहले से चुने हुए होते हैं) दिसंबर में अपनी इलेक्ट्रोरल वोट डालने के लिए मिलते हैं. ये प्रतिनिधि उस राज्य के मतदाताओं की इच्छा के अनुसार अपने वोट डालते हैं.
  5. जनवरी की शुरुआत में संयुक्त राज्य कांग्रेस औपचारिक रूप से सभी इलेक्ट्रोरल वोटों की गिनती करती है. यह कार्य संसद के संयुक्त सत्र में होती है.
  6. इलेक्ट्रोरल कॉलेज के मतों की गिनती के बाद जिस उम्मीदवार को 538 में से 270 या उससे ज्यादा इलेक्ट्रोरल वोट मिलते हैं, उसे राष्ट्रपति चुना जाता है. अगर किसी भी उम्मीदवार को 270 से ज्यादा वोट नहीं मिलते हैं तो प्रतिनिधि सभा (House of Representatives) राष्ट्रपति का चुनाव करती है.

अमेरिका में किस राज्य में कितने इलेक्टोरल वोट

राज्य    चुनावी वोट
अलाबामा- 9
अलास्का- 3
एरिज़ोना- 11
अर्कांसस- 6
कैलिफोर्निया- 54
कोलोराडो- 10
कनेक्टिकट- 7
डेलावेयर- 3
कोलंबिया के जिला- 3
फ्लोरिडा- 30
जॉर्जिया- 16
Hawaii- 4
इडाहो- 4
इलिनोइस- 19
इंडियाना- 11
आयोवा- 6
कान्सास-  6
केंटकी- 8
लुइसियाना- 8
Maine- 4
मैरीलैंड- 10
मैसाचुसेट्स- 11
मिशिगन- 15
मिनेसोटा- 10
मिसिसिपी- 6
मिसौरी- 10
MONTANA- 4
नेब्रास्का- 5
नेवादा- 6
न्यू हैम्पशायर- 4
न्यू जर्सी- 14
न्यू मैक्सिको-  5
न्यूयॉर्क- 28
उत्तरी केरोलिना- 16
नॉर्थ डकोटा- 3
ओहियो- 17
ओकलाहोमा-  7
ओरेगन- 8
पेंसिल्वेनिया- 19
रोड आइलैंड-  4
दक्षिण कैरोलिना-  9
दक्षिणी डकोटा- 3
टेनेसी- 11
टेक्सास- 40
यूटा- 6
वरमोंट-  3
वर्जीनिया-  13
वाशिंगटन-  12
वेस्ट वर्जीनिया-  4
विस्कॉन्सिन- 10
व्योमिंग- 3

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