70% क्षेत्र में हरियाली, लोहा और कंक्रीट बिल्कुल भी नहीं, ये रहीं राम मंदिर की खासियतें
Ram Mandir Ayodhya: अयोध्या में उत्सव जैसा माहौल है. पूजन प्रक्रिया 16 जनवरी से विधि विधान से होगी. वहीं प्राण प्रतिष्ठा की पूजा को देश भर के 121 पंडित संपन्न करेंगे. इस खास मौके पर मंदिर से जुड़ी विशेष बातें जान लेते हैं.
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर को 70 एकड़ भूमि में बनाया जा रहा है. यहां रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को की जाएगी. मंदिर के उद्घाटन में अब बहुत ही कम समय बचा है. यहां तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं. अयोध्या में उत्सव जैसा माहौल है. पूजन प्रक्रिया 16 जनवरी से विधि विधान से होगी. वहीं प्राण प्रतिष्ठा की पूजा को देश भर के 121 पंडित संपन्न करेंगे.
इसके साथ ही 2 मंडप और 9 हवन कुंड तैयार हो रहे हैं. प्रत्येक हवन कुंड से खास महत्व और उद्देश्य भी जुड़ा हुआ है. इस खास मौके पर आज हम आपको राम मंदिर से जुड़ी खास बातें बताने वाले हैं. इसकी जानकारी खुद श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने अपने आधिकारिक एक्स (पहले ट्विटर) अकाउंट पर दी है.
भगवान श्रीराम के मंदिर को परंपरागरत नागर शैली में बनाया जा रहा है.
मंदिर की लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट और ऊंचाई 161 फीट रहेगी.
मंदिर तीन मंजिला होगा, प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई 20 फीट रहेगी, मंदिर में कुल 392 खंभे और 44 दरवाजे होंगे.
मुख्य गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बालरूप (श्रीरामलला सरकार का विग्रह) और प्रथम तल पर श्रीराम दरबार होगा.
मंदिर में 5 मंडप होंगे- नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप और कीर्तन मंडप.
खंभों और दीवारों में देवी देवता और देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी जा रही हैं.
मंदिर में प्रवेश पूर्व दिशा से 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से होगा.
दिव्यांगजन और वृद्धों के लिए मंदिर में रैंप और लिफ्ट की व्यवस्था रहेगी.
मंदिर के चारों ओर आयताकार परकोटा रहेगा. चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर और चौड़ाई 14 फीट होगी.
परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां भगवती, गणपति और भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण होगा. उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा और दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर रहेगा.
मंदिर के समीप पौराणिक काल का सीताकूप विद्यमान रहेगा.
मंदिर परिसर में प्रस्तावित अन्य मंदिर- महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी और ऋषिपत्नी देवी अहिल्या को समर्पित होंगे.
दक्षिण पश्चिमी भाग में नवरत्न कुबेर टीले पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है और वहां जटायु प्रतिमा की स्थापना की गई है.
मंदिर में लोहे का इस्तेमाल नहीं होगा. धरती के ऊपर बिलकुल भी कंक्रीट नहीं है.
मंदिर के नीचे 14 मीटर मोटी रोलर कॉम्पेक्टेड कंक्रीट (RCC) बिछाई गई है. इसे कृत्रिम चट्टान का रूप दिया गया है.
मंदिर को धरती की नमी से बचाने के लिए 21 फीट ऊंची प्लिंथ ग्रेनाइट से बनाई गई है.
मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था और स्वतंत्र पावर स्टेशन का निर्माण किया गया है, ताकि बाहरी संसाधनों पर न्यूनतम निर्भरता रहे.
25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र का निर्माण किया जा रहा है, जहां लोगों का सामान रखने के लिए लॉकर और चिकित्सा की सुविधा रहेगी.
मंदिर परिसर में स्नानागार, शौचालय, वॉश बेसिन और ओपन टैप्स की सुविधा भी रहेगी.
मंदिर का निर्माण पूर्णतया भारतीय परंपरा के अनुसार और स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है. पर्यावरण जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. कुल 70 एकड़ क्षेत्र में 70 फीसदी क्षेत्र सदा हरित रहेगा.