भारत में सर्दियां शुरू होते ही हम और आप स्वेटर और जैकेट निकालने लगते हैं, लेकिन क्या आप किसी ऐसी जगह की कल्पना कर सकते हैं जहां ठंड इतनी ज्यादा हो कि खून तक जम जाए? हम बात कर रहे हैं लद्दाख के कारगिल जिले में स्थित द्रास की. इसे भारत का सबसे ठंडा और दुनिया का दूसरा सबसे ठंडा गांव माना जाता है. यहां सर्दियों के मौसम में तापमान -60°C तक गिर जाता है, जो किसी भी आम इंसान की सोच से परे है. कड़ाके की इस ठंड के बावजूद यह इलाका पूरी तरह आबाद है और यहां की खूबसूरती लोगों को हैरान कर देती है.
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पहाड़ों के बीच बसा भारत का सबसे ठंडा गांव
द्रास को 'लद्दाख का प्रवेश द्वार' यानी गेटवे ऑफ लद्दाख कहा जाता है. यह इलाका चारों तरफ से 16 हजार से 21 हजार फीट ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है. इतनी ऊंचाई पर होने और हिमालय की बर्फीली हवाओं के सीधे संपर्क में रहने के कारण यहां की ठंड जानलेवा स्तर तक पहुंच जाती है. अक्टूबर के महीने से ही यहां बर्फीली हवाओं का तांडव शुरू हो जाता है जो अगले साल अप्रैल तक चलता है. इन महीनों में पूरा इलाका बर्फ की मोटी सफेद चादर से ढंक जाता है और सड़कें तक नजर नहीं आतीं.
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-60 डिग्री के टॉर्चर में भी धड़कती है जिंदगी
हैरानी की बात यह है कि इतनी भीषण और शरीर को कंपाने वाली ठंड के बाद भी द्रास वीरान नहीं है. यहां करीब 22 हजार लोगों की आबादी रहती है, जिसमें ज्यादातर लोग शिना भाषी दारदिक समुदाय के हैं. इन लोगों ने कुदरत के इस कहर के बीच जीना सीख लिया है. यहां के घर खास तरह की मोटी दीवारों से बनाए जाते हैं ताकि अंदर गर्मी बनी रहे. इसके अलावा सर्दी से बचने के लिए लोग लकड़ी से जलने वाले पारंपरिक चूल्हों (बुखारी) का इस्तेमाल करते हैं और दिन-रात भारी ऊनी कपड़ों में लिपटे रहते हैं. यह इनका जज्बा ही है जो द्रास को दुनिया की सबसे कठिन जगहों में से एक होने के बाद भी जीवंत बनाए रखता है.
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अमरनाथ मार्ग और अनोखी प्राकृतिक खूबसूरती
द्रास सिर्फ ठंड के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी अनोखी भौगोलिक बनावट के लिए भी मशहूर है. यहां से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर मीना मार्ग है, जो अमरनाथ यात्रा का एक अहम हिस्सा माना जाता है. यह इलाका मचोई ग्लेशियर से घिरा हुआ है, जो इसे और भी ठंडा बना देता है. यहीं पास में 'लेजर ला' नाम का एक पहाड़ है, जो अपने दूध जैसे सफेद पानी के झरनों के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है. गर्मियों के मौसम में यहां की पहाड़ियों पर एक तरफ हरियाली और दूसरी तरफ बंजर जमीन का अनोखा संगम देखने को मिलता है, लेकिन सर्दियों में यह सब कुछ सफेद बर्फ के नीचे छिप जाता है.
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कारगिल युद्ध के बाद सैलानियों की पहली पसंद
द्रास का इतिहास 1999 के कारगिल युद्ध से भी गहरा जुड़ा है. सच तो यह है कि युद्ध के बाद ही यह इलाका पूरी दुनिया की नजरों में आया और देखते ही देखते एक बड़ा टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन गया. यहां आने वाले सैलानी उन चोटियों को करीब से देख पाते हैं जहां भारतीय सेना के जांबाजों ने तिरंगा फहराया था. युद्ध के बाद यहां की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पर्यटन पर टिक गई है. आज द्रास में देखने के लिए वार मेमोरियल से लेकर टाइगर हिल के नजारे तक बहुत कुछ है, जो पर्यटकों को भावुक और रोमांचित दोनों करता है.
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द्रास पहुंचने का सफर और ठहरने का इंतजाम
अगर आप भी इस बर्फीली जन्नत का दीदार करना चाहते हैं, तो यहां पहुंचने का सबसे बेहतरीन तरीका सड़क मार्ग है. श्रीनगर-लेह नेशनल हाईवे (NH1) के जरिए आप टैक्सी या बस से द्रास पहुंच सकते हैं. यहां ठहरने के लिए बड़े होटलों के बजाय स्थानीय लोगों के 'होम-स्टे' सबसे अच्छा विकल्प हैं, जहां आप उनकी संस्कृति और खाने का स्वाद चख सकते हैं. हालांकि, द्रास जाने के लिए किसी टूर पैकेज को चुनना सबसे किफायती और सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि यहां के मौसम और रास्तों का मिजाज कब बदल जाए, कोई नहीं जानता.
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